राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की जांच रिपोर्ट से मची खलबली
उत्तराखंड के पूर्व चीफ वाइल्डलाइफ वार्डन सुहाग को अपर मुख्य सचिव आनन्द बर्द्धन ने जारी किया कारण बताओ नोटिस
कॉर्बेट के कालागढ़ वन प्रभाग में अवैध पातन व अवैध निर्माण का प्रकरण
अबिकल उत्त्तराखण्ड
देहरादून। विश्व प्रसिद्ध कार्बेट नेशनल पार्क के कालागढ़ वन प्रभाग में हुए निर्माण कार्यों की गंभीर वित्तीय गड़बड़ी को लेकर अपर मुख्य सचिव आनन्द वर्द्धन ने तत्कालीन चीफ लाइफ वार्डन जबर सिंह सुहाग को कारण बताओ नोटिस जारी किया है।
कार्बेट जोन के निर्माण कार्यों में गड़बड़ी को लेकर राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण की जांच रिपोर्ट के बाद अपर प्रमुख वन संरक्षक सुहाग को नोटिस जारी कर जवाब मांगा गया है। अपर मुख्य सचिव आनन्द वर्द्धन ने 27 दिसंबर को 6 पेज का नोटिस जारी किया। नोटिस में कई गंभीर गड़बड़ियों का जिक्र कर जवाब तलब किया गया है।
नोटिस में अपर मुख्य सचिव आनन्द वर्द्धन ने लिखा है कि राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुत जांच आख्या से यह स्पष्ट है कि कण्डी रोड निर्माण, मोरघट्टी तथा पाखरौ वन विश्राम गृह परिसर में भवनों का निर्माण, पाखरौ वन विश्राम गृह के समीप जलाशय का निर्माण तथा प्रस्तावित टाइगर सफारी में वृक्षों के अवैध पालन के संबंध में वैधानिक प्रशासनिक तथा वित्तीय स्वीकृति के बिना नियम विरुद्ध कार्य किया गया है, जो कि भारतीय वन अधिनियम, 1927. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 तथा वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के प्राविधानों के विरूद्ध हैं।
इस मुद्दे पर वन मंत्री हरक सिंह रावत भी समय समय पर अपनी सरकार से नाराजगी दिखाते थे। कुछ समय पहले हाफ राजीव भरतरी को हटाने के पीछे भी इस मामले को मुख्य वजह माना गया था। कालागढ़ वन प्रभाग के इन निर्माण कार्यों को लेकर नैनीताल हाईकोर्ट ने भी जांच के आदेश दिए थे। इधर, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण की रिपोर्ट पर भी अधिकारियों ने अमल नही किया।
अपर मुख्य सचिव आनन्द वर्द्धन के नोटिस की मूल भाषा
उत्तराखण्ड शासन
वन अनुभाग-1
संख्या – 2173/x-1-2021-02 (10)/2021 टी०सी० देहरादूनः दिनांक 27 दिसम्बर, 2021
“कारण बताओ नोटिस”
श्री जबर सिंह सुहाग, अपर प्रमुख वन संरक्षक, मुख्य कार्यकारी अधिकारी, कैम्पा परियोजना / तत्कालीन मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक, उत्तराखण्ड, देहरादून।
कार्बेट नेशनल पार्क के अन्तर्गत कंडी रोड निर्माण, मोरघट्टी तथा पाखरौ वन विश्राम गृह परिसर में भवनों का निर्माण, पाखरौ वन विश्राम गृह के समीप जलाशय का निर्माण, पाखरौ में प्रस्तावित टाईगर सफारी में वृक्षों के अवैध पातन तथा भारतीय वन अधिनियम, 1927 वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 तथा वित्तीय नियमों के उल्लंघन के संबंध में के संबंध में Assistant Inspector General of Forest (NTCA) के संलग्न पत्र दिनांक 22.10.2021 के साथ संलग्न एन0टी०सी०ए० के जॉच दल द्वारा प्रस्तुत जांच आख्या का कृपया संदर्भ ग्रहण करने का कष्ट करें, जिसके माध्यम से कॉर्बेट टाईगर रिजर्व में बरती गई अनियमितताओं का उल्लेख करते हुए दोषी अधिकारियों के विरुद्ध कार्यवाही करने के निर्देश दिये गये हैं।
