नजूल नीति के धरातलीय क्रियान्वयन पर सरकार की ठोस निगरानी की दरकार
नजूल भूमि के कब्जेधारकों को मालिकाना हक दिलाने में हरिद्वार जिला रहा सुस्त
तो नजूल नीति पर कुंडली मारकर बैठ जाते हैं अधिकारी
स्थानीय निकाय की जिम्मेदारी भी फिक्स करे सरकार
अविकल थपलियाल
देहरादून। बेशक भाजपा सरकार ने दो साल पुरानी नजूल नीति की समय सीमा बढ़ा दी । लेकिन इन
दो साल में जिलों के डीएम व विकास प्राधिकरण निकाय की नजूल भूमि पर काबिज कितने पट्टेधारकों को मालिकाना हक दे पाए? शासन स्तर पर नजूल भूमि को फ्री होल्ड कराने के मामलों की कितनी निगरानी हो पाई? कितनी फ़ाइल स्वीकृत कर काबिज पट्टेधारकों को भूमिधरी अधिकार मिला। और सबसे बड़ा सवाल कि नजूल नीति के तहत कितना राजस्व सरकारी खजाने में आया। इन चंद मौजूं सवालों का जवाब तलाशना अभी बाकी है।
सरकार की नजूल सम्बन्धी नीतियों पर कितने अधिकारी कुंडली मारकर बैठ गए। नजूल नीति की अवधि बढ़ने के बाद यह मुद्दा भी कब्जेधारकों की दुनिया और सत्ता के गलियारों में उठ रहा है। यह भी सवाल कौंध रहा है कि कहीं अधिकारी सरकार की नीति से बड़े तो नहीं हो गए हैं। उत्तराखण्ड में चार लाख हेक्टेयर नजूल भूमि है।
यह सवाल इसलिए भी नये सिरे से उठ रहे हैं कि गुरुवार को धामी सरकार ने प्रदेश में नजूल भूमि के कब्जाधारकों को फ्रीहोल्ड कराने में लिए और समय दे दिया है। कहने का मतलब यह कि धामी कैबिनेट ने नजूल नीति 2021 की समय सीमा बढ़ा दी। बहरहाल, नजूल भूमि पर काबिज लोगों को फ्रीहोल्ड करा मालिकाना हक देने सम्बन्धी धामी सरकार की विस्तारित अवधि लिए नजूल नीति के समयबद्ध क्रियान्वयन पर बहस छिड़ गई है।
नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड करा भूमिधरी अधिकार से जुड़ी नीति के तहत हजारों कब्जेदारों के मामले जिला प्रशासन व विकास प्राधिकरणों में अटके पड़े हैं।2021 के बाद नजूल भूमि से जुड़े अहम जिलों में अधिकारी कितने मुस्तैद रहे। और सरकार की जनहित से जुड़ी इस नीति के प्रति कितने संवेदनशील रहे। यह सब कुछ जिलों से मिल रहे आंकड़ों से साफ हो जाता है।
किस जिले में नजूल भूमि के मामले सुलटे
मिली जानकारी के मुताबिक बीते दो साल में हरिद्वार जिला नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड कराने में फिसड्डी साबित हुआ। पट्टेधारकों को मालिकाना हक देने सम्बन्धी फ़ाइल एक इंच भी आगे नहीं बढ़ी। इस जिले में नजूल मामलों से जुड़ी फाइलों पर सकारात्मक कार्रवाई करने की जहमत ही नहीं उठाई गई। सिर्फ मामले निरस्त किये गए। जबकि हरिद्वार जिले में नजूल भूमि को फ्री होल्ड कराने सम्बन्धी सैकड़ों मामले लंबित है। हरिद्वार जिले के पट्टेधारकों के हित से जुड़े फ्रीहोल्ड मामलों पर प्रशासन/प्राधिकरण की ओर से ठंडा रुख अपनाना भी कई सवाल खड़े कर रहा है।
इसके अलावा बीते दो साल से उधमसिंहनगर जिला प्रशासन ने लगभग 500 से अधिक पट्टेधारकों को मालिकाना हक देते हुए नजूल भूमि फ्री होल्ड कराई गयी। इस जिले में 24 हजार से अधिक परिवार नजूल की भूमि पर काबिज हैं। इसी अवधि में 2021 के बाद नैनीताल जिले में 400 से अधिक मामलों में नजूल भूमि फ्रीहोल्ड कर सरकारी खजाने में धनराशि जमा करवाई गई।
