पूर्व सीएम निशंक ने लेखक गांव की सार्थकता व उद्देश्य स्पष्ट किये
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। स्पर्श हिमालय फाउण्डेशन के तहत स्थापित भारत के पहले लेखक गांव थानों में आयोजित पांच दिवसीय स्पर्श हिमालय महोत्सव अतंराष्ट्रीय साहित्य और कला समारोह में देश और विदेशों के साहित्य, संस्कृति, कला और विज्ञान क्षेत्र की अनेकों चर्चित विभूतियों ने भाग लिया । 65 से अधिक देशों के साथ ही भारत के सभी राज्यों से आये लेखकों विचारकों, चिन्तकों, और वैज्ञानिकों ने इसे एक अद्भुत एवं अविस्मरणीय बना दिया पूर्व सीएम निशंक ने बताया कि 23 अक्टूबर से 27 अक्टूबर तक आयोजित इस समारोह के प्रथम दो दिन गढ़वाली, कुमाउँनी एवं जौनसारी बोली-भाषा के लेखकों की कार्यशाला, भाषा विमर्श के साथ ही कवि सम्मेलन का आयोजन और अनेकों क्षेत्रीय बोली-भाषा की पुस्तकों का विमोचन किया गया।
हिमालय की तलहटी पर थानो देहरादून में बसे भारत के पहले लेखक गांव में 40 से अधिक देशों के लेखक साहित्यकार, कालाकार, चिंतक विचारक और शिक्षाविदों के साथ ही भारत के सभी राज्यों से उपस्थित इन विभिन्न क्षेत्रों की विभूतियों की उपस्थिति में श्पर्श हिमालय महोत्सव 2024 भव्यता, दिव्यता और गरिमा के साथ सम्पन्न हुआ।
निशंक ने बताया कि समारोह का उद्घाटन भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोंविद द्वारा लेखक गांव के उद्घाटन के साथ किया गया। इस अवसर पर उत्तराखण्ड के राज्यपाल ले. ज. (से. नि. ) गुरमीत सिंह ,उत्तखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी, प्रसिद्ध गीतकार एवं केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी, प्रख्यात ओडिसी नृत्यांगना पद्मभूषण डाॅ सोनल मानसिंह, भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री डाॅ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक के साथ ही प्रसिद्ध चिंतक एवं विचारक आचार्य महांमण्डलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरी जी के सानिध्य में समारोह का भव्य उद्घाटन किया गया।
इस अवसर पर पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने कहा कि लेखन में अद्भुद क्षमता और असीमित शक्ति होती है। हिमालय के आंचल में बसे इस लेखक गांव में लेखक एक ही स्थान पर प्रकृति, संस्कृति योग, आयुर्वेद ज्ञान-विज्ञान से साक्षात्कार करके विभन्न विषयों पर चिंतन और मनन के लिये नये दृष्टिकोण प्राप्त कर सकेंगे।
उन्होंने कहा कि ‘भारत के पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न अटल विहारी बाजपेयीकी लेखकों प्रति चिन्ता और पीड़ा थी कि यहाँ लेखकों को सम्मान नहीं मिलता है। उनका जीवन बहुत कष्टकर और दुखदायी होता है। इसी से प्रेरणा लेकर डाॅ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने इस परिकल्पना को साकार किया है, जो एक अद्भुत और अभूतपूर्व प्रयास है। यह ऐतिहासिक गांव लेखकों के तीर्थ के रूप में स्थापित हो गया है।
इस अवसर पर उत्तराखण्ड के राज्यपाल ले. ज. ( से. नि. ) गुरमीत सिंह ने कहा कि लेखक गांव मात्र एक स्थान नहीं है अपितु यह एक ऐसा अद्भुत मंच है जहाँ रचनाकार अपनी अनुभूतियों अनुभवों और अपने विचारों को समाज के समक्ष ला सकते हैं। यह ऐसा स्थान है जहाँ शब्दों की साधना की जायेगी जिसके माध्यम से समाज को नई दिशा मिलेगी।
