‘पांडे की कविताओं में दर्शन का भाव परिलक्षित’
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में पूर्व मुख्य सचिव इन्दु कुमार पान्डे के काव्य संग्रह ‘दिविजा’पर चर्चा हुई।
साहित्यकार डाॅ. राम विनय सिंह ने इस काव्य संग्रह के विविध पक्षों पर रचनाकार के साथ विस्तार से बातचीत की। बातचीत के बाद काव्य संग्रह के रचनाकार इन्दु कुमार पान्डे ने कुछ चुनींदा कविताओं का पाठ भी किया।
पान्डे के इस संग्रह में कुल 51 कविताएं संकलित हैं। स्वानुभूति की गहन मार्मिकता का एक नायाब काव्य संग्रह कहा जा सकता है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के अध्यक्ष प्रो. बी.के.जोशी ने मंचासीन अतिथिगणों और सभागार में उपस्थित लोगों का स्वागत किया।
उन्होंने कहा कि दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से समय-समय पर इस तरह के साहित्यिक विमर्श, फिल्म प्रदर्शन, व्याख्यान, गोष्ठी व शास्त्रीय संगीत के आयोजन के प्रयास किये जाते रहते हैं। इन्दु कुमार पान्डे के काव्य संग्रह दिविजा के बारे में उन्होंने कहा कि उनकी हर कविताओं में दर्शन का भाव परिलक्षित होता है। यह कविताएं चिन्तन और आध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को पाठकों के सम्मुख रखने का पुरजोर यत्न करती हैं।
डॉ. राम विनय सिंह ने कहा कि दार्शनिक चेतना सम्बंलित होकर पांडे जी ने दैनिक जीवन की व्यस्त विवशताओं में भी कविताओं के कोमल भावों को लम्बे समय तक सहेजा है। उनकी कविताएं कहीं युगधर्म, कहीं निजी भाव बोध तो कहीं सामाजिक संवेदना के साथ ही कहीं पर वैराग्य के भी दर्शन कराती हैं।
इंदु कुमार पांडे कहा कि उन्होंने शुरूआती दौर में शायरी से लिखना आरम्भ किया। और कालानंतर में हिंदी कविताओं का लेखन किया। उनकी पहली कविता राधेय थी, जिसमें उन्होंने कर्ण को एक अनोखे चरित्र के रुप में प्रस्तुत किया है। उन्होंने कहा कि अथर्ववेद के प्रथम मंत्र के देव वाचस्पति के प्रति भावनाओं को अंकुरित करने की उत्कंठा से ही कविता का सृजन होता है।
इस बातचीत पर सभागार में उपस्थित लोगों ने सवाल-जबाब भी किये। कार्यक्रम के अंत में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र के निदेशक एन रविशंकर ने धन्यवाद दिया।
संचालन प्रोग्राम एसोसिएट चंद्रशेखर तिवारी ने किया.
इस अवसर पर सभागार में मुख्य सचिव उत्तराखण्ड, श्रीमती राधा रतूड़ी, पूर्व डीजीपी, उत्तराखंड अनिल रतूड़ी, लवनीना मोदी, शादाब अली, राजीव भरतरी, प्रवीन भट्ट,डाॅ.सुधारानी पाण्डे, डाॅ. दिनेश उपाध्याय, रामचरण जुयाल, दिनेश सेमवाल ‘शास्त्री’, सुरेन्द्र सजवान, सुन्दर सिंह बिष्ट, सहित अनेक साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, बुद्विजीवी, पुस्तकालय के सदस्य तथा युवा पाठक उपस्थित रहे।
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