फिल्म सब लीला है और समा को दर्शकों ने सराहा
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। महात्मा गाँधी की पुण्य तिथि पर दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में दो फिल्मों का प्रदर्शन किया गया। पहले निर्मल चंद्र द्वारा निर्देशित फिल्म ‘सब लीला है’ (63 मिनट) तथा इसके बाद दूसरी फिल्म ‘समा : भारत का मुस्लिम रहस्यवादी संगीत’ (63 मिनट) जो शाज़िया खान द्वारा निर्देशित है दिखाई गई। ये फिल्में प्रदर्शन के लिए पब्लिक सर्विस ब्रॉडकास्टिंग ट्रस्ट द्वारा बहुत उदारतापूर्वक दी गयी हैं। सामाजिक फिल्मों के प्रदर्शन की कड़ी में इन दो फिल्मों को आज के कार्यक्रम का हिस्सा बनाया गया। फिल्म के प्रारम्भ होने से पूर्व दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से सभागार में उपस्थित लोगों का स्वागत किया गया और फ़िल्म का सामान्य परिचय दर्शकों के सम्मुख रखा गया।
फ़िल्म ‘सब लीला है ‘ निर्मल चंदर द्वारा निर्देशित बेहतरीन फ़िल्म है। उत्तर प्रदेश में लखनऊ से लगभग 20 किलोमीटर दूर दो गाँव हैं – रुदाही जहाँ मुख्य रूप से हिंदू रहते हैं और बरगदी, जहाँ मुख्य रूप से मुस्लिम रहते हैं। पिछले चालीस वर्षों से सभी सामाजिक बाधाओं से कहीं दूर इन गांवों के हिंदू और मुस्लिम मिलकर सालाना राम लीला का मंचन करते हैं, जो हिंदू भगवान राम के जीवन को चित्रित करने वाला एक महाकाव्य है, जिसमें कई मुख्य भूमिकाएं मुसलमानों द्वारा भी निभाई जाती हैं।
दूसरी फिल्म ‘समा : भारत का मुस्लिम रहस्यवादी संगीत’ शाज़िया खान द्वारा निर्देशित है। यह फिल्म वास्तव में एक शानदार ध्वनि बनने के लिए भारत की मुस्लिम संगीत परंपराओं और अन्य परंपराओं के साथ उनकी बातचीत का पता खोजती है। यह उस संबंध की खोज करती है जो कलाकार को निर्माता के साथ एक होने और शांति और आनंद का अनुभव करने की अनुमति देता है। इस फिल्म में संगीत के खुले, सार्वभौमिक मानवीय मूल्यों की बेहतरीन झलक भी दिखाई देती है।
निर्मल चंद्र एक पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता हैं जो निर्माता, निर्देशक, छायाकार, शोधकर्ता, पटकथा लेखक और संपादक के रूप में वृत्तचित्रों के क्षेत्र में दो दशकों से अधिक समय से काम कर रहे हैं। उनकी फिल्में ‘मोती बाग’, ‘ड्रीमिंग ताज महल’, ‘द फेस बिहाइंड द मास्क’ सहित अन्य फिल्मों को उनके मानवतावादी दृष्टिकोण के लिए सराहा गया है और उन्होंने कई अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में जगह बनाई है। निर्मल चंद्र फिल्म निर्माण पर कार्यशालाएं भी आयोजित करते हैं।
शाजिया खान एक पुरस्कार विजेता फिल्म निर्माता हैं, जो अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर निर्देशक, छायाकार और निर्माता के रूप में काम कर रहे हैं। उनकी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित और प्रदर्शित फिल्में कारवां, सलाम इंडिया और सामा – मुस्लिम मिस्टिक म्यूजिक ऑफ इंडिया, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में मुसलमानों के ऐतिहासिक, नृवंशविज्ञान और आध्यात्मिक सह-अस्तित्व का गहराई से दस्तावेजीकरण करती हैं। उनका काम कई अंतरराष्ट्रीय चैनलों जैसे अलजज़ीरा, बीबीसी, डच टीवी आदि पर दिखाया गया है।
उपरोक्त फ़िल्मों के प्रदर्शन के बाद इसके विषय वस्तु व अन्य बिंदुओं पर दर्शकों ने सामान्य बातचीत भी की । इस अवसर पर सभागार में गोपाल सिंह थापा, विजय शंकर शुक्ला, हिमांशु धूलिया लक्ष्मी प्रसाद बडोनी, विनोद सकलानी,निकोलस , तथा चन्द्रशेखर तिवारी , डॉ.योगेश धस्माना,सुंदर सिंह बिष्ट, बिजू नेगी,सहित अन्य फिल्म प्रेमी, रंगकर्मी, लेखक, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी, पुस्तकालय के सदस्य तथा युवा पाठक उपस्थित रहे।
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