..सुनते हो जी आप! “आप” को हल्के में मत लेइयो

उत्त्तराखण्ड की दुखती रग स्थायी राजधानी, शहीदों के सपने, शिक्षा-स्वास्थ्य रोजगार,भ्र्ष्टाचार व बिजली-पानी पर सुन-सुना कर भांपा जनता व राजनीति का मिजाज। शिक्षकों से मिले एयर किया जनसंवाद भी। केजरीवाल के दिल्ली मॉडल  का उदाहरण दिया बारम्बार

आम आदमी पार्टी लीडर मनीष सिसोदिया के गढ़वाल-कुमायूँ दौरे से उत्त्तराखण्ड की पॉलिटिक्स अलर्ट पर

बोल चैतू/अविकल उत्त्तराखण्ड

देहरादून।
भाजपा-कांग्रेस एक दूसरे पर अटैक करने के साथ साथ पार्टी के अंदर भी कटिंग में उलझी है। एक समय पहाड़ और पहाड़ियों के मुद्दे पर मुठ्ठी भींचने व मशाल जलाने वाली उत्त्तराखण्ड क्रांति दल फिर से जीरो से आगे बढ़ने की कोशिश में जुटी है।

साल 2002 के विधानसभा से 2012 तक विधानसभा में  उक्रांद से ज्यादा विधायक जीत कर धमक दिखाने वाली बहन मायावती की बहुजन समाज पार्टी हमेशा की तरह इस बार भी खामोश है। कोई हलचल नहीं। 2017 विधानसभा चुनाव में प्रचंड मोदी लहर के बाद उक्रांद की तरह शून्य पर निपटी बसपा की भी सतह पर किसी प्रकार का मूवमेंट नजर आ रहा है।

बीते 20 साल में उत्त्तराखण्ड की राजनीति के केंद्र में कांग्रेस, भाजपा, बसपा व उक्रांद ही रहे हैं। लेकिन इस बार प्रदेश की राजनीति में आम आदमी पार्टी भी इन चारों दलों के बीच राजनीति की फुटबाल लेकर उतर गई है।

आम आदमी पार्टी के मुख्य नेता मनीष सिसोदिया हल्द्वानी, हरिद्वार से उत्त्तराखण्ड का मिजाज भांपते हुए देहरादून भी पहुंचे। इस दौरान वे पार्टी वर्कर के अलावा शिक्षक समुदाय से भी मिले। उत्त्तराखण्ड के 2022 के विधानसभा चुनाव में सभी 70 सीटों में लड़ने की केजरीवाल घोषणा के बाद पार्टी के किसी बड़े नेता की यह उत्त्तराखण्ड यात्रा है।

अपनी इस यात्रा में वे केजरीवाल के दिल्ली मॉडल का बारम्बार उल्लेख कर पांच साल बनाम बीस साल का नारा भी दे गए। साफ कह गए कि बीस साल में भाजपा-कांग्रेस समेत अन्य नेताओं की संपत्ति में कई गुना इजाफा हुआ। अपनी पार्टी के सीएम के चेहरे को समय आने पर घोषित करने की बात कहकर सस्पेंस बनाये रखा।

चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद आम आदमी पार्टी आर्मी अधिकारी व ब्यूरोक्रेट्स को अपने साथ खड़ा कर चुकी है। अन्य दलों से भी कुछ नेता आप की ओर झुके हैं। लेकिन चुनावी चेहरे को लेकर आप ने अपने पत्ते नहीं खोले। सिर्फ मनीष सिसोदिया यह संकेत अवश्य कर रहे हैं कि चेहरा पहाड़ का ही होगा। और उस चेहरे पर उत्तराखंड को नाज होगा। पार्टी के मजबूत संगठनात्मक ढांचे के लिए “आप” को विशेष मशक्कत करनी होगी। फिलवक्त, आप संगठन में जनता में विशेष पैठ रखने वाले नेताओं की खासी कमी नजर आ रही है।

बहरहाल, मनीष सिसोदिया कुमायूँ के प्रसिद्ध कैंची धाम, हरिद्वार की गंगा आरती और देहरादून के शहीद स्थल में सिर नवा पार्टी के चुनावी बिगुल फूंक चुके है।  भाजपा सरकार को चुनौती देते हुए मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत को अपनी पांच उपलब्धि बताने का चैलेंज दे राजनीतिक बहस को बढ़ाने की कोशिश की। यह भी कह दिया कि 20 साल से प्रदेश में भाजपा कांग्रेस की मिली जुली सरकार चल रही है। उत्त्तराखण्ड की दुखती रग शिक्षा-स्वास्थ्य रोजगार व भ्र्ष्टाचार पर भाजपा-कांग्रेस को गरिया, राजनीति को गर्म करने के साथ यह भी इशारा कर गए कि आप सभी ‘आप” को हल्के में न लेना।

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