सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर में श्री यंत्र पूजन से जन कल्याण की कामना

महामंडलेश्वर कैलाशानंद श्री यंत्र की स्थापना कर मां दुर्गा की आराधना करेंगे

देखें, उत्तर भारत की सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर में श्री यंत्र पूजन उत्सव का लाइव प्रसारण

अविकल उत्तराखंड

हरिद्वार। चैत्र नवरात्र में चंडीघाट स्थित सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर में नवरात्र की अष्टमी पर मां दुर्गा की विशेष कृपा के लिए श्री यंत्र की स्थापना की जाएगी।

निरंजनी अखाड़े के पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज शनिवार 5 अप्रैल को सांय 5.30 बजे श्री यंत्र की स्थापना कर पूजन अर्चन करेंगे।

उन्होंने बताया कि दक्षिण के राज्यों में श्री यंत्र की स्थापना और पूजन की प्राचीन परंपरा रही है। अब उत्तर भारत के प्रसिद्ध सिद्धपीठ दक्षिण काली मंदिर में बीते दो साल से श्री यंत्र की स्थापना और पूजन कार्य शुरू किया गया है।

आचार्य महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज ने कहा कि मां दुर्गा से उत्तराखंड और विश्व जन कल्याण की कामना के साथ श्री यंत्र की स्थापना और पूजा की जाएगी।

पूजन में कई विद्वान ब्राह्मण व आचार्य सम्मिलित होंगे। इसके अलावा श्रद्धालुजन श्री यंत्र पूजन में मनोकामना की पूर्ति के लिए आराधना करेंगे।

पूजन की तैयारी के लिए कई प्रकार के पुष्प व पूजा सामग्री उपयोग में लायी जाएगी। मन्दिर में जल रहे सैकड़ों जगमग दीपक मां दुर्गा के पूजन को भव्य रूप देंगे। श्रीयंत्र की स्थापना और मां दुर्गा के पूजन पद्धति का शनिवार, 5 अप्रैल की सांय 5.30 बजे से लाइव प्रसारण किया जाएगा।

आचार्य महमण्डलेश्वर ने बताया कि नवरात्र में श्री यंत्र स्थापित करने से मां विशेष कृपा बरसाती हैं. श्री यंत्र एक विशेष प्रकार की सधी हुई ज्यामितीय आकृति है, जो मन्त्रों का एक (Navratri 2023 Date) भौतिक स्वरुप है. शस्त्रों के अनुसार सृष्टि में जो कुछ भी दृश्यादृश्य है उन सबका मूल स्थान ‘श्री यंत्र’ ही है.

महामंडलेश्वर कैलाशानंद गिरी महाराज ने बताया कि नवरात्र में श्री यंत्र स्थापित कर उसका विधिपूर्वक पूजन करने से मां लक्ष्मी की विशेष कृपा बरसती है. श्रीयंत्र को यंत्रराज कहा गया है, जितने भी यंत्र हैं उन सभी का प्रादुर्भाव श्रीयंत्र से माना गया है
शास्त्रों में श्रीयंत्र की पूजा का विशेष प्रावधान है. श्रीयंत्र सब शक्तियों और सिद्धियों का द्वार है, इसकी दीक्षा लेकर विधिपूर्वक पूजा-आराधना करने से ही इसका फल प्राप्त होता है ।

इन् स्थानों पर श्री यंत्र की हुई का स्थापना

आदि शंकराचार्य ने तीन या चार जगह श्रीयंत्र स्थापित किये थे – मीनाक्षी मन्दिर मदुरै, मूकाम्बिका मन्दिर, और कामाक्षी अम्बा मन्दिर, कांची. एक श्रीयंत्र कहीं और भी स्थापित किया था जो अज्ञात है. इसके इतर चार श्रीयंत्र, चार नीलम के शिवलिंग के साथ उन्होंने अपने चार शिष्यों को भी प्रदान किया था जो आज भी चारो आश्रमों के शंकराचार्य के पास है और वे उसी की पूजा करते हैं. तिरुपति बाला जी श्रीयंत्र पर ही अवस्थित हैं जिस कारण मन्दिर दुनिया का सबसे धनी मन्दिर है.

अम्बा जी माता मंदिर में पवित्र श्रीयंत्र की पूजा ही की जाती है. इस यंत्र को कोई भी सीधे आंखों से देख नहीं सकता, इसकी फोटोग्राफी निषेध है. यह मंदिर लगभग 1200 वर्ष से अधिक प्राचीन माना जाता है. यही श्रीयंत्र की महिमा है.

श्रीयंत्र मनुष्य को अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष देने वाला है. यह संपूर्ण ब्रह्मांड की उत्पत्ति तथा विकास का प्रतीक होने के साथ मानव शरीर का भी द्योतक है.

शास्त्रों में कहा गया है कि घर में प्राण प्रतिष्ठायुक्त श्रीयंत्र को कामना के अनुसार स्थापित करना या करवाना चाहिए. श्रीयंत्र चांदी या सुवर्ण का होना चाहिए अथवा स्फटिक का सुंदर श्रीयंत्र होना चाहिए. अन्य धातुओं पर बने श्रीयंत्र हेय माने गये हैं क्योंकि यह श्रीयंत्र त्रिपुरसुन्दरी महालक्ष्मी का यंत्र है. फैक्ट्री में बने अशुद्ध यंत्र तो कभी भूलकर भी घर में न रखें. श्री यंत्र को किसी आचार्य की देखरेख में किसी शुभतिथि और मुहूर्त में बनवाना चाहिए. यदि सोने चांदी पर नहीं बनवा सकते तो रेशम के कपड़े पर शुभतिथि और मुहूर्त में बनवाएं, लेकिन यह श्रीयंत्र एकवर्ष बाद बदलना पड़ता है।

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