सिटीजन्स फॉर पीस,दून संस्था के सदस्यों ने अल्पसंख्यक सुरक्षा के मुद्दे पर जारी किया बयान
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। सिटीजन्स फॉर पीस देहरादून” के सदस्यों ने उत्तराखण्ड की सामाजिक स्थिति को चिंताजनक बताते हुए संयुक्त बयान जारी किया है। और बीते दिनों देहरादून, टिहरी, चमोली, पिथौरागढ़ व उत्तरकाशी जिले में दो समुदाय के बीच तनाव को रेखांकित किया है।
शुक्रवार को पर्यावरणविद रवि चोपड़ा, पूर्व आईएएस एस के दास, विजय दुग्गल,सुमिता हजारिका, निकोलस, सैयद काजमी व अनिल नौरिया ने कहा कि उत्तराखण्ड में साम्प्रदायिक तत्त्वों द्वारा राज्य में सामाजिक व आर्थिक जीवन में खलल डालने पर चिंता जाहिर करते हैं।
बयान में कहा गया कि इन कृत्यों को किसी न किसी तरह का राजनीतिक समर्थन प्राप्त है। पिछले कुछ हफ्तों व महीनों में, प्रशासन द्वारा किसी भी तरह की कानूनी कार्यवाही न करने से परिस्थिति निरन्तर बिगड़ती जा रही है।
हाल में, पल्टन बाजार (देहरादून), चौरास (कीर्तिनगर ब्लॉक, टिहरी), घाट (चमोली), झूलाघाट (पिथौरागढ़) तथा उत्तरकाशी में हुई घटनाएं खासकर चिंताजनक हैं जहां उन परिवारों के खिलाफ, जो राज्य में पिछले 25 सालों और कुछ तो पिछले 50 सालों से यहीं निवास कर रहे हैं, उनसे बदसलूकी कर, उनके घरों को उजाड़, इलाकों से विस्थापित होने के लिए मजबूर किया गया।
इन परिवारों में स्कूली बच्चे भी थे और चौरास में एक बच्चे का स्कूल के रजिस्टर से नाम जबरन हटावाए जाने की घटना सामने आयी है।
चमोली और रुद्रप्रयाग में कुछ जगहों पर “बाहरी लोगों” के प्रवेश के खिलाफ साइनबोर्ड भी लगवाए गये हैं। मुसलमानों के अलावा, ईसासियों को भी निशाना बनाया गया है जैसा कि देहरादून में हाल में एक घटना हुई है। यह सब उन अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जो बहुसंख्यक समुदाय की तरह ही भारत के नागरिक हैं। भारत का संविधान, भारत के नागरिकों को देश में कहीं भी रहने और अपनी आजीविका चलाने का अधिकार प्रदान करता है और उत्तराखण्ड तो आदि काल से ही बहु-समुदायों का घर रहा है।
यह अत्यावाश्यक है कि कानून का शासन तुरन्त स्थापित किया जाए, अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने पर रोक लगे और न्यायसंगत प्रशासनिक कार्यवाही की जाए। अगर भीड़ तंत्र को, जो निजी सेना की तरह कानून अपने हाथ में ले रही है, तुरन्त नही रोका गया तो उसके समाज और समाज में शान्ति के लिए गंभीर परिणाम होंगे। भीड़ तंत्र की ये गतिविधियां न सिर्फ राज्य व देश के सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर रही हैं बल्कि उत्तराखण्ड के भावी विकास को भी बुरी तरह प्रभावित करेंगे।
भय के निर्मित माहौल में आम जन के बीच भी इन घटनाओं के लेकर चुप्पी व निष्क्रियता सी है। हम उन अधिकारियों के आचरण का स्वागत व प्रशंसा करते हैं जो भीड़-तंत्र के दबाव से प्रभावित न होते हुए भारत के संविधान के और सामाजिक समरसता के साथ खड़े रहे।
उम्मीद की जाती है वृहद प्रशासन भी पूरे संकल्प के साथ समाज में सामान्य स्थिति सुनिश्चित करेगा जिससे समाज का हर वर्ग पूरे सुरक्षा भाव के साथ अपना दैनिक जीवन निर्वाह कर सके। यह भी उम्मीद की जाती है कि यदि प्रशासन अपनी जिम्मेदारियों में कहीं कम होता है तो न्यायपालिका राज्य में गंभीर परिस्थिति पर स्वतंत्र संज्ञान लेते हुए, प्रभावकारी कार्यवाही का निर्देश देगी। अंतिम परिस्थिति में अगर प्रशासनिक संस्थान अपनी जिम्मेदारी वहन करने में कोताही बरते या अप्रभावकारी रहें, तो नागरिकों को ही अपनी निष्क्रियता छोड़ कानून का शासन बरकरार सुनिश्चित करना होगा।
इसके लिए हमारा मानना है कि राज्य, जिला व ब्लॉक स्तर पर सर्व दलीय शांति समितियों की जल्द से जल्द स्थापना हों। राजनीतिक दलों से यह अपेक्षा है कि वे अपनी नेतृत्व भूमिका का निर्वहन करते हुए संविधान के पालन को कायम रखें। हमें यह चिंताजनक जरूर लगता है कि राजनीतिक दलों की कथनी व करनी में बढ़ता अंतर हो रहा है।
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