ग्रीष्म कला उत्सव -बॉबी फिल्म और दून के भूले बिसरे सिनेमाघरों को किया याद
देहरादून। पांच दिवसीय ग्रीष्म कला उत्सव -1 के कार्यक्रम के तहत दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में देहरादून शहर समेत पूरे देश में धूम मचाने वाली सुपरहिट फिल्म बॉबी का प्रदर्शन किया गया। साथ ही शाम को देहरादून के बन्द पड़े सिनेमाघरों पर सार्थक विमर्श किया गया। यह दोनों कार्यक्रम दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के सभागार में आयोजित किये गये।
ग्रीष्म कला उत्सव -1 का पहला दिन सत्तर के दशक की लोकप्रिय हिट फिल्म बॉबी (1973) के नाम रहा।
यह बात उल्लेखनीय है कि बॉबी ने सत्तर के दशक की शुरुआत में ऋषि कपूर, डिंपल कपाड़िया, प्राण और प्रेमनाथ के अभिनय ने युवा सिनेमा को नये सिरे से परिभाषित किया। यह फिल्म जबरदस्त व्यावसायिक सफलता के मोड़ पर पहुंच गयी थी। इस फिल्म ने निर्माता निर्देशक राज कपूर को मेरा नाम जोकर के साथ अपनी पिछली सारी फिल्मों के भारी नुकसान की भरपाई करने में सक्षम बना दिया। इस फिल्म के गाने लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा रचे गये थे और गीत आनंद बख्शी, राजकवि इंद्रजीत सिंह तुलसी और विट्ठलभाई पटेल की संयुक्त प्रतिभा से उभरे थे। बॉबी फिल्म की इस घटना ने देश को नरेन्द्र चंचल की अद्भुत गायन प्रतिभा से परिचित कराया और प्रतिष्ठित राजदूत जीटीएस 150 मोटर साइकिल को एक बड़ा मंच प्रदान कर जन-जन में उसे लोकप्रिय बना डाला। बॉबी फिल्म के वजह से ही मोटर साइकिल हमेशा के लिए बॉबी बाइक के रूप में जाना जाने लगी। इस सत्र का शुभारम्भ प्रभात सिनेमा प्रमुख रहे दीपक नागलिया ने किया। फिल्म प्रदर्शन के दौरान सभागार में अनेक फिल्म प्रेमी व दर्शक मौजूद रहे।
सांध्यकालीन सत्र में प्रभात सिनेमा के दीपक नागलिया से बिजू नेगी ने बातचीत की। इस बातचीत में देहरादून के बंद पड़े सिनेमाघरों की भूली बिसरी यादों पर शानदार बात हुई। बातचीत के दौरान सिंगल स्क्रीन भारतीय सिनेमा प्रदर्शनी उद्योग के सुनहरे युग और उस दशक के दौरान हिंदी सिनेमा से जुड़ी विविध कहानियों को बेहतरीन तरीके से याद किया गया । बातचीत को जीवंत बनाने के लिए एक स्लाइड शो भी किया गया। दीपक नागलिया ने पिछले दशकों में देहरादून के सिनेमाघरों की सामाजिक पहचान, उससे जुड़ी हर वर्ग की अर्थव्यवस्था़, फिल्म प्रर्दशन के तकनीकी पक्ष, व्यवस्था, प्रचार-प्रसार, वितरण और आम लोगों की फिल्म देखने की दीवानगी से जुड़े अनेकानेक प्रसंगों को रोचक संस्मरणों के साथ प्रस्तुत किया। इस बातचीत से देहरादून में प्रभात सिनेमा के साथ ही अन्य सिनेमाघरों की तत्कालीन सामाजिक हैसियत के कई दिलचस्प प्रसंग उजागर हुए। बातचीत के बाद उपस्थित श्रोताओं ने सवाल-जबाब भी किये।
इस अवसर पर सभागार में निकोलस हॉफलैण्ड,बिजू नेगी, चन्द्रशेखर तिवारी, हिमांशु आहूजा,जनकवि अतुल शर्मा, विभापुरी दास, विजय भट्ट,भूमेश भारती,गोपाल थापा,वेदिका वेद ,मनमोहन चड्ढा व सुंदर सिंह बिष्ट, सहित फिल्म से जुड़े लोग, फिल्म प्रेमी, लेखक, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी, पुस्तकालय के सदस्य तथा बड़ी संख्या में युवा पाठक उपस्थित रहे
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