रामनगर के बिखरे रायते से बिगड़ी कांग्रेस की सेहत

कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरे हरीश रावत को करना पड़ा लालकुआं शिफ्ट

गुरु-चेले की जंग तेज होने की संभावना

रामगंगा में बह चुका बहुत पानी

अविकल उत्त्तराखण्ड

देहरादून। रामनगर में बिखरे रायते व अन्य जगह हुई बगावत ने कांग्रेस के चुनावी समीकरण एक झटके से उलट पुलट दिए। संध्या डालाकोटी, बरखा रानी, मोहित उनियाल के तो टिकट ही काट दिए। जबकि प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष हरीध रावत की रामनगर सीट बदलते हुए तीन सीटों पर नए प्रत्याशी दे दिए।

पूर्व सीएम हरीश रावत की सीट को लेकर कांग्रेस में जारी उहापोह के खेल से भी आएम मतदाता व पार्टी कार्यकर्ताओं में विपरीत संदेश गया

उत्त्तराखण्ड कांग्रेस के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि पार्टी के सबसे बड़े नेता व चुनावी अभियान के सार्थीमक हो टिकट बदल दिया गया। जबकि 24 घण्टे पहले हरीश रावत 28 जनवरी को रामनगर से नामांकन की घोषणा कर चुके थे।

70 में से कई टिकट बांटने वाले हरीश रावत अपनी ही सीट को महफूज नहीं रख पाए। रामनगर में उनके पुराने सिपहसालार रहे रंजीत रावत समर्थकों के 48 घण्टे तक चले विरोध के बाद हाईकमान ने हरीश रावत को रामनगर से लालकुआं शिफ्ट करने में ही भलाई समझी। और कालाढूंगी विधानसभा से प्रत्याशी घोषित हो चुके पूर्व सांसद महेंद्र पाल सिंह को मजबूरन रामनगर शिफ्ट करना पड़ा।

इस फार्मूले के बाद गुरु-चेले के समर्थको के बीच भड़क रही आग को शांत किया गया। हालांकि, अन्य सीटों पर हुए विरोध के बाद कांग्रेसने डोईवाला व ज्वालापुर ( सु.) में मोहित उनियाल व बरखा रानी की जगह गौरव चौधरी व रवि बहादुर को टिकट दिया।

बीते दो दिन से जारी इस कशमकश के बाद एक बात तो यह साफ हो गयी कि न तो कांग्रेस हाईकमान और न ही हरीश रावत अपने लिए एक अदद विधानसभा के लिए होमवर्क नहीं कर पाए। अगर रामनगर से हरीश रावत लड़ने के इच्छुक थे तो काफी पहले से ही पुराने सहयोगी रंजीत रावत व हरीश रावत के बीच पैचअप हो जाना चाहिए था।

हालांकि, स्क्रीनिंग कमेटी के अध्यक्ष अविनाश पांडे ने लगभग दस दिन पहले ही हरीश व रंजीत को बैठा कर रामनगर से रास्ता निकालने की कोशिश की थी। लेकिन यह कोशिश बहुत देर से की गई। तब तक तो रामगंगा में बहुत पानी बह चुका था।

बहरहाल, कांग्रेस के इस टिकट फेरबदल में गुरु-चेले के रिश्ते और भी तल्ख हो गए हैं। रामनगर से जुड़ी सीटों पर इस तल्खी की छाया पड़ने की पूरी उम्मीद है। इस डैमेज को कंट्रोल करने व इन जंगी सीटों का भूगोल बदलने की भी बड़ी चुनौती कांग्रेस के सामने खड़ी दिखाई दे रही है।

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