मसूरी-देहरादून विकास प्राधिकरण के वीसी बंशीधर तिवारी का कहना है कि देहरादून जिले के शहरी व ग्रामीण इलाकों से जुड़े कब्जेधारकों व पट्टेधारकों को मालिकाना हक दिलाने की दिशा में तेजी से काम हो रहा है। उन्होंने कहा कि सीएम के निर्देश व कैबिनेट के फैसले के बाद नजूल भूमि से जुड़े पट्टेधारकों को मालिकाना हक दिलाने में विशेष तेजी आएगी।
इधर, कांग्रेस के पूर्व विधायक राजकुमार का कहना कि उनके कार्यकाल में दून के मुख्य पलटन व घोसी गली बाजार के पट्टेधारक दुकानदारों को मालिकाना हक दिया गया। ग्रामीण इलाके जो अब निगम के दायरे में आ गये,वहां अभी भी नजूल भूमि कब्जेधारक बने हुए हैं।
गौरतलब है कि देहरादून में डीएम के बजाय मसूरी- देहरादून विकास प्राधिकरण के पास नजूल भूमि को फ्रीहोल्ड कराने की जिम्मेदारी है। दो साल पहले तक हरिद्वार जिले में डीएम के पास ही यह जिम्मा था। लेकिन कुछ महीने पहले ही डीएम से यह चार्ज हटाकर हरिद्वार विकास प्राधिकरण को सौंपा गया।
जिले के आला अधिकारियों की सतत निगरानी भी जरूरी
नजूल भूमि से जुड़े कैबिनेट के ताजे फैसले के बाद जिला प्रशासन व प्राधिकरण के अहम पदों पर बैठे अफसरों की कार्यशैली की निगरानी भी कम चनौतीपूर्ण नहीं। बीते साल के आँकडे बता रहे हैं।कि किस किस जिले में कब्जेधारकों को मालिकाना हक देने की दिशा में कितनी प्रगति हुई । और किस शहर व नगर में नजूल भूमि नीति से जुड़े मामलों को फाइलों में ही कैद करके रखा गया।
साफ संकेत हैं कि किसी भी जनहित से जुड़े मामलों पर शासन की सतत नजर से ही नीति धरातल पर उतरेगी। और जनता को उस नीति का लाभ मिलेगा।
बहरहाल, नजूल नीति के क्रियान्वयन के लिए शासन स्तर पर कमेटी के गठन के बाद यह पता चल सकेगा कि किस जिले में किस अधिकारी ने नजूल भूमि से जुड़े कितने मामले हल कर राजकोष की वृद्धि करवाई।
नजूल भूमि के मायने
नजूल भूमि वह होती है, जो न तो सरकार ( Government ) की होती है और न ही राजस्व गांव की। इसलिए नजूल भूमि पर बसे लोगों को मालिकाना हक नहीं मिला। शुरुआती दौर में पाकिस्तान व बांग्लादेश से आये शरणार्थियों को नजूल की भूमि पर बसाया गया था।
निकायों की जिम्मेदारी फिक्स करेगी सरकार
नजूल भूमि पर कब्जेधारकों को मालिकाना हक देने के मामलों में तेजी लाने के लिए स्थानीय निकायों की जिम्मेदारी भी फिक्स करना जरूरी हो गया। नगर निकाय ही कब्जेधारक/पट्टेधारकों से जुड़ी रिपोर्ट समय से जिला प्रशासन को मुहैया कराए तो फैसला लेने में आसानी रहेगी।
कई विधानसभा प्रभावित करते हैं पट्टेधारक
प्रदेश में करीब दो लाख लोग नजूल भूमि पर बसे हुए हैं। और डेढ़ दर्जन से अधिक विधानसभाओं को प्रभावित करते हैं।
रुद्रपुर में करीब 24 हजार परिवार नजूल भूमि पर बसे हुए हैं। इसके साथ ही दून, हल्द्वानी समेत अन्य शहरों के कई बाजार तक नजूल की भूमि पर बसे हैं। नतीजतन, नजूल भूमि का नियमितिकरण एक बड़ा मुद्दा रहा है।
नजूल नीति- समय के आईने में
गौरतलब है इस नीति की अवधि बीते 11 दिसंबर को समाप्त हो गयी थी। इस नीति को राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिलने की वजह से नजूल भूमि के कब्जेधारकों व पट्टेधारकों के सामने फ्री होल्ड कराने सम्बन्धी दिक्कतें खड़ी हो गयी थी। लिहाजा,धामी सरकार को नजूल नीति की समय सीमा बढ़ानी पड़ी।
