भारत ही नहीं पूरे विश्व का भविष्य पतंजलि से तय होगा, ऐसा नेतृत्व हम यहाँ गढ़ रहे हैं- स्वामी रामदेव

पतंजलि विवि में तीन दिवसीय शास्त्र श्रवण प्रतियोगिता का समापन

शास्त्र हमारे विचारों, भावों को मर्यादा में रखने का कार्य करते हैं: आचार्य बालकृष्ण

शिक्षा का उद्देश्य ‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ : स्वामी रामदेव

धर्मसत्ता, अर्थसत्ता और राजसत्ता जो पूरी व्यवस्था को नियंत्रित करते हैं : स्वामी रामदेव

शास्त्रों में सब शुभ है तथा जीवन में जो भी शुभ है वह शास्त्रों के कारण है : आचार्य बालकृष्ण

पतंजलि का प्रयास है कि शास्त्रों के पठन-पाठन का लाभ विद्यार्थियों को मिले : आचार्य बालकृष्ण

अविकल उत्तराखंड

हरिद्वार। पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में विश्वविद्यालय के कुलाधिपति स्वामी रामदेव महाराज तथा कुलपति आचार्य बालकृष्ण महाराज के दिशानिर्देशन में आयोजित तीन दिवसीय शास्त्र श्रवण प्रतियोगिता का समापन हुआ। इस अवसर कुलाधिपति महोदय ने कहा कि दुनिया में तीन बड़ी ताकतें हैं- धर्मसत्ता, अर्थसत्ता और राजसत्ता जो पूरी व्यवस्था को नियंत्रित करते हैं। युगों-युगों से धर्मसत्ता ही समाज की दशा-दिशा तय करती है। राजनीति कभी समाज बदलने का काम नहीं करती। स्वामी महाराज ने कहा कि आने वाले 20-25 वर्ष बाद भारत ही नहीं पूरे विश्व का भविष्य पतंजलि योगपीठ से तय होगा, ऐसा व्यक्तित्व, चरित्र, नेतृत्व हम यहाँ गढ़ रहे हैं।

उन्होंने कहा कि देश को राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, वैचारिक सशक्त नेतृत्व की आवश्कता है। देश को कार्यपालिका, न्यायपालिका, मीडिया, कृषि, उद्योग, अनुसंधान, योग, शिक्षा, चिकित्सा आदि प्रत्येक क्षेत्र का नेतृत्व करने के लिए शीलवान, चरित्रवान, विराट व्यक्तित्व वाले पवित्र आत्माओं की आवश्कयता है। पतंजलि के शिक्षा अनुष्ठान का लक्ष्य विद्यार्थियों में ज्ञान, विज्ञान, प्रज्ञान, अनुसंधान और स्वाभिमान के साथ व्यक्तित्व निर्माण, चरित्र निर्माण से विराट व्यक्तित्व गढ़ना है। एक वाक्य में कहें तो यहाँ शिक्षा का उद्देश्य ‘एजुकेशन फॉर लीडरशिप’ है। हम पतंजलि संस्थान से नेतृत्व गढ़ेंगे और नेतृत्व के लिए सामान्य बोध (बेसिक एजुकेशन) तो अनिवार्य है ही साथ ही गणित, तकनीकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, नेचर एण्ड इन्वायरमेंट, स्पेस साइंस, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान आधारित सारभूत विशेष बोध (स्पेशल एजुकेशन) की विशेष शिक्षा दी जा रही है। हमें यह सुनिश्चित करना है कि इस नेतृत्व में राजसिक व तामसिक शक्तियों का नहीं अपितु सात्विक शक्तियों का साम्राज्य हो, ऐसी हमारी अभिप्सा है।

उन्होंने बताया कि पतंजलि विश्वविद्यालय में बच्चे पंचोपदेश, पंचदर्शन, कम से कम नौ उपनिषद्, निरूक्त निघण्टु, श्रीमद्भगवद्गीता, हठयोग संहिता, घेरण्ड संहिता, चरक संहिता, सुश्रुत संहिता याद कर रहे हैं। कुछ बच्चे तो वेदों को कण्ठस्थ कर रहे हैं। हमारी करोड़ों वर्ष पुरानी ऋषि परम्परा में निर्विवादित सत्य है कि संस्कृत, व्याकरण शास्त्र, दर्शन शास्त्र पढ़ने से व्यक्ति महामेधा या दिव्य मेधा से सम्पन्न होता है।

