मानव व जंगली जानवरों के बढ़ते संघर्ष को नियंत्रित करने की बनी रणनीति

मानव-वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने पर जलागम व भारतीय वन्य जीव संस्थान के साथ किया मंथन

अविकल उत्तराखण्ड

देहरादून। अपर मुख्य सचिव आनन्दवर्धन ने मानव-वन्यजीव संघर्ष को समाप्त करने हेतु पायलट प्रोजेक्ट के तहत 5 गांवों को चिह्न्ति कर प्रभावी समाधानों के क्रियान्वयन को आरम्भ करने के निर्देश जलागम विभाग को दिए हैं। एसीएस ने मानव-वन्यजीव संघर्षो को नियत्रित करने हेतु सरकारी प्रयासों के साथ ही सामुदायिक भागीदारी, ग्राम पंचायतों की भूमिका तथा स्थानीय लोगों के सहयोग को भी सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं।

उन्होंने मानव-वन्यजीव संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों और गांवो में माइक्रों प्लान पर गंभीरता से कार्य करने के निर्देश दिए हैं। इसके साथ ही एसीएस ने प्रोजेक्ट के तहत राजाजी-कार्बेट लैण्डस्कैप के आस-पास के ग्रामीण क्षेत्रों में मानव-वन्यजीव संघर्ष के पैटर्न का अध्ययन करने तथा क्षेत्र में मानव-वन्यजीव संघर्ष के प्रति स्थानीय लोगो के रूझान व धारणाओं तथा सामाजिक-आर्थिक प्रभावों का डॉक्यूमेंटेशन करने के भी निर्देश दिए हैं।

अपर मुख्य सचिव जलागम प्रबन्धन एवं कृषि उत्पादन आयुक्त आनन्दवर्धन ने राज्य में मानव-वन्यजीव संघर्ष को नियंत्रित करने के सम्बन्ध में जलागम, भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों एवं कंसलटेंट्स के साथ बैठक की। एसीएस ने लोगों को जंगली जानवरों के हमलों से सतर्क करने हेतु अर्ली वार्निंग सिस्टम विकसित करने के निर्देश दिए हैं।  


बैठक में मानव-वन्यजीव संघर्ष की बढ़ती घटनाओं के पीछे गांवों से पलायन के कारण कम आबादी घनत्व, एलपीजी सिलेण्डरों की त्वरित आपूर्ति सेवा का अभाव, सड़कों में लाइटों का कार्य न करना, पालतू पशुओं की लम्बी अवधि तक चराई,  गांवों की खाली एवं बंजर जमीनों पर लेन्टाना, बिच्छू घास, काला घास, गाजर घास के उगने से जंगली जानवरों को छुपने की जगह मिलना जैसे कारणों के समाधानों पर भी चर्चा की गई।

भारतीय वन्य जीव संस्थान के वैज्ञानिकों तथा जलागम के अधिकारियों ने जानकारी दी कि मानव-वन्य जीवन संघर्ष को नियंत्रित करने हेतु एक प्रोजेक्ट अल्मोड़ा, देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल तथा पौड़ी गढ़वाल में संचालित किया जाएगा।

फिलहाल यह प्रोजेक्ट पौड़ी गढ़वाल जनपद के कुछ क्षेत्रों जिसमें कार्बेट तथा राजाजी टाइगर रिजर्व भी सम्मिलित है, में क्रियान्वित किया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के तहत सर्वाधिक मानव-वन्यजीव संघर्षो वाले गांवो जिनमें 17 से अधिक मानव-वन्यजीव संघर्ष की घटनाएं हुई है, की पहचान की गई है। इन 15 गांवों में गोहरी फोरेस्ट रेंज में स्थित गंगाभोगपुर गांव, लाल ढांग फोरेस्ट रेंज में स्थित किमसर, देवराना, धारकोट, अमोला, तचिया, रामजीवाला, केस्था, गुमा, कांडी, दुगड्डा में स्थित किमुसेरा, सैलानी, पुलिण्डा, दुराताल तथा लैंसडाउन की सीमा में कलेथ गांव हैं।


भारतीय वन्य जीव संस्थान, देहरादून के वैज्ञानिकों ने जानकारी दी कि फसलों को नुकसान पहुंचाने हेतु जंगली सूअर तथा भालू मुख्यतः उत्तरदायी है। मानव-वन्यजीव संघर्ष से प्रभावित जिन गाँवो में सर्वे किया गया उन्होंने गेंहू का उत्पादन बन्द कर दिया है।

ग्रामीणों ने मंडुआ, हल्दी तथा मिर्चो का उत्पादन आरम्भ कर दिया है ताकि अनुमान लगाया जा सके कि क्या इन फसलों के उत्पादन से कुछ अन्तर पडे़गा। 50 प्रतिशत गांवों में सभी मौसमों में 60-80 प्रतिशत फसलें वन्यजीवों द्वारा नष्ट की जा रही है। 100 प्रतिशत ग्रामीणों ने माना कि यदि वन्यजीवों द्वारा फसलें नष्ट न की जाती तो कृषि कार्य उनके लिए लाभकारी होता। प्रभावित गांवों के कुल कृषिक्षेत्र का 50 प्रतिशत क्षेत्र खाली पड़ा है।


बैठक में परियोजना निदेशक जलागम नवीन सिंह बरफाल, उपनिदेशक डा0 एस के सिंह, डा0 डी एस रावत, स्टेट टैक्नीकनल कोर्डिनेटर डा0 जे सी पाण्डेय, भारतीय वन्य जीव संस्थान देहरादून के वैज्ञानिक डा0 के रमेश, सीनियर टैक्नीकल ऑफिसर डा0 मनोज कुमार अग्रवाल, रिसर्च इन्टर्न सुश्री श्रुति, सुश्री तोमाली मण्डल, कंसलटेंट श्री विकास वत्स तथा अन्य वरिष्ठ अधिकारी उपस्थित थे।

uttarakhand,Strategy made to control the growing conflict between humans and wild animals

Total Hits/users- 30,52,000

TOTAL PAGEVIEWS- 79,15,245

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *