मंगलवार आठ अगस्त को सीएम करेंगे पुरुस्कार वितरण
अविकल उत्तराखण्ड
देहरादून। सीएम धामी 8 अगस्त को प्रदेश की तेरह चयनित अभ्यर्थियों को वीरांगना तीलू रौतेली पुरुस्कार से सम्मानित करेंगे। मंगलवार की सुबह 11.30 बजे
‘राज्य स्त्री शक्ति’ ‘‘ तीलू रौतेली’’ पुरस्कार एवं आंगनबाड़ी कार्यकर्त्री पुरस्कार देंगे।
चमोली जिले की अंतरराष्ट्रीय स्तर की।खिलाड़ी मानसी नेगी समेत तेरह स्त्री शक्तियों को पुरुस्कार मिलेगा।
जानें, कौन थी वीरांगना तीलू रौतेली
प्रदेश सरकार 8 अगस्त को वीरांगना तीलू रौतेली पुरस्कार के लिए चयनित महिलाओं का सम्मान करने जा रही है। तीलू की जयंती 8 अगस्त को विभिन्न सेक्टर में विशेष कार्य करने वाली महिलाओं को तीलू रौतेली सम्मान से नवाजा जाता है।
यह जानना भी जरूरी है कि आखिर तीलू रौतेली कौन थी। “अविकल उत्तरराखंड” ने WE गढ़वाली से उत्त्तराखण्ड की लक्ष्मीबाई वीरांगना तीलू रौतेली की गाथा पाठकों तक पहुंचाने की कोशिश की है। WE गढ़वाली से साभार व आभार-
मात्र 15 साल की उम्र में रणभूमि में कूदने वाली विश्व की एकमात्र वीरांगना “तीलू रौतेली” जिन्हें गढ़वाल की लक्ष्मीबाई भी कहा जाता है । तीलू गढ़वाल चौंदकोट के गुराड गांव की रहने वाली थी और इनका वास्तविक नाम तिलोत्तमा देवी था ।
तीलू रौतेली का जन्म 1663 में हुआ था। गढ़वाल में प्रति वर्ष 8 अगस्त को इनकी जयंती मनाई जाती है। तीलू रौतेली के पिता का नाम भूपसिंह रावत और माता का नाम मैणावती देवी था । इनके दो भाई भी थे जिनका नाम भगतु और पथ्वा था। इनके पिता भुपसिंह बहुत ही वीर और साहसी आदमी थे जिस कारण से गढ़वाल के नरेश मानशाह ने इन्हें गुराड गांव की थोकदारी दी थी वहीं ये गढ़वाल नरेश के सेना में भी थे। तीलू रौतेली का बचपन का समय बीरौंखाल के कांडा मल्ला गांव में बीता जिस कारण से आज भी कांडा मल्ला में उनके नाम का कौथिग लगता है।
मात्र 15 साल की उम्र में रणभूमि में कुदने वाली विश्व की एकमात्र वीरांगना “तीलू रौतेली” जिन्हें गढ़वाल की लक्ष्मीबाई भी कहा जाता है । तीलू पौड़ी गढ़वाल चौंदकोट के गुराड गांव की रहने वाली थी और इनका वास्तविक नाम तिलोत्तमा देवी था । तीलू रौतेली का जन्म 1663 में हुआ था। गढ़वाल में प्रति वर्ष 8 अगस्त को इनकी जयंती मनाई जाती है। तीलू रौतेली के पिता का नाम भूपसिंह रावत और माता का नाम मैणावती देवी था । इनके दो भाई भी थे जिनका नाम भगतु और पथ्वा था। इनके पिता भुपसिंह बहुत ही वीर और साहसी आदमी थे जिस कारण से गढ़वाल के नरेश मानशाह ने इन्हें गुराड गांव की थोकदारी दी थी वहीं ये गढ़वाल नरेश के सेना में भी थे। तीलू रौतेली का बचपन का समय बीरौंखाल के कांडा मल्ला गांव में बीता जिस कारण से आज भी कांडा मल्ला में उनके नाम का कौथिग (मेला) लगता है।
महज 15 साल की उम्र में तीलू रौतेली (Tilu Rauteli) की सगाई पट्टी म़ोदाडसयु के इड़ा गांव के भवानी सिंह नेगी के साथ तय हो गयी थी। इन्हीं दिनों गढ़वाल मे गढ़वाल नरेश और कत्यूरों के बीच लगातार युद्ध छिड़ रहा था। जिसमें कत्यूर राजा गढ़वाल में लगातार हमले कर रहे थे। कत्यूरी राजाओं ने अपनी सेना को और अधिक मजबूत कर गढ़वाल पर हमला बोला दिया। खैरागढ़ में यह लडाई लडी गई जिसका गढ़वाल नरेश मानशाह और उनकी सेना ने डटकर सामना किया परंतु हार के बदले कुछ नहीं मिला। उन्हें युद्ध छोडकर चौंदकोट गढ़ी में शरण लेनी पड़ी। मानशाह के रणभूमि को छोड़ने के कारण गढ़वाल नरेश के सेनापति भूप सिंह रावत और उनके दोनों बेटे भगतु और पथ्वा को युद्ध संभालना पडा और भीषण हुए इस युद्ध में भूपसिंह रावत मारे गये। यह युद्ध आगे चलता गया और अलग-अलग क्षेत्रों में फैलता गया। भूप सिंह के मरने के बाद उनके दोनों बेटों (भगतु और पथ्वा) और तीलू रोतेली के मंगेतर भवानी सिंह ने युद्ध की कमान संभाली लेकिन कांडा युद्ध में ये तीनो भी मारे गये। अपने पिता, भाइयों और मंगेतर के मारे जाने के बाद तीलू बिल्कुल टूट गई और उन्होंने फिर कभी शादी न करने का फैसला ले लिया।
( WE GARHWALI से साभार)
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