चारधाम यात्रा हादसे- वरिष्ठ पत्रकार व्योमेश चन्द्र जुगरान की रपट
उत्तराखंड में फिर एक बस गिर गई। अभी दो सप्ताह पहले हेलीकॉप्टर गिरा था। इससे पहले थार और बोलेरो गिरी थीं। मात्र तीन माह में ही करीब दो दर्जन लोग इन हादसों में अकाल मौत मर गए। तो क्या राज्य की चारधाम यात्रा पर एक असुरक्षित तीर्थाटन का कलंक गहराता जा रहा है? हालांकि सोशल मीडिया के नए ऐब ‘रील्स’ और जिम्मेदार खबरिया चैनल भी पहाड़ में सबसे हसीन बरसात के मौसम को किसी खलनायक की तरह पेश करने में पीछे नहीं हैं।
बारिश और भूस्खलन की सामान्य घटनाओं को वे पुराने और रौद्र फुटेज के साथ पेश कर बड़ी डरावनी शब्दावली में परोस रहे हैं। पर, बात सच है कि हादसे हो रहे हैं और जानें भी जा रही हैं, लिहाजा सच्ची-झूठी खबरों की यह पैकेजिंग लोगों को पहाड़ जाने से तो डराएगी !
इस बार तो पहाड़ों पर मौसम बहुत मेहरबान रहा है और छिटपुट अंतराल के साथ बारिश बनी रही है। न जंगलों में आग की रौद्र खबरें आई और न नदी-नौलों के सूखने की। पर, सड़क से लेकर आकाश तक हादसों की खबरों ने खूबसूरत बरसात को बदसूरत ढंग से ट्रैण्ड होने का मौका दे दिया। चारधाम यात्रा का जो मिजाज हुआ करता था, उसमें कमी आई है।
बदरीनाथ में भक्तों की कतारें इस बार वैसी नहीं दिखीं। यात्रा के अंतिम आंकड़ों में तो अभी देर है, पर जो शुरुआती आंकलन सामने आया है, उसके मुताबिक पिछले साल के मुकाबले तीर्थयात्रियों की संख्या में करीब 26 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है।
सरकार और उसके अधिकारी हालांकि इस गिरावट की वजह ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन की सख्ती और भीड़ को नियंत्रित करने के अन्य उपायों को मानते हैं, मगर यहां दिल्ली और अन्य शहरों में आम लोगों से बात करें तो असुरक्षा का बोध एक बड़ी वजह नजर आता है। सूचनाओं के लिए आम श्रद्धालु टीवी और सोशल मीडिया पर परोसी जाने वाली खबरों पर निर्भर है। इन खबरों में असुरक्षित यातायात, सड़क जाम और भूस्खलन इत्यादि के बीच पहाड़ों में बरसात के आनंद की समाचार-कथाएं गायब हैं। पहाड़-पर्यटन-परिवहन से जुड़ी उन खबरों पर भी फोकस नहीं है जो सरकार को उसकी जवाबदेही के लिए घेरती हों।

निसंदेह हादसों का संदेश पर्यटन के लिए अच्छा नहीं है। ऐसे में सड़क सुरक्षा के पैरामीटरों पर ध्यान दिया जाना सरकारों की सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। देश में सड़क हादसों की दृष्टि से उत्तराखंड की शिनाख्त संवेदनशील राज्यों की श्रेणी में की गई है। ऐसे में सड़कों के रख-रखाव, राहत व बचाव कार्य, पैरा मेडिकल व अन्य चिकित्सा सेवाएं, ब्लैक स्पॉट्स की पहचान और पैराफिट सुरक्षा और ड्राइवरों की मनोदशा जैसे कारकों पर खुलकर बात होनी चाहिए। खुलकर बात होगी तो एक कारगर और सुदृढ़ समन्वय की कमी अथवा मजबूती के सरोकार भी चारधाम यात्रा के समाचारों में शामिल होंगे। चारधाम यात्रा और सुरक्षित परिवहन की गारंटी के लिए इन सरोकारों पर बात करना जरूरी है।