कार्यक्रम में कुलपति ने कहा कि जिस तरह के भाव हमारे हृदय में होते हैं, उन भावों के अनुसार हम जीवन व व्यवहार में कार्य करते हैं। शास्त्र हमारे विचारों, भावों को मर्यादा में रखने का कार्य करते हैं। शास्त्रें में सब शुभ है तथा जीवन में जो भी शुभ है वह शास्त्रों के कारण है। जो शुभ है वह शास्त्रों के अनुकूल तथा जो अशुभ है वह शास्त्रों के विरूद्ध है। उस विरूद्ध भाव को समाप्त करने के लिए शास्त्र आलम्बन हैं। शास्त्र, संस्कृति रक्षण के लिए प्रतियोगिता आयोजित कर स्वामी जी ने उपकार किया है। जिन ग्रंथों को बच्चे पढ़ेंगेे, उनसे न केवल उनका जीवन उन्नत व पवित्र होगा अपितु उनकी आने वाली कई पीढ़ियाँ लाभान्वित होंगी।

उन्होंने विद्यार्थियों को सम्बोधित करते हुए कहा कि शास्त्र पढ़ने से आप शास्त्रमय बन जाएँगे। शास्त्र कभी झूठ नहीं बोलता, कभी गलत काम करने के लिए प्रेरित नहीं करता, कभी विचलित नहीं होता तथा विकारों से युक्त नहीं होता। इसलिए शास्त्रों का आलम्बन लेकर जीवन में आगे बढ़ना चाहिए अन्यथा कर्तव्यबोध कहाँ से सीखोगे। हमारा सौभाग्य है कि आज शास्त्र हमारे मध्य में हैं, पढ़ने व सीखने का वातावरण है। प्रयास से आपको शास्त्रों की ओर प्रवृत्त किया जा रहा है। इस भ्रम में मत रहना कि हमने शास्त्र रट डाले तो हम शास्त्रों की रक्षा कर रहे हैं, यदि तुम शास्त्र पढ़ोगे तो शास्त्र तुम्हारी रक्षा करेगा। शास्त्रें के बोध के अभाव में आज ठोंग, पाखण्ड, आडम्बर, ढकोसले, प्रपंच रचे जा रहे हैं। विखण्डन, विभाजन, विभेद, परस्पर झगड़ा और लड़ाने की बात है, एक दूसरे के प्रति कटुता और वैमनस्यता बढ़ाने के उपदेश ईश्वरीय उपदेश नहीं हो सकते, शास्त्रोपदेश नहीं हो सकते। शास्त्रों में एक-दूसरे को समान रूप से देखने की प्रवृत्ति निहित है। पतंजलि परिवार का यह प्रयास रहा है शास्त्रों के पठन-पाठन का लाभ विद्यार्थियों को मिले।

पतंजलि विश्वविद्यालय के विद्यार्थी भारतीय ज्ञान परम्परा, अष्टाध्यायी, व्याकरण, वेद, गीता, महाभाष्य तथा श्रुति परम्परा के संवाहक हैं। पूरे विश्व में पतंजलि विश्वविद्यालय एकमात्र संस्थान है जहाँ संस्कृत, दर्शन तथा व्याकरण के विद्यार्थियों के अतिरिक्त विज्ञान संकाय के विद्यार्थी भी संस्कृत में पारंगत हैं तथा उन्हें अष्टाध्यायी, व्याकरण, वेद, गीता, महाभाष्य कण्ठस्थ है। पतंजलि विश्वविद्यालय में विद्यार्थियों को शास्त्रों की मूल पठन सामग्री से दीक्षित किया जाता है जिससे उनमें ऋषि चेतना का विकास होता है।

प्रतियोगिता में चरक संहिता में 2,75,000/-, चार वेदों में 2,50,000/-, भाष्य (योगदर्शन व न्यायदर्शन) में 70,000/-, अष्टांगहृदयम् में 65,000/-, उपचार पद्धति में 60,000/-, एकादशोपनिषद् में 41,000/-, महाभाष्य (नवाह्निकम्) में 40,000/-, धातुवृत्ति में 40,000/-, काशिका में 40,000/-, षड्दर्शन में 30,000/-, पंचदर्शन में 30,000/-, अमरकोश में 30,000/-, योगविज्ञानम् में 30,000/-, प्रथमावृत्ति में 30,000/-, श्रीमद्भगवद्गीता में 20,000/-, हठप्रदीपिका में 10,000/-, घेरण्ड संहिता में 10,000/-, चाणाक्य नीति में 10,000/-, विदुर नीति में 10,000/- तथा अष्टावक्र गीता में 10,000/- रुपए पुरस्कार राशि रखी गई है।

प्रतियोगिता में बड़ी संख्या में पतंजलि विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों ने प्रतिभाग किया। प्रति कुलपति प्रो. महावीर अग्रवाल, मानविकी संकायाध्यक्षा डॉ. साध्वी आचार्य देवप्रिया, आचार्यकुलम् की उपाध्यक्षा डॉ. ऋतम्भरा, डॉ. मयंक अग्रवाल, कुलसचिव डॉ. प्रवीण पुनिया, स्वामी परमार्थदेव, स्वामी आर्षदेव, स्वामी ईशदेव, कविराज मनोहर लाल आर्य, आचार्य विजयपाल प्रचेता आदि ने विद्यार्थियों का मार्गदर्शन व मूल्यांकन किया।

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