प्रथम विश्व युद्ध का ऐसा स्मारक जिसकी नींव  रण बाकुरों ने  स्वयं अपने हाथों से रखी

उत्तराखण्ड के चमोली जिले की उर्गम घाटी के तीन वीर योद्धा गए थे प्रथम विश्व युद्ध में हिस्सा लेने


वरिष्ठ पत्रकार क्रांति भट्ट

प्रथम विश्व व द्वितीय विश्व में उत्तराखंड के रण बांकुरों ने दुनिया में अपनी वीरता का लोहा मनवाया था । यही कारण है कि यहां के दो रणबांकुरों  दरवान सिंह और गब्बर सिंह को  तत्कालीन सरकार द्वारा द्वारा शौर्य  के बड़े पदक  विक्टोरिया  क्रास से सम्मानित किया गया । इसी उत्तराखंड में एक ऐसा भी स्मारक है । जिसकी नींव प्रथम विश्व युद्ध में शामिल हुये तीन रण बांकुरों ने स्वयं अपने हाथों से तब रखी । जब वे युद्ध में शामिल होने के लिये अपने घर गांव से निकले थे ।


युद्ध में शामिल होने के लिये इन तीनों रणबांकुरों ने अपने हाथों से जो स्मारक तैयार किया । वह स्मारक और वह पत्थर जो युद्ध शामिल होने जाते समय   रण बांकुरे अमर सिंह ने अपने नाम का अपने हाथों से रखा था । वह आज भी स्मारक पर मौजूद है ।

दिलचस्प  है इस स्मारक की मार्मिक कहानी

जब विश्व युद्ध  शुरू हुआ तो  युद्ध में शामिल होने के लिये  सेना के दो रण बांकरे  उर्गम घाटी के भी थे । जिस दिन  युद्ध में शामिल होने के लिये  बडगिंडा गांव के  सैनिक अमर सिंह उर्फ अमर देव  , पल्ला गांव के गणेश सिंह और देव ग्राम के विजय सिंह  घर और गांव से निकले । तीनों ने युद्ध में जाने के दिन 1914 को ग्राम पंचायत ल्यांरी थैणा और सलना गांव के बीच गौरागंणा नामक स्थान पर  पत्थरों की एक शिला को स्मारक स्वयं बनाया ।

यहां तीनो ने  अपने नाम के तीन पत्थर  निशान के तौर पर रखे । कि जो युद्ध से  जीवित वापस लौटेगा ।  वह अपने नाम पर अपने हाथों से रखा पत्थर स्वयं हटा लेगा । उर्गम घाटी के सामाजिक कार्यकर्ता और  लेखक रघुवीर सिंह नेगी इस  अदभुत स्मारक के बारे में जानकारी देते हुये बताते हैं कि प्रथम विश्व में शामिल होने  के बाद और जीवित  सबसे पहले  घर वापस लौटे विजय सिंह और फिर गणेश सिंह ने उस स्मारक रखे अपने नाम के  और अपने हाथों से रखे पत्थर हटा लिये । यह संदेश  और संकेत देने के लिये कि वे सकुशल लौट  आये हैं । पर प्रथम  विश्व युद्ध में शामिल  अमर सिंह  शहीद हो गये थे । अंग्रेज सरकार ने उनकी  वीरता पर पदक भी प्रदान किये । जो उनके परिजनों के पास आज भी हैं ।

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