कांग्रेस ने कहा, मतदाता को बताएंगे भाजपा की जबरन वसूली का सच
भाजपा बोली, चुनावी बॉन्ड पर अफवाह फैलाने के बजाय 1400 करोड़ का हिसाब दे कांग्रेस
45 फीसदी राजनैतिक हिस्सेदारी वाले विपक्ष को मिले 70 प्रतिशत बॉन्ड
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। इलेक्टोरल बांड को लेकर चुनावी सियासत गर्मा गयी है। भाजपा ने इलेक्टोरल बॉन्ड को लेकर कांग्रेस पर पलटवार कर झूठ और भ्रम फैलाने का आरोप लगाया है । इस मुद्दे पर कांग्रेस ने जबरन वसूली के आरोप लगाते हुए भाजपा को घेरा है। कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष करण मेहरा का कहना है कि काला धन वापसी की बात करने वाली भाजपा की असलियत जनता के सामने आ गयी है। लोकसभा चुनाव में समूचा विपक्ष भाजपा की इस जबरन वसूली की कलई खोलेगा।
भाजपा ने कहा कि कि 55 फीसदी राजनैतिक हिस्सेदारी के बावजूद हमे 30 फीसदी चंदा मिला है और मात्र 45 फीसदी हिस्सेदारी वाले विपक्ष को 70 फीसदी बॉन्ड मिले हैं । वहीं सुप्रीम कोर्ट ने भी इलेक्टोरल बॉन्ड की नीति को कभी भ्रष्ट नहीं बताया है, बल्कि सूचना के अधिकार प्रावधान के साथ और बेहतर नीति इस्तेमाल करने की सलाह दी है।
इलेक्टोरल बॉन्ड पर प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने कहा कि कि पूर्व मे लगभग 20 हजार करोड़ रुपए के इलेक्टोरल बॉन्ड जारी हुए थे जिनमे भाजपा को लगभग 6000 करोड़ के बांड मिले हैं। लेकिन हैरानी है कि शेष 14000 करोड रुपए के बॉन्ड जिनके पास है वह ही हल्ला मचा रहे हैं । उन्होंने स्पष्ट किया कि अब तक आंकड़ों में स्पष्ट है कि भाजपा को बॉन्ड का मात्र 30 फीसदी हिस्सा प्राप्त हुआ है। भाजपा के लोकसभा में 303 सांसद , 17 राज्यों में पार्टी सरकार में हैं, जिसमें 12 राज्यों में अकेली भाजपा की सरकार है। साथ भाजपा विश्व की सबसे बड़ी पार्टी हैं जिसके 13 करोड़ सदस्य हैं ।
वहीं एक राज्य में सरकार रखने वाली टीएमसी को लगभग 1600 करोड रुपए मिलना, मात्र 9 फ़ीसदी राजनीतिक हिस्सेदारी रखने वाली कांग्रेस को 1400 करोड रुपए मिलना और इसी तरह डीएमके एवं अन्य विपक्षी पार्टियों को मिला इलेक्टोरल बॉन्ड पहले ही उनकी राजनीतिक ताकत से कई गुना अधिक है।
उन्होंने कटाक्ष किया कि कांग्रेस भाजपा को मिले इलेक्टोरल बांड को वसूली कह रही हैं तो उन्हें अपनी पार्टी को बॉन्ड से मिले 1400 करोड रुपए की जानकारी भी देनी चाहिए कि उनको उन्होंने कहां कहां से वसूले हैं ।
मीडिया प्रभारी चौहान ने कहा कि इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर स्पष्ट किया गया है कि न्यायालय ने कभी भी इसे भ्रष्टाचार या गड़बड़ी वाली प्रक्रिया नहीं ठहराया । न्यायालय ने कहा कि सूचना अधिनियम अधिनियम 19(1) के कुछ नियमों का अनुपालन इस प्रक्रिया में संभव नहीं है इसलिए इसको पॉलिसी को जारी नहीं रखा जा सकता है
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में यह भी स्पष्ट कहा कि बेशक यह प्रक्रिया चुनाव में काले धन का उपयोग रोकने के मकसद से लाई गई हो। लेकिन और भी कई अन्य तरीके काले धन का उपयोग रोकने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं। लिहाजा कांग्रेस और विपक्ष सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय गलत तरीके से पेश कर जनता में भ्रम फैलाने की राजनीति कर रही है।
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