प्रस्तावित एलिवेटेड रोड परियोजना का विरोध जारी

नागरिकों ने केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को लिखा पत्र

अविकल उत्तराखंड

देहरादून। प्रस्तावित रिस्पना-बिंदाल एलिवेटेड रोड परियोजना को लेकर देहरादून और मसूरी के नागरिकों ने कड़ा विरोध दर्ज कराया है।

देहरादून सिटीज़न्स फोरम और अन्य नागरिक समूहों से जुड़े 146 लोगों ने केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी को पत्र भेजकर इस परियोजना पर रोक लगाने की मांग की है। पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में देहरादून और मसूरी के विभिन्न वर्गों के लोग शामिल हैं, जिनमें पेशेवर, सेवानिवृत्त नागरिक, लेखक, शिक्षाविद, व्यापारी, सामाजिक व पर्यावरण कार्यकर्ता तथा आम नागरिक शामिल हैं।

नागरिकों ने पत्र में स्पष्ट किया है कि वे विकास के विरोधी नहीं हैं, लेकिन 21 गंभीर कारणों के चलते 26 किलोमीटर लंबी इस एलिवेटेड रोड परियोजना को देहरादून के लिए नुकसानदेह बताया है। उनका कहना है कि शहर पहले से ही अनियंत्रित शहरी विकास, स्थानीय ट्रैफिक जाम और बढ़ते पर्यावरणीय दबाव से जूझ रहा है। ऐसे में यह परियोजना समस्याओं का समाधान करने के बजाय पर्यावरणीय, भू-वैज्ञानिक, कानूनी, सामाजिक और आर्थिक जोखिमों को और बढ़ा देगी।

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पत्र में कहा गया है कि देहरादून मेन बाउंड्री थ्रस्ट और हिमालयन फ्रंटल थ्रस्ट के बीच स्थित है, जो इसे भूकंपीय दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील बनाता है। पहले इस क्षेत्र को भूकंप जोन-4 में रखा गया था, लेकिन भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा हाल ही में जारी भूकंप जोखिम मानचित्र में इसे जोन-6 में शामिल किया गया है। रिस्पना और बिंदाल नदियाँ रेत, बजरी और गाद की परतों से होकर बहती हैं, जो हल्के भूकंप के दौरान भी तरल की तरह व्यवहार कर सकती हैं। ऐसी स्थिति में एलिवेटेड रोड के खंभों के धंसने, झुकने या गिरने का गंभीर खतरा बना रहेगा।

नागरिकों ने इस वर्ष 15 और 16 सितंबर को हुई तबाही का हवाला देते हुए कहा है कि इन नदियों में अचानक बाढ़ आती है। एलिवेटेड रोड का निर्माण नदियों के प्राकृतिक बहाव को बाधित करेगा, जिससे आईटी पार्क, डालनवाला, रेस कोर्स और इंदर रोड जैसे निचले इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ जाएगा। पत्र में यह भी कहा गया है कि नदी किनारे के क्षेत्र प्राकृतिक स्पंज की तरह भूजल को रिचार्ज करते हैं। जब इन्हें कंक्रीट से ढक दिया जाएगा, तो यह प्राकृतिक रिचार्ज प्रक्रिया बंद हो जाएगी।

पत्र में चेतावनी दी गई है कि यह परियोजना देहरादून को एक हीट आइलैंड में बदल सकती है और शहर की हवा की गुणवत्ता को भी खराब करेगी। इसका असर न सिर्फ शहरवासियों पर पड़ेगा, बल्कि रिस्पना और बिंदाल के किनारे रहने वाले छोटे-छोटे जीव-जंतुओं के अस्तित्व पर भी खतरा पैदा होगा। नागरिकों ने 2024 की भीषण गर्मी का उल्लेख करते हुए कहा है कि उस दौरान देहरादून का तापमान अप्रत्याशित रूप से 43 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया था।

नागरिकों ने परियोजना से जुड़ी प्रक्रियाओं की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाए हैं। पत्र में कहा गया है कि अब तक न तो विस्तृत परियोजना रिपोर्ट और न ही पर्यावरण प्रभाव आकलन सार्वजनिक किया गया है। परियोजना के नक्शे साझा नहीं किए गए हैं और यह भी स्पष्ट नहीं है कि कितने लोगों को विस्थापित किया जाएगा। नागरिकों का कहना है कि इस निर्माण से देहरादून की स्काईलाइन स्थायी रूप से बदल जाएगी और शहर का प्राकृतिक स्वरूप भी प्रभावित होगा।