मौजूदा समय में उत्तराखंड के मुख्यतया मैदानी इलाकों देहरादून, हल्द्वानी, हरिद्वार,रूड़की, कोटद्वार, रामनगर व उधमसिंहनगर से जुड़े निकायों की लगभग 400 हेक्टेयर नजूल जमीन पर पट्टेधारकों का कब्जा है।
2009 से चल रही नजूल भूमि को फ्री होल्ड कराने की कवायद के बीच 2018 में भाजपा सरकार ने नई नजूल नीति लागू की थी। इस नजूल नीति को हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद 2021 में आयी नजूल नीति में जमीन को फ्रीहोल्ड कराने के लिए सर्किल रेट के आधार पर शुल्क की दरें भी तय की गई।
पुष्कर धामी सरकार ने उत्तराखंड नजूल भूमि प्रबंधन,व्यवस्थापन एवं निस्तारण विधेयक भी पारित किया।
कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब प्रचलित सर्किल दर पर भूमि मूल्य निर्धारण का 5 प्रतिशत की धनराशि राज्य कोषागार में जमा करने पर विकास प्राधिकरण, स्थानीय निकाय, नगर पंचायत, नगरपालिका, नगर निगम, जिला पंचायत के पक्ष में
नियमानुसार फ्रीहोल्ड किया जा सकेगा।
2009 से नजूल नीति पर हो रही कवायद
उत्तराखण्ड सरकार ने 2009 में नजूल नीति का ड्राफ्ट फाइनल किया था। इसके बाद प्रदेश के विभिन्न जिलों में लीज और कब्जे की भूमि को सर्किल रेट के आधार पर फ्री-होल्ड कराकर सम्बंधित लोगों को भूमिधरी का अधिकार दिया गया। और नियमों के तहत निर्धारित धनराशि भी जमा कराई।
इसके बाद त्रिवेंद्र सिंह रावत के शासन में 2018 में नई नजूल नीति हाईकोर्ट ने निरस्त कर दी। बाद में सुप्रीम कोर्ट से राहत मिलने के बाद 2021 से नजूल मामलों की फ़ाइल आगे बढ़ी। यही नजूल नीति 2021 को राष्ट्रपति की मंजूरी मिलनी अभी बाकी है। इसीलिए धामी सरकार ने नजूल नीति 2021 को यथावत रखते हुए समय सीमा बढ़ा दी।
देखें, 11 जनवरी के कैबिनेट फैसला
राज्य में प्रचलित नजूल नीति, 2021 के प्रभावी / लागू रहने की अवधि बढ़ाये जाने संबंधी निर्णय
नजूल नीति, 2021 के प्रभावी / लागू रहने की समाप्ति की अवधि को दिनांकः 11.12.2023 से बढ़ाते हुए, जब तक कि राज्य में प्रस्तावित ‘उत्तराखण्ड नजूल भूमि प्रबंधन, व्यवस्थापन एवं निस्तारण अधिनियम, 2021’ के अन्तर्गत नियमावली प्रख्यापित नहीं हो जाती है, तब तक, उक्त नजूल नीति यथावत प्रभावी / लागू रहेगी।
नजूल नीति, 2021 के प्रस्तर-16 (2) में प्रदत्त व्यवस्था ‘स्थानीय निकाय / विकास प्राधिकरण 35 प्रतिशत प्रचलित सर्किल दर पर 05 प्रतिशत स्वमूल्यांकन की धनराशि राजकोष में आवेदन करेंगे’ में संशोधन करते हुए पूर्व नजूल नीति, 2009 में प्रदत्त व्यवस्था ‘स्थानीय निकाय, नगर पंचायत, नगरपालिका, नगर निगम, जिला पंचायत (इनके पक्ष में फ्रीहोल्ड नियमानुसार मूल्य निर्धारण के 05 प्रतिशत की धनराशि राज्य कोषागार में जमा करने पर किया जायेगा) की भांति विकास प्राधिकरण, स्थानीय निकाय, नगर पंचायत, नगरपालिका, नगर निगम, जिला पंचायत के पक्ष में फ्रीहोल्ड नियमानुसार प्रचलित सर्किल दर पर भूमि मूल्य निर्धारण का 5 प्रतिशत की धनराशि राज्य कोषागार में जमा करने पर किया जा सकने के संबंध में कैबिनेट द्वारा लिया गया निर्णय।
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