हिमालय में एक ऐसा मंदिर जहां महिला पुजारी करती है भगवान विष्णु की पूजा

महिला पुरूष का भेद भाव मिटाकर सामाजिक समरस्ता का संदेश देता मंदिर

डा बृजेश सती

देश में बदलते सामाजिक परिवेश के बावजूद समाज में पुरुष वर्चस्व अभी भी कायम है। देश की आधी आबादी अपने अधिकरों को पाने के लिए संघर्ष कर रही है। हालांकि देश के 21 राज्यों ने पंचायतो में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की है। इसके अलावा देश की संसद महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने से संबधित नारी शक्ति बंधन विधेयक, 2023 पारित कर चुकी है। बावजूद इसके महिला और पुरुष के बीच के अंतर कम नहीं हुआ है। देश में कुछ ऐसे भी देवालय है, जहां महिलाओं के प्रवेश पर रोक है। मगर देश में एक मंदिर ऐसा है, जो न केवल स्त्री पुरुष के बीच भेद भाव को मिटाता है, बल्कि सामाजिक समरसता की मिशाल है।

उत्तराखंड राज्य के सीमांत जनपद चमोली की उर्गम घाटी में पयूलानारायण मंदिर स्थित है। जिसमें महिला को मदिर में पूजा का अधिकार है, बल्कि वो यहां का प्रबंधन भी करती है। उनके साथ एक पुरुष पुजारी होता है। फ्यूलानारायण का यह मदिर देश का इकलौता विष्णु मंदिर है. जहां महिला अर्चक भगवान नारायण की अर्चना करती है। हालाकि देश में कुछ अन्य मदिर है, जहां महिला पुजारी हैं। मगर इनकी संख्या बहुत कम है। इस मंदिर में परम्पराएं भी अलग है। मंदिर के कपाट आम मंदिरों की तरह हमेशा नहीं खुले रहते है। बल्कि मंदिर के कपाट श्रावण मास की संक्राति के दिन खुलते हैं और भाद्र पद नंदा अष्टमी के दिन बंद किए जाते हैं।

क्या है महिला पुजारी नियुक्त की परम्परा
महिला पुजारी के नारायण मंदिर में पुजारी नियुक्त होने के पीछे पौराणिक कथा है। ऐसी जनश्रुति है कि स्वर्ग लोक की अप्सरा उर्वशी भगवान विष्णु के श्रृंगार के लिए यहां से पुष्प ले कर जाती थी। थी। इसी परम्परा के बढाते हुए फ्यूला के नारायण मंदिर में भगवान का श्रृंगार महिला पुजारी करती है। बाकायदा मंदिर के समीप ही फूलों का एक बहुत बड़ा बगीचा है। जिसमें उच्च हिमालय क्षेत्र में उगने वाली विभिन्न प्रजातियों के पुष्प खिलते हैं। इन्हीं पुष्पों से भगवान नारायण का प्रतिदिन श्रृंगार किया जाता है। यहां बदरीनाथ मंदिर की तर्ज पर ही भगवान को तुलसी की माला चढाई जाती है।

इस मंदिर में महिला पुजारी की नियुक्ति 1 वर्ष पहले की जाती है। इसके लिए गांव में पंचायत बुलाकर पुजारी का चयन किया जाता है। अगले वर्ष जब कपाट खुलते हैं, तो पचायत से चयनित महिला पुजारी मंदिर में पूजा के लिए जाती हैं। महिला पुजारी को कई नियमों का पालन करना पड़ता है इस दौरान वह मंदिर के कपाट खुलने से बंद होने तक मंदिर परिसर ही रहती है। भगवान का भोग बनाना, श्रृंगार के लिए पुष्प बाटिका से पुष्प लाना और सुब शाम पूजा करना। इस पूरी अवधि में वो मंदिर की परिधि से बाहर नहीं जाती है।

भर्की गांव के स्थानीय निवासी चन्द्र मोहन पंवार बताते हैं कि फ्यंलानारायण मंदिर में महिल पुजारी की व्यवस्था जबसे मंदिर स्थापित हुआ, तब से है। यह मंदिर देश का अकेला ऐस विष्णुजी का मंदिर है, जहां महिलाओं को भगवान की पूजा करने का अधिकार है। वो कहते है कि यह मंदिर सामाजिक समरसता और एकता की मिशाल है।

नारी शक्ति वंदन विधेयक

महिला आरक्षण विधेयक 2023, जिसे नारी शक्ति वंदन अधिनियम कहा जाता है, लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान करता है। यह 128वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में 19 सितंबर, 2023 को लोकसभा में पेश किया गया। इस विधेयक के पारित होने से लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं की भागीदारी 33 प्रतिशत सुनिश्चित हो जाएगी।

लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करना

लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और दिल्ली विधानसभा में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होगी। यह आरक्षण अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीटों पर भी लागू होगा। इस विधेयक के लागू होने के बाद, जनगणना के आधार पर महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए परिसीमन किया जाएगा।

21 राज्यों में 50 प्रतिशत पंचायतों में आरक्षण

देश के 28 राज्यों में से 21 राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायत राज व्यवस्था के तहत महिलाओं को 50 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। विहार देश का पहला राज्य है जहा वर्ष 2006 में यहव्यवस्था लागू की गई। इसके बाद अन्य राज्यों ने यह व्यवस्था लागू की। इन राज्यों ने पंचायत स्तर पर महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए 33 फीसद आरक्षण को बढ़ाकर 50 प्रतिशत किया है। पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों को छोडकर अधिकांश राज्यों में यह व्यवस्था है।

देश के अन्य मंदिर जहां है महिला पुजारी और मदिरों के प्रवेश पर रोक

देश में कुछ चुनिंदा मंदिर है, जहां महिला पुजारियों की व्यवस्था है। इनकी संख्या सीमित है। इसमें 52 शक्ति पीठों में एक कामाख्या मंदिर है। जहां सीमित संख्या में महिला पुजारी हैं। इसके अलावा बिहार के दरभंगा में अहिल्या देवी मंदिर, भारत नेपाल सीमा के पास सहोदरा शक्ति पीठ आदि मंदिर हैं जहां महिला पुजारी हैं।

इसके उलट देश में ऐसे भी मदिर है जहां महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध है। इसमें महाराष्ट्र के अहमदनगर का शनि शिंगणापुर मंदिर, हरियणा का कार्तिकेय मंदिर, असम के बरपेटा का कीर्तिनघर, ओडिसा का बिमला माता मंदिर और केरल का सबरी माला अयप्पा मदिर प्रमुख है।

उत्तराखंड से उठती समानता की आवाज

भेंठा और भर्की जैसे गांव, जो अब भी विकास की मुख्यधारा से थोड़े दूर हैं, सामाजिक चेतना और समरसता का उजाला फैला रहे हैं। भले ही यहां सड़कें और तकनीक न पहुंची हों, लेकिन यहां की परंपराएं पूरे देश को समानता का मार्ग दिखा रही हैं।

जब देश के शहरी क्षेत्र आरक्षण और अधिकारों की चर्चा में उलझे रहते हैं, तब हिमालय की गोद में बसे ये गांव चुपचाप समानता की सबसे मजबूत परंपराओं को जीवित रखे हुए हैं।

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