जब लखनऊ में मंत्री जी अधिकारी के सम्मान में हाथ जोड़कर हो गए थे खड़े
उत्तराखंड में नेता बनाम अधिकारी की जंग है पुरानी
अविकल थपलियाल/विश्लेषण
केस -1
बात लगभग लगभग 22 -23 साल पुरानी है। लखनऊ में भाजपा सरकार में राज्य मंत्री नारायण राम दास (अब दिवंगत) जी थे। मैं दैनिक हिंदुस्तान,लखनऊ में कार्यरत था। उनके कार्यालय में बैठा था। नए-नए मंत्री बने रामदास जी से कुछ मसलों पर बात चल रही थी। इसी बीच उनके विभाग का एक अधिकारी कक्ष में प्रवेश करता है। और राज्यमन्त्री जी उस अधिकारी के स्वागत में हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं। और जब वो अधिकारी विदा लेता है उस समय भी राज्यमन्त्री रामदास जी सीट से खड़े होकर व हाथ जोड़कर विदा करते हैं। मैं यह सब अवाक भाव से देख रहा था। मुझे इसलिए भी आश्चर्य हुआ कि वो अधिकारी उनके विभाग के किसी सेक्शन से आया था। न ही वो आईएएस IAS था और न ही पीसीएस। मैंने नए नवेले मंत्री जी को उनके प्रोटोकाल की याद दिलाई। लेकिन सज्जनता की सरल मूर्ति नारायण राम दास जी सिर्फ मुस्कुरा कर रह गए। उत्तराखंड के कुमायूं इलाके से मंत्री बने रामदास जी बाद के दिनों में भी ठीक ऐसे ही बने रहे। न कोई हनक न ही कोई फूं-फां। एक जनप्रतिनिधि प्रोटोकॉल को तोड़ छोटे अधिकारी का भी सम्मान करता हुआ। अब यह बहस का मुद्दा हो सकता है कि राज्यमन्त्री जी को ऐसा करना चाहिए था या नही।
इस घटना की याद मुझे इसलिए भी आयी कि उत्तराखंड के मौजूदा मुख्यमन्त्री ने 3 जुलाई को कहा कि अधिकारी खुद को जनप्रतिनिधियों से ऊपर समझने लगते हैं। इसलिए उन्हें याद दिलाना पड़ता है कि उनका स्टेटस क्या है। मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र के इस ताजातरीन बयान से 20 साल पुराना नेता बनाम नौकरशाह का झगड़ा एक बार फिर गर्मा गया है। हालांकि, त्रिवेंद्र राज में भी मंत्री और विधायक अपना गुस्सा दिखा चुके हैं । विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन, यतीश्वरानंद समेत कुछ अन्य विधायक नौकरशाही पर अपनी नाराजगी दिखा चुके हैं।
इधर, 2000 में उत्तराखंड राज्य बना। नए-नए कई मंत्री व विधायक नौकरशाही को कोसते नजर आए। पहले मुख्यमन्त्री स्वामी व नारायण दत्त तिवारी जी के समय से अभी तक जनप्रतिनिधि अधिकारियों के व्यवहार से कई बार आहत नजर आए।
केस-2
चर्चा यह भी खूब रही कि त्रिवेंद्र सरकार में एक वरिष्ठ मंत्री जब मुख्यमन्त्री से मिलने गए तो वहां पहले से मौजूद महिला अधिकारी सीट से नही उठी और न ही कोई अभिवादन किया। यह मामला भी सत्ता के गलियारों में चर्चा का विषय बना रहा। उक्त महिला अधिकारी सत्ता के गलियारों में आजकल भी बहुत पॉवरफुल है।
केस-3
2012 -13 में तत्कालीन मुख्यमन्त्री विजय बहुगुणा से विधायक गणेश गोदियाल ने पौड़ी के जिलाधिकारी चंद्रेश यादव के व्यवहार की शिकायत की। तत्काल फोन मिलाकर मुख्यमन्त्री विजय बहुगुणा ने उक्त जिलाधिकारी को डांटने के बजाय ये कहा कि चन्द्रेश कभी विधायक जी को कॉफी -चाय व बिस्कुट खिलाया करो। नाराज हैं विधायक जी। अपनी ही सरकार के मुख्यमंत्री की बात सुन विधायक गोदियाल मन मसोस कर रह गए। अब ऐसे में नौकरशाही हवा में उड़ने लगे तो किसी को दोष देना ठीक नही।
केस-4
कुछ साल पहले कांग्रेस के कुछ विधायकों ने सचिवालय में एक प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी को उनके ही कक्ष में जमकर धुलाई की। कांच के टेबल तोड़ दी। कक्ष में बैठे अन्य अधिकारियों को भी धमकाया। यह सब करने से पहले कक्ष की कुंडी लगा दी गयी थी। आरोप था कि अधिकारी जनप्रतिनिधियों की सुन नही रहे।
केस-5
मंत्री व विधायक रहे तिलक राज बेहड़ भी सचिवालय के चौथे तल पर अधिकारियों की लापरवाही पर हंगामा बरपा चुके हैं। इसके अलावा बीते 20 साल में उत्तराखंड के कई जनप्रतिनिधि अधिकारियों के रवैये की अपने अपने स्तर से विरोध कर चुके हैं। उत्तराखंड में कुछ अधिकारियों का अहंकारी व्यवहार अब समान्य बात हो गयी।
यह भी सत्य है कि उत्तराखंड में मंत्री-नौकरशाही की जंग थमने का नाम ही नही ले रही। हालांकि, इसके लिए कई अनुभवहीन जनप्रतिनिधि भी कम दोषी नही है।
त्रिवेंद्र राजकाज के तीन साल में भी नौकरशाही के हावी होने की चर्चाएँ आम हैं। कुछ ही अधिकारी सत्ता के केंद्र में हैं। मुख्यमन्त्री स्वंय इन अधिकारियों पर विशेष भरोसा भी करते हैं।
हालांकि, इस बीच जनप्रतिनिधियों ने अधिकारियों की मनमानी का मुद्दा उठाया होगा तभी नौकरशाही पर काफी हद तक निर्भर रहने वाले मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने लीक से हटकर प्रोटोकॉल की याद दिलाई। और अधिकारियों को जनप्रतिनिधियों के सम्मान में खड़ा होने का भी पाठ पिला दिया। यह भी कह दिया कि अधिकारियों को अपना स्टेटस पता होना चाहिए। जबकि लगभग ढाई दशक पहले लखनऊ में उत्तराखंड के मंत्री जी अदने से अधिकारी के सम्मान में स्वंय खड़े हो गए थे। फिलहाल, मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र अपने अधिकारियों से कितना और कब तक जनप्रतिनिधियों का सम्मान करवा पाते हैं। इंतजार करते हैं कल तक…..
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