2 उक्त के संबंध में अवगत कराना है कि एन०टी०सी०ए० द्वारा प्रस्तुत उक्त जांच आख्या में कण्डी रोड निर्माण, मोरघट्टी तथा पाखरी वन विश्राम गृह परिसर में भवनों का निर्माण, पाखरौ वन विश्राम गृह के समीप जलाशय का निर्माण तथा पाखरौ में प्रस्तावित टाइगर सफारी में वृक्षों के अवैध पातन के संबंध में गंभीर प्रशासनिक एवं आपराधिक अनियमिततायें परिलक्षित हुई है। राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण के उक्त संदर्भित पत्र दिनांक 22.10.2021 के द्वारा व्यवहृत प्रकरण में स्थलीय जांच आख्या निम्न बिन्दुओं पर प्रस्तुत की गयी है
(1) राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण द्वारा अपनी जांच आख्या में मुख्यतः यह उल्लिखित किया गया है कि कंडी रोड में आरसीसी बीम और क्रास बीम का प्रयोग किया गया है तथा उसमें प्रयोग होने वाले मिट्टी को समीपस्थ वन क्षेत्र से जो कि 50 से 100 मीटर की दूरी पर है, से भारी मशीनों का प्रयोग करते हुये लाया गया तथा टाइगर अधिवास को क्षति पहुंचाई गयी।
(ii) उक्त जांच आख्या में प्राधिकरण द्वारा यह उल्लिखित किया गया है कि मौके पर उपस्थित प्रभागीय वनाधिकारी कार्यबल के द्वारा यह अवगत कराया गया कि उक्त निर्मित रोड़ पेट्रोलिंग हेतु प्रयोग में लाया जायेगा। उल्लिखित किया गया है कि उक्त रोड़ पर एकल स्पैन के पांच पुल / कल्वर्ट जो लगभग 5 मीटर चौड़ाई के निर्मित किये गये हैं जो एकल लेन के हाईवे की आवश्यकता को पूरा करते हैं। वित्तीय संसाधनों के संबंध में जांच आख्या में उल्लिखित किया गया है कि प्रभागीय वनाधिकारी कार्यबल के द्वारा बिना वित्तीय एवं तकनीकी स्वीकृति के कार्य कराये गये हैं।
(iii) मोरघट्टी तथा पाखरो वन विश्राम गृह परिसर में भवनों का निर्माण के संबंध में प्रभागीय वनाधिकारी द्वारा उक्त निर्माण स्टाफ क्वार्टर के रूप में होने के संबंध में गलत कथन किये जाने और इस संबंध में फर्जी अभिलेख प्रस्तुत किये जाने का जांच आख्या में उल्लेख किया गया है। उक्त निर्माण कार्य हेतु वित्तीय संसाधनों के संबंध में जांच आख्या में उल्लिखित किया गया है कि प्रभागीय वनाधिकारी द्वारा उक्त निर्माण कार्य बिना वित्तीय एवं तकनीकी स्वीकृति के कराये गये हैं।
(iv) पाखरौ वन विश्राम गृह के समीप जलाशय के संबंध में उक्त जांच आख्या में उल्लिखित किया गया है कि उक्त जलाशय का निर्माण सक्षम प्राधिकारी की अनुमति के बिना कराया गया है तथा प्रभागीय वनाधिकारी के कथन के विपरीत उक्त जलाशय के निर्माण में वृक्षों के अवैध पातन होने का उल्लेख किया गया है।
(v) उक्त जांच आख्या में पाखरौ में प्रस्तावित टाइगर सफारी में वृक्षों के अवैध पातन के संबंध में यह उल्लिखित किया गया है कि टाइगर सफारी के निर्माण में 163 वृक्षों के पातन की अनुमति के विपरीत कहीं अधिक संख्या में वृक्षों का पातन किया गया है।
उक्तानुसार राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुत जांच आख्या से यह स्पष्ट है कि कण्डी रोड निर्माण, मोरघट्टी तथा पाखरौ वन विश्राम गृह परिसर में भवनों का निर्माण, पाखरौ वन विश्राम गृह के समीप जलाशय का निर्माण तथा पाखरी में प्रस्तावित टाइगर सफारी में वृक्षों के अवैध पालन के संबंध में वैधानिक प्रशासनिक तथा वित्तीय स्वीकृति के बिना नियम विरुद्ध कार्य किया गया है, जो कि जो कि भारतीय वन अधिनियम, 1927. वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम 1972 तथा वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 के प्राविधानों के विरूद्ध हैं।
उक्त के अतिरिक्त निम्नवत तथ्य भी शासन के संज्ञान में आये हैं
(i) सनेह वन विश्राम गृह में वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980 में विहित प्राविधानों के विरूद्ध बिना पूर्वानुमति के निर्माण कार्य कराया गया है। (ii) पाखरौ टाइगर सफारी में किये गये निर्माण कार्यों में नियमानुसार प्राकृतिक सामग्री का प्रयोग न करते हुये ढ़ांचे के निर्माण में कंक्रीट का प्रयोग किया गया है।