प्रख्यात गीतकार, पटकथा लेखक तथा केन्द्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के अध्यक्ष प्रसून जोशी ने कहा कि हिमालय का यह लेखक गांव रचनात्मकता को विस्तार देगा। यहाँ के शात्र, एकान्त और सृजनात्मक वातावरण में देश और दुनियां का रचनाकार अपने स्वयं के आस्तित्व में उठकर सृजन के नये मोती निकाल सकेंगे। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि लेखकों, कवियों साहित्यकारों और कलाकारों द्वारा महसूस की जा रही कठिनाइयों का निवारण करने की दिशा में लेखक गांव एक अभिनव पहल है। निकट भविष्य में यह साहित्यिक पर्यटन डेस्टिेनशन के रूप् में भी उभरेगा।
प्रसिद्ध संत, दार्शनिक और विचारक आचार्य महामण्डलेश्वर ने कहा कि लेखक गाँव अपने आप में अब तक की अनोखी और विशेष पहल है। यह गांव रचनाधर्मियों की लिये एक वरदान सावित होगा। यहाँ प्रवास करके लेखक देश और दुनियाँ को नये विचार देगा। उन्होने कहा कि वे लेखक के रूपक में समय-समय पर जरूर लेखक गांव आयेंगे। समारोह के दूसरे दिन ‘संविधान, भारतीय भाषायें और राष्ट्रभूमि , शिक्षा नीति’ विषय पर आयोजन, सेमिनार में बोलते हुये भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जस्टिस सुधांशु धूलिया ने कहा कि भाषाई विविधता हमारी राष्ट्रीय धरोहर के साथ ही हमारी सांस्कृतिक पहचान भी है, लेखक गांव साहित्य, संस्कृति, कला और धरोहरों को एक मंच पर लाने और इन्हें संरक्षित करने का एक महत्वपूर्ण प्रयास है यह महोत्सव सिर्फ एक आयोजन नहीं अपितु हमारी भाषाई और सांस्कृतिक विविधता को एक सूत्र में बांधने का माध्यम है।
योग एवं आध्यात्म को समर्पित सत्र को संबोधित करते हुए पंतजलि विश्वविद्याल के कुलपति आचार्य बालकृष्ण ने कहा कि लेखक सृजनधर्मा होता है। लेखक गांव का यह सांत वातावरण यहाँ स्थापित गृह वाटिका और नक्षत्र वाटिका के साथ ही यहां का मनोरम वातावरण रचना, सृजन, नवाचार और नूतनता से दुनियाभर का साहित्य और समृध होगा। स्पर्श हिमालय महोत्सव के अंतिम दिन सम्मान एवं समापन समारोह का आयोजन किया गया। मुख्य अतिथी के रूप में केन्द्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत, के अध्यक्ष के रूप में टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति प्रो. सन्तोष चैबे, संकल्प फाउण्डेशन के अध्यक्ष तनेजा, विधानसभा अध्यक्ष श्रीमती ऋतु खण्डूरी और परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती महाराज के सानिध्य में देश और विदेशों से आये समस्त विद्वतजनों का सम्मान किया गया।
इस अवसर पर गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि डाॅ. निशंक की इस पहल से साहित्यसेवियों, संस्कृतिकर्मियों और कलाकारों को एक ऐसा मंच प्रदान किया है, जहाँ वे अपनी रचनात्मकता को साकार कर सकेंगे। यह लेखक गांव न केवल भारत की सांस्कृतिक और साहित्यिक धरोहर को संरक्षित करेगा अपितु पीढ़ी को भी प्रेरित करेगा। उन्होंने कहा कि निकट भविष्य में यह लेखक गांव महान ऊँचाइयाँ प्राप्त करेगा।
अध्यक्ष पद से बोलते हुये संतोष चौबे ने कहा कि डाॅ. निशंक यह यहाँ एक साहित्यिक पीठ बन गई है। यह गांव साहित्यिक कला और संस्कृति के मंदिर के रूप् में स्थापित हो गया है। उन्होंने कहा कि डाॅ. निशंक का यह संकल्प शिक्षा और राष्ट्र निर्माण के रूप में भी महत्वपूर्ण योगदान देगा।
