उत्तरजन साहित्य-संवाद ने दून में काव्यपाठ का आयोजन किया

अविकल उत्तराखंड

रविवार। उत्तरजन साहित्य संवाद द्वारा राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान में स्त्री कवियों के एक काव्य पाठ का आयोजन किया गया। आयोजन के केंद्र में कुछ ऐसी स्त्री रचनाधर्मी थी जो समकालीन दृष्टि से लिख रही हैं लेकिन जिन्हें कभी सुना नहीं गया था। मगर अपनी सोच, तेवर और संवेदनाओं के स्तर पर वह सभी संभावनाशील रचनाकार हैं . स्त्री ने पिछले दशको में एक नई और बदलती सोच और सामाजिक परिवर्तन के बीच संवेदनाओं की एक रचनात्मक यात्रा की है. इस अवसर पर यह विचार दृष्टिगोचर हुआ कि आज की स्त्री कविता की दुनिया मे व्याप्त विसंगतियों, विद्रूपताओं, अन्याय, नकारात्मक विचारों और रूढ़ व्यवहारों के खिलाफ खड़ा करता है, उसका प्रतिरोध करता है. साहित्य विचार से समृद्ध, जिम्मेदार और गंभीर नागरिक का निर्माण भी करता है. साहित्य के बिना अच्छी, सुन्दर और न्यायसंगत दुनिया की कल्पना नहीं की जा सकती।

स्त्री कवियों ने सन्देश दिया कि हम सब एक सुन्दर और समभाव वाले विश्व की परिकल्पना करें और सृजन के माध्यम से अधिक संवेदनशील और न्यायसंगत दुनिया का निर्माण करें . संस्था के अध्यक्ष जयदीप सिंह रावत ने कहा कि उत्तरजन साहित्य-संवाद इसी विचार पर केन्द्रित रहते हुए कार्य करना चाहता है । और कविता तथा साहित्य में रूचि रखनेवाले प्रबुद्धजनों का यह समूह इसी उद्देश्य अर्थात रचनात्मकता से जुडी नई पीढ़ी में जनपक्षीय सांस्कृतिक चेतना के प्रसार के साथ ही रचनात्मक प्रवृतियों को बढ़ावा देना व उन्हें अच्छा पाठक, समीक्षक, चिन्तक और रचनाकार बनने के लिए माहौल उपलब्ध कराना है।

इसके अतिरिक्त इसी उद्देश्य पर अवलंबित रहते हुए उन्हें अच्छी कविता और श्रेष्ठ साहित्य से परिचित कराना भी है. हम उत्तराखंड में क्रियाशील है और हमारा लक्ष्य है कि हम यहाँ साहित्य के फलक के विस्तार में अपना योगदान करें . उनके द्वारा यह भी बताया गया कि यह उत्तरजन साहित्य संवाद का पांचवा आयोजन है और यह इस श्रृंखला का पहला प्रयोग. इसकी निमित्त बनी हैं. – “स्त्री रचनाकार” अर्थात आज के आयोजन के केंद्र में स्त्री रचनाकार है. विशेषरूप से वह रचनाकार, जो नया सोच रही हैं और विचार के स्तर पर समकालीन हैं लेकिन अल्पज्ञात और नवोदित हैं. वस्तुतः हम स्त्रीकविता के बहाने एक विमर्श भी खड़ा करना चाहते हैं कि समर्थ होते हुए भी स्त्रियाँ अपना आकाश नहीं छू पा रही हैं।

हमारी मनसा है कि कविता के बहाने न केवल मौजूदा स्त्रीचेतना का मूल्यांकन करें अपितु यह भी देखें कि विश्व की समकालीन रचनात्मक चेतना के फलक पर छोटे शहरों और गांवों की स्त्री किस जगह खड़ी हैं, वह कहां पर हैं ? यह प्रयोग इसी दिशा में है. इस प्रयोग में दो तरह की महिला रचनाकार हैं, पहली वह, जो आज की दृष्टि से दुनिया को देखती हुई रच रही हैं, उनके सृजन में आधुनिकता बोध और नया समयबोध है. वह वरिष्ट हैं दूसरी नई पीढ़ी की रचनाकार हैं उनकी भी अपनी मौलिक सृजनात्मकतायुक्त दृष्टि है, जो अभी विकास की और अग्रसर है, लेकिन वह आधुनिक समाज और दुनिया को अपने ढंग से महसूस कर रही हैं।

कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रतिभा कटियार ने कहा कि स्त्री विमर्श का अर्थ केवल स्त्री से सम्बंधित बात करना नहीं है बल्कि उसमें पुरुषों का शामिल होना भी आवश्यक है और अच्छी दुनिया के लिए हमें साथ साथ चलना है उन्होंने कहा कि कविता लिखना आसान नहीं है. गोष्ठी के संयोजक लोकेश नवानी ने कहा कि आज की स्त्री को समझना है तो हमें देखना, पढना या जानना चाहिए कि स्त्री में कविता कैसे फूट रही है. उन्होंने राष्ट्रीय दृष्टि दिव्यांगजन सशक्तिकरण संस्थान के कार्यकारी निदेशक मनीष वर्मा का आभार व्यक्त किया।

इस गोष्ठी में प्रतिभा कटियार, नीलम पाण्डेय नील, रिद्द्धी भट्ट, डा० प्रेरणा शर्मा, कान्ता घिल्डियाल, सुनीता चौहान, डा० उमा शर्मा, सोनिया गैरोला, डा०शिवा जोहरी, भारती आनन्द अनंता, डा० संगीता बिजल्वान जोशी तथा नवोदित कवियों में सुप्रिया सकलानी, हितैषी नेगी, प्रिया देवली, सीमा थापा, साक्षी सकलानी, आरजे लक्ष्मी तथा अनामिका गायत्री आदि ने अपनी रचनाओं का वाचन किया।

कार्यक्रम का संचालन डा संगीता बिजल्वान जोशी ने किया । कार्यक्रम के संयोजक लोकेश नवानी एवं कार्यक्रम की अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष जयदीप सिंह रावत ने की।

इस अवसर पर अशोक मिश्रा, डी.एस.रावत,मनमोहन सिंह रावत, दिनेश डबराल, ब्रजपाल सिंह रावत, शांति प्रकाश “जिज्ञाशु”, डा० आशा रावत, बिमला रावत, शोभा रतूड़ी, बीना डंगवाल व संस्थान की अनेक छात्राएं उपस्थित थी।

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