विधि आयोग ने कहा था, एक कानून बनाना न तो जरूरी है और न ही वांछित
अविकल उत्तराखंड/देहरादून। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि , भारत के संविधान में आस्था रखने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए सवाल यह नहीं होना चाहिए कि समान नागरिक संहिता (यू सी सी) होनी चाहिए या नहीं । उन्होंने कहा कि असली सवाल तो यह है कि समान नागरिक संहिता कैसे कब और किस सिद्धांत के आधार पर लागू की जाए। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि , बाबा साहब अम्बेडकर की अध्यक्षता में बनी संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी ने बहुत अधिक चर्चा के बाद समान नागरिक संहिता को राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के तहत संविधान के अनुच्छेद-44 में रखते हुए सरकार के लिए यह हिदायत दी थी कि ‘भारत के समस्त राज्य क्षेत्र में नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता प्राप्त करने का प्रयास’ किया जाएगा। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि , अंबेडकर के अलावा नेहरू , लोहिया आदि द्वारा समान नागरिक संहिता को नीति निर्देशक तत्वों में रखने के पीछे मंशा यह थी कि , इन्हें लागू करना देश के लिए एक लक्ष्य होगा।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि , पिछले सप्ताह से देश की जनता से समान नागरिक संहिता पर राय मांगी जा रही है। जबकि इससे पहले भी मोदी जी के नेतृत्व वाली भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा जस्टिस चौहान की अध्यक्षता में गठित विधि आयोग ने भी नवंबर 2016 में इसी मुद्दे पर जनता की राय मांगी थी। उस समय बिधि आयोग को थोड़े-बहुत नहीं बल्कि 75,378 सुझाव मिले थे। उसके आधार पर 2018 में विधि आयोग ने 185 पृष्ठ की एक लंबी रिपोर्ट पेश की थी।
उन्होंने बताया कि , तब बिधि आयोग ने रिपोर्ट में स्पष्ट रूप से कहा था कि, अभी सभी समुदायों के अलग-अलग पारिवारिक कानून के बदले एक संहिता बनाना न तो जरूरी है और न ही वांछित। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि , पांच साल पहले भाजपा सरकार द्वारा गठित बिधि आयोग की इस रिपोर्ट के बाद भी 2023 में दोबारा इसी प्रक्रिया को दोहराने से सरकार की मंशा में कहीं न कहीं संदेह होता है कि पिछली रिपोर्ट भाजपा की राजनीति के लिए मुफीद नहीं थी।
यशपाल आर्य ने कहा कि, भारत जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया का सबसे बड़ा देश है जिसमें न केवल कई धर्मों और संप्रदायों के लोग निवास करते हैं बल्कि एक धर्म को मनाने वाले हर सम्प्रदाय के शादी , तलाक , उत्तराधिकार और पारिवारिक सम्पति के बंटवारे के परंपरागत तरीके भी अलग-अलग हैं। उन्होंने कहा कि हिंदुओं में ही पितृ और मातृसत्तात्मक समाजों में अलग अलग व्यावथाएँ हैं तो देश में निवास करने वाली लगभग 12 प्रतिशत जनजाति में तो हर जनजाति के इन विषयों में अलग-अलग व्यवस्थाएं हैं। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि , अकेले उत्तराखंड में हिन्दू धर्म मानने वाली आधा दर्जन से अधिक जनजातियां निवास करती हैं जिनके पारिवारिक रीति रिवाज अलग अलग हैं और अभी उन्हें कानूनी मान्यता मिली हुई है।
यशपाल आर्य ने कहा कि, आजादी के तुरंत बाद से हिन्दू महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में अधिकार दिलाने वाला कानून को लाने के प्रयास 2005 में मनमोहन सिंह की सरकार में जाकर पूरे हुए। उन्होंने कहा कि इसके बाबजूद भी हिंदू समुदाय पर लागू होने वाले पारिवारिक कानून में आज भी बेटियों को बेटों के समान उत्तराधिकार अधिकार पूरी तरह नहीं मिल पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि ये भी एक बिडम्बना है कि , बाल विवाह आज भले ही कानूनन अपराध है लेकिन एक बार बाल विवाह होने के बाद इसे खारिज नही किया जाता है ।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि , हिंदुओं में उत्तराधिकार के मामले में लागू होने वाले मिताक्षरा कानून के तहत पैतृक संपत्ति में हिस्से का कानून बदलने की मांग की जाती है और टैक्स के लिए ‘हिंदू अविभाजित परिवार’ जैसी व्यवस्था का अब कोई औचित्य नहीं बचा है। देश के सिख समुदाय ने स्वयं पर हिन्दू पारिवारिक कानून लागू करने पर गंभीर आपत्ति की हैं। इसी तरह ईसाई समुदाय के कानून में तलाक विरोधी व्यवस्था और गोद लेने के कानून में बदलाव की जरूरत है। यशपाल आर्य ने कहा कि अभी भी देश में स्पेशल मैरिज एक्ट जैसा कानून है जिसके तहत किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के जोड़े शादी रजिस्टर्ड कर सकते हैं। लेकिन इस कानून के तहत बहुत ही कम जोड़े अपने शादियों को रजिस्टर्ड करते हैं।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि , जबअभी जब हम देश के सबसे बहुसंख्यक धर्म हिंदु के बिभिन्न संप्रदायों को ही एक पारिवारिक कानून के लिए राजी नही कर पाए हैं तो फिर सरकार द्वारा देश में बहुसंख्यक समाज के पारिवारिक कानूनों को अल्पसंख्यकों पर थोपने के प्रचार की मंशा समझ से परे है। नेता प्रतिपक्ष यशपाल आर्य ने कहा कि, समान नागरिक संहिता के सवाल पर एक नया बखेड़ा शुरू करने की बजाय बेहतर होगा अगर मोदी सरकार अपने ही द्वारा नियुक्त किए पिछले विधि आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करते हुए सभी समुदायों के पारिवारिक कानूनों में तर्कसंगत और संविधान सम्मत बदलाव करने की शुरूआत करे।
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