उत्तराखण्ड विधान सभा अध्यक्ष श्रीमती ऋतु खण्डूरी ने कहा कि लेखक गांव और उसमें आयोजित यह महोत्सव साहित्य, संस्कृति और कला के क्षेत्रा में काम करने वाले मनीषियों को एक नई दिशा देगा। उत्तराखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कहा कि लेखक गांव के जरिए डाॅ. निशंक ने साहित्य और साहित्यकारों को एक अंतराष्ट्रीय मंच दिलाने का कार्य किया है। लेखक गांव में न केवल भारत अपितु उत्तराखण्ड लोक संस्कृति, परमपराओं और भाषाओं का सम्र्वधन तथा संरक्षण भी होगा।
परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानंद सरस्वती ने कहा कि निशंक एक संवेदनशील राजनीतिक के साथ ही एक उच्च कोटि के कवि एवं साहित्यकार हैं वे लेखकों और कलाकारों की पीड़ा से भलीभाँति अवगत हैं। हर पीड़ा की परिणिति केक रूप में लेखक गांव का जन्म हुआ है।
केन्द्रीय सड़क परिवहन मंत्री अजय टमटा ने कहा कि डाॅ. रमेश पोखरियाल निशंक ने जिस तरह से राष्ट्र को नई शिक्षा नीति दी है उसी तरह उन्होंने लेखक गांव के रूप में एक अद्भुत संरचना देश और दुनियां को दी है।
क्या-क्या हुआ महोत्सव में
1- तीन-तीन पाडांलों में लगातार समानान्तर, सत्रों में साहित्यिक परिचर्चायें गोष्टियां, सम्वाद और विमर्श के कुल 22 सत्रों का आयोजन भारत और विश्व के 65 से अधिक देशों के मनीषियों छात्र छात्राओं और शोधार्थियों का समागम।
2- प्रख्यात औडिसी नृत्यांगना पद्मभूषण सोनल मानसिंह की विशेष प्रस्तुति।
3- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय’ के स्नातकों द्वारा और स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय के छात्रों द्वारा नाट्य मंचन।
4- सांस्कृतिक विभाग उत्तराखण्ड के सांस्कृतिक दलों की प्रस्तुतियां।
5- भारतीय पुस्तक न्यास द्वारा पुस्तक पदर्शनी।
6- राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के स्नातकों और स्पर्श हिमालय विश्वविद्यालय के नाटय विभाग द्वारा नाटकों का मंचन।
7- संस्कृति विभाग उत्तरखण्ड की सांस्कृतिक दलों की मनमोहक प्रस्तुतियां।
8- राज्य सरकार के विभिन्न विभागों द्वारा जनहित योजनाओं के स्टाॅल एवं प्रदर्शनियां।
9- राज्य के 36 कलाकारों की पेंटिंग वर्कशाॅप और पेंटिंग पदर्शनी।
10- राज्य के नेचर एवं वाइल्ड लाईफ फोटोग्राफरों की श्रेष्ट फोटो प्रदर्शनी।
11- राज्य के विभिन्न प्रकाशकोें की पुस्तक प्रदर्शनियां।
12- देश और विदेश के प्रमुख प्रकाशकों और लेखकों की 18 पुस्तकों का विमोचन
13- क्षेत्रीय बोली-भाषा के लेखकों की 12 पुस्तकों का विमोचन।
14- पंताजलि योग पीठ और स्पर्श हिमालय विश्वविद्याल के योग विभाग के छात्र-छात्राओं की संगीतमय योग प्रस्तुतियां।
15- सनराईज अकादमी एवं शहर के अन्य शिक्षण संस्थानों के छात्र-छात्राओं की सांस्कृतिक प्रस्तुतियां।
आगामी कार्यक्रम
1- पूर्व प्रधानमंत्री भारतरत्न श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी जी की जयंती (शताब्दी वर्ष) के अवसर पर “अटल व्याख्यान माला” की शुरुआत किए जाने।
- अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार: विश्व स्तर पर साहित्य और कला के क्षेत्र में योगदान देने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों को सम्मानित किए जाने।
- राष्ट्रीय पुरस्कार: भारतीय स्तर पर कला और साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान देने वाले कलाकारों और साहित्यकारों को सम्मानित किए जाने।
- राज्य स्तरीय पुरस्कार: उत्तराखंड राज्य की स्थानीय प्रतिभाओं को प्रोत्साहित करने हेतु पुरस्कार प्रदान किए जाने।
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