ग्राफिक एरा में जुटे नामचीन कवि व शायर
पद्मश्री सुरेंद्र दुबे को कवि सम्मेलन में डेढ़ लाख रुपये के साथ ग्राफिक एरा काव्य गौरव सम्मान दिया गया । मशहूर शायर प्रो. वसीम बरेलवी को एक लाख रुपये के साथ ग़ज़ल सम्राट के सम्मान से नवाजा गया
अविकल उत्तराखण्ड
देहरादून। ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में देश के नामचीन कवियों ने अपनी रचनाओं से आज श्रोताओं को हंसते हंसते लोटपोट कर दिया। कवियों ने कई घंटे हंसाने के साथ ही देश और दुनिया के सुलगते हुए सवालों को भी बहुत सहज तरीके से शब्द दिए। इस मौके पर प्रख्यात कवि पद्मश्री सुरेंद्र दुबे को ग्राफिक एरा काव्य गौरव सम्मान से नवाजा गया।
ग्राफिक एरा के 20वें कवि सम्मेलन ने हर साल की तरह इस बार रोजमर्रा की भागदौड़ के बीच लोगों को हंसाने गुदगुदाने के साथ ही एक अलग सुकून का अहसास कराया। प्रसिद्ध हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने कई कविताएं सुनाकर श्रोताओं को बार बार तालियां बजाने पर मजबूर कर दिया। पति पत्नी की खुशी का राज अपने चुटीले अंदाज में बताकर उन्होंने लोगों को खूब हंसाया। उन्हीं के शब्दों में- “पति और पत्नी तभी खुश रह सकते हैं, जब पत्नी गूंगी हो और पति बहरा हो…”
पद्मश्री सुरेंद्र शर्मा ने गंभीर मुद्दे भी अपने खास अंदाज में उठाये- “मंदिरों मस्जिद की या किसी इमारत की, माटी तो लगी भाई उसमें मेरे भारत की, बिखरे बिखरें हैं सभी आओ एक घर में रहें, क्या पता तुम न रहो, क्या पता हम न रहें….”
हास्य कवि पद्मश्री डॉ सुरेंद्र दुबे ने भी श्रोताओं से खूब ठहाके लगवाये। उन्होंने सामाजिक ताने बाने से लेकर सियासत तक पर शब्दों के तीर चलाये। उनकी कविताएं भी बहुत पसंद की गईं – “इतना विकास आया है कि आदमी भैंस पर बैठा है और हेलमेट लगाया है, पुलिस वाले ने रोक दिया, तो अगले ने कहा कि लगाया तो हूं, क्यों रोक रहे हो, … हमको कानून मत सिखाइये भैंस फोर व्हीलर है लाइसेंस दिखाइये…”
उन्होंने सामाजिक मुद्दों को भी बहुत खूबसूरत अंदाज में छुआ- “फली फूली टहनियां जड़ों से जुड़ी रहती हैं, बेटियां कहीं भी रहें मां बाप से जुड़ी रहती हैं…”
प्रोफेसर वसीम बरेलवी की गजल और शेर लोगों को दिलो-दिमाग तक उतर गए।
वसीम बरेलवी के लोकप्रिय शेर पर लोगों ने देर तक तालियां बजाईं –“जहां रहेगा वहीं रौशनी लुटाएगा, किसी चिराग का अपना मकां नहीं होता…” श्रोताओं की मांग पर उन्होंने कई बड़ी बातें छोटे छोटे शेरों के जरिये कहीं और लोगों का दिल जीत लिया- “छोटी छोटी बाते करके बड़े कहां बन पाओगे, पतली गलियों से निकलो तो खुली सड़क पे आओगे…” “जो तेरे साथ उड़ा था वो आसमान में है, जरूर कोई कमी तेरी ही उड़ान में है…”, “सरपरस्ती भी कही जाए, तो बस नाम की है, आसमां तेरी बलंदी मेरे किस काम की है…”
कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए हास्य व्यंग्य के प्रख्यात कवि डॉ प्रवीण शुक्ल ने आज के दौर की ओर इशारा करते हुए सुनाया-तू ही मेरी एफ. बी. है, तू ही मेरी इंस्टा है, साइट भी तू ही मेरी और मेरा नेट तू, चाकलेट दिवस पे क्या दूं चाकलेट तुझे साठ किलो की है खुद मेरी चाकलेट तू…। डॉ प्रवीण शुक्ल को श्रोताओं की मांग पर कई रचनाएं सुनाईं। उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिये गहरा पैगाम भी दिया- “कैसे कह दूं कि थक गया हूं मैं, जाने किस किस का हौसला हूं मैं, तू मेरी रूह में समाया है, सबसे कह दे तेरा पता हूं मैं…”
हरियाणा से आये कवि अनिल अग्रवंशी इस कवि सम्मेलन पहले कवि के रूप में मंच पर आये और खूब जमे। उन्होंने समाज में बेटियों के सम्मान और उन्हें आगे बढ़ने के मौके देने की जोरदार पैरवी करते हुए कविता सुनाई- “इन्हें बेटा बना लो तो ये इतिहास छू लेंगी, करो विश्वास बेटी पर तो ये विश्वास छू लेंगी, कभी बेटी को जीवन में नजरअंदाज मत करना, जरा सा पंख खोलोगे तो ये आकाश छू लेंगी…।”
उनकी रचना- “चेहरे पे हंसी व दिल में खुशी होती है, सही मायमें में यही जिंदगी होती है, हंसना किसी इबादत से कम नहीं, किसी और को हंसा दो तो बंदगी होती है…”
लखनऊ से आये वीर रस के कवि आशीष अनल ने अपनी कविताओं से श्रोताओं में जोश भर दिया। उनकी कविताएं – “ये तिरंगा द्रौपदी का चीर नहीं है, ये किसी के बाप की जागीर नहीं है, कोठियों में पाप लिये रूकेगा नहीं, ये तिरंगा अब झुकेगा नहीं…” और “मेरा है प्रणाम उस आन बान को यानि मेरे सैनिकों के स्वाभिमान को, ना दिन रैन देखे ना सुबह शाम, तन मन कर दिया देश के ही नाम, मौत को भी जो बना के रख दे गुलाम…” भी बहुत पसंद की गईं।
कवि सम्मेलन का श्रीगणेश ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डॉ कमल घनशाला ने कवियों के साथ दीप प्रज्ज्वलित करके किया। कवि सम्मेलन में ग्राफिक एरा के मुख्य संरक्षक आर सी घनशाला, ग्राफिक एरा एजुकेशनल सोसायटी की अध्यक्षा श्रीमती लक्ष्मी घनशाला, ग्राफिक एरा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस की वाइस चेयरपर्सन श्रीमती राखी घनशाला के साथ ही वरिष्ठ पदाधिकारी, शिक्षक, छात्र-छात्राएं शामिल हुए। विदेशी छात्र-छात्राओं ने भी भाषा अलग होने के बावजूद कवि सम्मेलन का लुत्फ उठाया।
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