हिमालयी च्यूरा से विकसित हुई नई औषधीय क्रांति

ब्यूटायरोसोम तकनीक से आधुनिक एलोपैथिक दवाओं के निर्माण में होगा उपयोग

उत्तराखंड के वैज्ञानिकों की बड़ी उपलब्धि

अविकल उत्तराखंड

पौड़ी। उत्तराखंड के पहाड़ों में पाया जाने वाला साधारण-सा च्यूरा अब आधुनिक चिकित्सा जगत में क्रांति ला सकता है। हाल ही में जर्नल ऑफ फार्मास्यूटिकल इनोवेशन (स्प्रिंजर नेचर) में प्रकाशित शोध में यह खुलासा हुआ है कि हिमालयी च्यूरा से विकसित वसा (लिपिड्स) से आधुनिक प्रणाली की दवाइयां तैयार की जा सकती हैं।

दिल्ली फार्मास्यूटिकल साइंसेज एंड रिसर्च यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक और उत्तराखंड मूल के डॉ देवेश तिवारी ने अपनी टीम के साथ इस शोध को अंजाम दिया है।

शोध में पाया गया कि च्यूरा से निकाले गए प्राकृतिक वसा से ब्यूटायरोसोम्स नामक एक अत्याधुनिक नैनो-ड्रग डिलीवरी प्रणाली तैयार की जा सकती है, जो दवाओं को लंबे समय तक असरदार बनाए रखती है।

कैसे काम करती है च्यूरा आधारित दवा प्रणाली
शोध के अनुसार, च्यूरा के घी में 55 से 65 प्रतिशत तक प्राकृतिक वसा होती है। इन वसाओं से तैयार किए गए नैनो कणों (230 नैनोमीटर आकार के) की दवाओं के साथ बाइंडिंग क्षमता 97 प्रतिशत से अधिक पाई गई। इस तकनीक से बनी दवाएं 24 घंटे में 98 प्रतिशत तक घुलकर लंबे समय तक असर दिखाती हैं। शोध में यह भी पाया गया कि च्यूरा के वसा में किसी भी प्रकार की विषैली धातु मौजूद नहीं है, जिससे यह पूरी तरह सुरक्षित है।

फुलवारा बनेगा भविष्य की दवा का आधार
हिमालयी क्षेत्रों में पाया जाने वाला यह पेड़ स्थानीय भाषा में फुलवारा या कल्पवृक्ष कहलाता है। इसका वैज्ञानिक नाम डिप्लोकनेमा ब्यूटायरेसिया है। च्यूरा के बीजों से निकाला गया घी स्थानीय लोग भोजन में इस्तेमाल करते हैं, इसलिए इसे इंडियन बटर ट्री भी कहा जाता है। अब यही घी आधुनिक एलोपैथिक दवाओं का आधार बनने जा रहा है।

शोध दल में शामिल रहे वैज्ञानिक

  • डॉ देवेश तिवारी (मुख्य शोधकर्ता)
  • डॉ गौरव जैन
  • डॉ अनूप कुमार
  • डॉ सूरजपाल वर्मा
  • नीतीश जंगवान
  • अभिषेक आनंद
  • ज्योति सैनी

आर्थिक दृष्टि से संभावनाएं
डॉ तिवारी ने बताया कि भारत विश्व का प्रमुख दवा निर्माता देश है, लेकिन दवाओं के लिए आवश्यक कच्चे माल का एक बड़ा हिस्सा आयात करता है। अगर च्यूरा घी को स्थानीय स्तर पर दवा उद्योग में कच्चे माल के रूप में अपनाया जाए, तो यह देश की फार्मा इंडस्ट्री को आत्मनिर्भर बनाने में मदद करेगा। उत्तराखंड में स्थित फार्मास्यूटिकल कंपनियों के लिए यह नया अवसर साबित हो सकता है।

च्यूरा जैसी स्थानीय प्रजातियां न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से उपयोगी हैं, बल्कि यह उत्तराखंड की जैव विविधता को भी आर्थिक रूप से लाभदायक बना सकती हैं। भविष्य में यह प्रदेश और देश दोनों की अर्थव्यवस्था में अहम योगदान दे सकती है। – डॉ देवेश तिवारी

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