उन दिनों काका यानि कि राजेश खन्ना की गुड्डी सातवें आसमान पर उड़ रही थी। हर तरफ दौलत और शोहरत। एक दिन काका को ख़बर लगी कि शक्ति सामंत के पास बहुत बड़ा सब्जेक्ट हैं और वो बहुत जल्दी फिल्म बनाने जा रहे हैं। काका को हैरानी हुई। शक्ति दा फिल्म बना रहे हैं और हमसे पूछा भी नहीं।यह शक्ति दा ही थे जिनकी ‘आराधना’ और ‘कटी पतंग’ ने काका को स्टार बनाया था। काका लपक कर पहुंचे शक्ति दा के घर।
शक्ति दा ने बताया – कई साल से अधूरी ‘जाने अंजाने’ पूरी हो है। अब ‘अमर प्रेम’ बनाने का इरादा है। हीरो की तलाश है।
काका ने खुद को ऑफर किया – मैं हूं न।
शक्ति दा ने राजेश को उपेक्षा से देखा – तुम्हारे पास वक्त कहां है? तुम्हारी डायरी में डेट्स ही नहीं हैं। और मैं नहीं चाहता किसी अन्य प्रोड्यूसर की डेट काट कर मुझे दो और मैं उसकी बद्दुआएं लूं।
काका गहरी सोच में डूब गए। उन्हें सब्जेक्ट के बारे मालूम था। लाईफ़टाईम रोल समझिये। एक शादी-शुदा आदमी घर जैसी ख़ुशी तलाशने के लिए वेश्यालयों के चक्कर लगाता फिरता है। कहानी में कई और भी ट्विस्ट थे।
अचानक काका को आईडिया आया। वो उछल पड़े। प्रॉब्लम साल्व्ड। रात आठ बजे की ज़िंदगी मेरी है। मैं रात काम करूंगा। शक्ति दा ने कुछ सोचा और हामी भर दी।
और दुनिया जानती है कि ‘अमर प्रेम’ ही वो फ़िल्म है जिसमें राजेश खन्ना ने ज़िंदगी की बेहतरीन अदाकारी की और इसी ने उन्हें सुपरस्टार बनाया। इसी का यह संवाद ‘आई हेट टीयर्स, पुष्पा’ उनकी पहचान भी बना। हमारे ख्याल से यह भूमिका काका के सिवाय कोई अन्य कर भी नहीं कर सकता था।
वीर विनोद छाबड़ा नामचीन फिल्म समीक्षक हैं। बालीबुड से जुड़े हस्तियों पर उनके लिखे लेख बहुत पसंद किए जाते हैं। फिल्मी दुनिया से जुड़ी कई छुपी कहानियों को दिलचस्प अंदाज में सामने लाते रहे हैं।
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