अहमदाबाद में राजी समुदाय के भूमि और वन अधिकारों का मुद्दा उठा

पिथौरागढ़ के ललित रजवार ने रखा पक्ष

अविकल उत्तराखंड

पिथौरागढ़/अहमदाबाद। भारत भूमि और विकास नीति से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर आयोजित इंडिया लैंड एंड डेवलपमेंट कॉन्फ्रेंस (आईएलडीसी) में पिथौरागढ़ जिले के दो युवाओं ने भागीदारी कर जनजातीय समुदाय की आवाज राष्ट्रीय मंच पर बुलंद की।


अर्पण संस्था से जुड़े धर्मेंद्र सिंह और राजी समुदाय के युवा ललित सिंह रजवार ने इस सम्मेलन में हिस्सा लिया।
यह पहली बार है जब राजी जनजाति का कोई प्रतिनिधि इस अंतरराष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन में शामिल हुआ। आईएलडीसी एक ऐसा मंच है, जिसमें सरकार, शैक्षणिक संस्थानों, सिविल सोसायटी, नीति-निर्माताओं और जमीनी स्तर पर कार्यरत समुदायों के प्रतिनिधि भूमि अधिकार और विकास से जुड़े मुद्दों पर विचार साझा करते हैं। सम्मेलन के अलग-अलग सत्रों में ललित रजवार ने राजी जनजाति के वन अधिकार, भूमि स्वामित्व और नियामकीय समस्याओं पर विस्तार से अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि वन अधिकार कानून के तहत समुदाय के 83 परिवारों को भूमि अधिकार पत्र तो मिले, लेकिन अब तक भूमि राजस्व अभिलेखों में दर्ज नहीं की गई। जबकि नियमानुसार तीन माह में यह प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए थी।


उन्होंने बताया कि राजी समुदाय आज भी जंगलों पर निर्भर समाज है और उसके लिए सामूहिक वन अधिकार (सीएफआर) अत्यंत आवश्यक है। समुदाय ने सामूहिक वन अधिकार का दावा किया था, लेकिन उसे निरस्त कर दिया गया। सम्मेलन में धर्मेंद्र सिंह ने अर्पण संस्था द्वारा हाशिए पर मौजूद समुदायों के अधिकारों और संरक्षण के क्षेत्र में किए जा रहे कार्यों का विवरण प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के सत्र का संचालन आदिवासी समुदायों के भू-अधिकार और जलवायु न्याय पर शोधकर्ता एवं अर्पण संस्था की सलाहकार दीपिका अधिकारी ने किया। यह सम्मेलन 18 से 20 नवंबर तक अहमदाबाद मैनेजमेंट एसोसिएशन में आयोजित हुआ।

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