पत्र में यह भी आरोप लगाया गया है कि जनसुनवाई से जुड़ी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया गया। नियमों के अनुसार ऐसी सुनवाइयों की वीडियो रिकॉर्डिंग और लिखित दस्तावेज तैयार किए जाने चाहिए थे, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। नागरिकों का कहना है कि जब जनसुनवाई के दौरान आम लोगों ने अपनी बात रखने की कोशिश की, तो उनके साथ धक्का-मुक्की और हाथापाई तक की गई, जिसकी खबरें अखबारों में भी प्रकाशित हुई हैं।

नागरिकों ने आशंका जताई है कि इस परियोजना से रिस्पना और बिंदाल नदियों के किनारे रहने वाले लगभग तीन हजार परिवार बेघर हो जाएंगे। ये परिवार दशकों से वहां रह रहे हैं और नियमित रूप से टैक्स, बिजली और पानी के बिल भी भरते हैं, इसके बावजूद उनके लिए कोई स्पष्ट पुनर्वास योजना सामने नहीं आई है। इसके साथ ही नदी किनारे छोटी दुकानें चलाने वाले लोगों और श्रमिकों का रोजगार भी खत्म होने की आशंका जताई गई है।

पत्र में परियोजना की बढ़ती लागत पर भी गंभीर चिंता जताई गई है। नागरिकों का कहना है कि पिछले तीन वर्षों में परियोजना की लागत काम शुरू होने से पहले ही 4,500 करोड़ रुपये से बढ़कर 6,200 करोड़ रुपये हो चुकी है। उनका अनुमान है कि परियोजना पूरी होने तक यह लागत 8 से 10 हजार करोड़ रुपये या उससे भी अधिक हो सकती है, जो खराब योजना और आर्थिक प्रबंधन को दर्शाता है।

इसके विपरीत नागरिकों ने उत्तराखंड मेट्रो रेल कॉरपोरेशन द्वारा तैयार कम्प्रिहेन्सिव मोबिलिटी प्लान-2024 का उल्लेख करते हुए कहा है कि उसमें इलेक्ट्रिक बसों, रोपवे, मौजूदा सड़कों के बेहतर उपयोग, पैदल-अनुकूल ज़ोन और हरित परिवहन पर ज़ोर दिया गया है। नागरिकों का मानना है कि यही दिशा देहरादून को अधिक सुरक्षित, हरित और स्मार्ट बना सकती है।

पत्र में यह भी कहा गया है कि एलिवेटेड रोड से देहरादून के स्थानीय ट्रैफिक जाम की समस्या हल नहीं होगी। मसूरी डायवर्जन पर यह कॉरिडोर बॉटलनेक बन जाएगा और वहां भारी जाम लगेगा। शहर के घंटाघर, सचिवालय, दून अस्पताल और कचहरी जैसे प्रमुख क्षेत्रों में जाने वाले लोगों को इससे कोई खास राहत नहीं मिलेगी। सहारनपुर चौक, बल्लीवाला, बल्लूपुर, दर्शन लाल चौक, सर्वे चौक और आराघर जैसे चौराहों पर ट्रैफिक की स्थिति जस की तस बनी रहेगी।

नागरिकों का कहना है कि देहरादून को एलिवेटेड रोड की नहीं, बल्कि एक ब्लू-ग्रीन कॉरिडोर की जरूरत है, जिसमें नदियों का संरक्षण, पैदल चलने के रास्ते, बस लेन, साइकिल ट्रैक और हरित पट्टियां विकसित की जाएं। पत्र के अंत में हस्ताक्षरकर्ताओं ने केंद्र सरकार से इस परियोजना पर पुनर्विचार करने और देहरादून के दीर्घकालिक हित में निर्णय लेने की अपील की है।

इस पत्र पर जिन लोगों ने हस्ताक्षर किये हैं, उनमें मुख्य रूप से देहरादून से अनूप नौटियाल, अनीश लाल, भारती जैन, जगमोहन मेहंदीरत्ता, रमना कुमार, रीतू चटर्जी, डॉ. उमेश कुमार, अजय दयाल, फ्लोरेंस पांधी, अभिनव थापर, डॉक्टर अरुणजीत धीर, किरण कपूर, राधा, मधुनजाली, अराधना नागरथ, राधेश लाल और मसूरी से गणेश सैली , कर्नल दास, हरदीप मान, मनमोहन कर्णवाल, प्रसेनजीत सिंह रॉय, तूलिका, रश्मि, शैलेन्द्र कर्णवाल, सुनील प्रकाश, अनिल प्रकाश, विनोद कुमार अग्रवाल, तान्या बक्शी, राहुल करनवाल आदि शामिल हैं। इनके साथ ही देहरादून और मसूरी के अलग-अलग क्षेत्रों से जुड़े लोगों ने भी पत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।

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