इंद्रधनुष की सतरंगी छटा के दर्शन होते हैं असरानी के अभिनय में

स्मृति शेष- फिल्म समीक्षक दीप भट्ट ने बेमिसाल फिल्मी सफर को बेहतरीन अंदाज में किया याद

जाने-माने अभिनेता असरानी का बीमारी के बाद मुंबई के एक निजी चिकित्सालय आरोग्य निधि में निधन हो गया था। वे 84 वर्ष के थे। उन्होंने अपने फिल्मी कॅरियर में तमाम फिल्मों में बेमिसाल अदाकारी की। पेश है उनके निधन पर यह आलेख:

रमेश सिप्पी की सुपर-डुपर हिट फिल्म-शोले के जिस डॉयलाग-हम अंग्रेजों के जमाने के जेलर हैं से महान अभिनेता असरानी की शख्सियत मापी जाती है असल में उनकी शख्सियत इससे कहीं ज्यादा बड़ी थी। इस डॉयलाग से उनके अभिनय की थाह लेना एक तरह से उनके साथ बेइंसाफी है। वे एफटीआईआई से अभिनय में स्नातक थे और फिल्म इंडस्ट्री में आकर अभिनय में जितने प्रयोग उन्होंने किए वह बहुत कम अभिनेताओं ने किए हैं। वे मैथड एक्टिंग पर यकीन करते थे।

उन्होंने महान फिल्मकार हृषिकेश मुखर्जी की फिल्म-गुड्डी के एक छोटे से रोल से अपना सिनेमाई सफर शुरू किया। इस छोटे से रोल के जरिए उन्होंने फिल्म जगत को बता दिया कि वे कितनी बड़ी रेंज के अदाकार हैं। ऋषि दा की ही फिल्म अभिमान को भला कौन भुला सकता है जिसमें उन्होंने अमिताभ बच्चन जो फिल्म में एक सिंगर की भूमिका निभा रहे थे उनके पीआरओ या निजी सचिव की भूमिका में कितने कमाल की स्वाभाविक भूमिका निभाई थी। अमिताभ के जीवन में आए उतार-चढ़ाव को उनका किरदार कितने स्वाभाविक तरीके से संभालता है इससे उनकी वह भूमिका अविस्मरणीय बन गई थी।

ऋषिदा की ही फिल्म बावर्ची में एक बंगाली भद्र परिवार के एक ऐसे नौजवान की भूमिका जो संगीतकार बनने की हसरत रखता है में भी उन्होंने कमाल की अदाकारी की थी। फिल्म में सुपर स्टार राजेश खन्ना के साथ उनके कई आमने-सामने के सीन थे। एक दृश्य में जब वे राजेश खन्ना यानी रघु से कोई सैड मूड का गीत सुनाने की फरमाइश करते हैं तो काका फौरन उन्हें जब एक गीत सुनाते हैं तो उनका स्वाभाविक अंदाज में कहा गया यह डॉयलाग-यार तुम तो बिल्कुल हसरत जयपुरी की तरह लगते हो दर्शकों को गुदगुदाता भी है और चमत्कृत भी करता है।

इसी तरह ऋषिदा की ही फिल्म-नमक हराम में काका के साथ एक होली के गीत-नदिया से दरिया दरिया से सागर, सागर से गहरा जाम में भांग की मस्ती में चूर एक व्यक्ति की भाव-भंगिमाओं को जिस अद्भुत ढंग से व्यक्त किया है वह देखने लायक है। ये वो फिल्में हैं जिनमें हृषिदा उस असली असरानी को अंतर से बाहर निकालकर लाए हैं जहां उनका अभिनय खिल उठता है।

ऋषिदा के अलावा उन्होंने बासु चटर्जी की फिल्म-छोटी सी बात में नागेश के रूप में एक ऐसे नौजवान प्रेमी की भूमिका निभाई थी जो फिल्म की नायिका विद्या सिन्हा के लिए बेहद बेचैन है और उसे किसी भी कीमत पर पा लेना चाहता है। उनके सामने अमोल पालेकर जैसे मंझे हुए अभिनेता थे। पर एक भी दृश्य ऐसा नहीं है जहां असरानी कमतर साबित हुए हों। विद्या सिन्हा के साथ प्रेम की पींगे बढ़ाने के लिए तमाम तरह की कोशिशें करता हुआ नागेश हो या फिर धीरे-धीरे फिल्म में कर्नल बने अशोक कुमार के प्रशिक्षण के बाद नायिका के अमोल पालेकर का हाथ थाम लेने वाली नायिका के छिन जाने के बाद की पीड़ा और उद्विग्नता वाले दृश्य हों इन सभी में असरानी ने जितने कमाल का अभिनय किया है उसकी दाद दिए बगैर दर्शक नहीं रह पाता। खासकर फिल्म के उस दृश्य में जब असरानी को पता चल जाता है कि कर्नल बने अशोक कुमार की तरकीबों के चलते ही नायिका उसके हाथ से छिन गई है और वह अशोक कुमार के पीछे-पीछे जिस तेजी से दौड़ रहा है वह अद्भुत है।

इस एक दृश्य में असरानी की बेचैनी, उद्विग्नता और नायिका के छिन जाने से पैदा हुआ गुस्सा और क्षोभ एक साथ उनके अभिनय में जिस तरह से व्यक्त हुए हैं उसकी मिसाल किसी और फिल्म में मिलना मुश्किल है। खासकर उस सीन में जहां कर्नल, असरानी को टिकी टिकी-गिली-गिली कहकर उकसा रहे हैं उसमें असरानी की भाव-भंगिमाएं देखने लायक हैं। नागेश यानी असरानी की वजह से यह फिल्म दर्शनीय बन गई थी। यह उनके अभिनय का जादुई संस्पर्श ही था जो फिल्म को अमर बना देता है। जबकि यह फिल्म एक साधारण की हास्यबोध पैदा करने वाली फिल्म थी।

रमेश सिप्पी ने जब असरानी को शोले फिल्म के जेलर की भूमिका के लिए कास्ट किया था तो उन्हें बताया था कि जेलर को हिटलर से प्रेरणा लेकर इस भूमिका को करना है। इसके लिए असरानी को हिटलर की स्पीच सुनाई गई और उसकी स्पीच के अलग-अलग दृश्य दिखाए गए। असरानी ने हिटलर की युवाओं को आकर्षित करने के लिए बोलने की एक विशिष्ट शैली को आत्मसात किया और उसकी बॉडी लैग्वेज को पकड़ा। उसके बाद जेलर की जो भूमिका उन्होंने निभाई वह अविस्मरणीय बन गई। पर उन्हें सिर्फ इस भूमिका से आकना उनके साथ बेमानी होगी।

असरानी का असली नाम गोवर्धन असरानी था और वे जयपुर के रहने वाले थे। बचपन से फिल्में देखने का शौक था और दिल में तमन्ना थी कि उन्हें अभिनेता बनना है तो उन्होंने पुणे स्थित भारतीय फिल्म एंड टेलीवीजन इंस्टीट्यूट में दाखिला लिया। और लंबे संघर्ष के बाद उन्हें ऋषि दा की फिल्म गुड्डी से अपना सिनेमाई सफर पूरा करने का मौका मिला।
उन्होंेने चला मुरारी हीरो बनने फिल्म का निर्माण भी किया था। दिवाली की रात वे इस दुनिया को खामोशी से अलविदा कह गए। असरानी जैसा एक्टर सदियों में पैदा होता है।

वरिष्ठ पत्रकार दीप भट्ट

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