(iii) पाखरौ टाइगर सफारी के निर्माण में अनुमति से अधिक संख्या में वृक्षों का अवैध पातन किया गया है। (iv) पाखरौ वन विश्राम गृह परिसर में वैधानिक / प्रशासनिक / वित्तीय स्वीकृति के
बिना नियम विरूद्ध निर्माण कार्य किया गया है। (v) मोरघट्टी वन विश्राम गृह परिसर में निर्माण कार्य बिना वित्तीय एवं प्रशासनिक स्वीकृति के कराये गये हैं।
(vi) पाखरौ से कालागढ़ पेट्रोलिंग रोड़ के आसपास के क्षेत्र से बड़ी मात्रा में मिट्टी हटायी गयी है, जो कि भारतीय वन अधिनियम, 1927 तथा वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्राविधानों के विरूद्ध है।
(vi) पाखरौ वन विश्राम गृह परिसर के निकट निर्मित जलश्रोत / जलाशय के निर्माण में वृक्षों का अवैध पातन किया गया है, जो कि भारतीय वन अधिनियम, 1927 तथा वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 के प्राविधानों के विरूद्ध है। (viii) कुगड्डा फॉरेस्ट कैम्प, पालेन रेन्ज, कालागढ़ टाइगर रिजर्व में निर्माण कार्य
बगैर वैधानिक / प्रशासनिक / वित्तीय स्वीकृति के किया गया है।
उक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि सनेह वन विश्राम गृह में बगैर पूर्वानुमति के किये गये निर्माण कार्य, पाखरी टाइगर सफारी में किये गये निर्माण कार्यों में कंक्रीट का प्रयोग, पाखरौ टाइगर सफारी के निर्माण में अनुमति से अधिक संख्या में किये गये वृक्षों का अवैध पातन पाखरौ वन विश्राम गृह परिसर में वैधानिक / प्रशासनिक / वित्तीय स्वीकृति के बिना किये गये निर्माण कार्य, मोरघट्टी वन विश्राम गृह परिसर में बिना स्वीकृति के किये गये निर्माण कार्य, पाखरौ से कालागढ़ पेट्रोलिंग रोड़ के आसपास के क्षेत्र से बड़ी मात्रा में मिट्टी का हटाया जाना पाखरी वन विश्राम गृह परिसर के निकट निर्मित जलश्रोत / जलाशय के निर्माण में वृक्षों का अवैध पातन तथा कुगड्डा फॉरेस्ट कैम्प, पालेन रेन्ज, कालागढ़ टाइगर रिजर्व में बिना स्वीकृति के किये गये निर्माण कार्य भारतीय वन अधिनियम, 1927 वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 तथा वन (संरक्षण) नियम, 1980 के प्राविधानों के विरूद्ध हैं।
उक्त के संबंध में अवगत कराया जाना है कि उक्त घटनाक्रम की अवधि में आपको मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, उत्तराखण्ड का कार्यभार अतिरिक्त रूप से आवंटित था। राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण, पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा अपने पत्र दिनांक 22 अक्टूबर 2021 द्वारा सीधे आपको अपनी स्थल निरीक्षण रिपोर्ट प्रेषित की गई तथा यह अनुरोध किया गया कि आप इस प्रकरण में दोषी अधिकारियों के विरूद्ध कार्यवाही करें।
भारत सरकार द्वारा स्पष्ट एवं सीधे निर्देशों के बाद भी आपके द्वारा इस प्रकरण में कोई कार्यवाही नहीं की गई। इस प्रकार आप द्वारा वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1970 की धारा-38 (O) (2) का सीधा उल्लंघन किया गया। आपके द्वारा वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1970 की धारा-38V (2). 33(b) तथा (c) द्वारा आपको मुख्य वन्य जीव प्रतिपालक के रूप में प्रदत्त विधिक दायित्वों का भी पालन नहीं किया गया, जो कि एक गम्भीर कर्तव्यहीनता है।
पाखरों में टाइगर सफारी का निर्माण एक महत्वपूर्ण परियोजना है, परंतु यह स्पष्ट हुआ है कि इस परियोजना में भी मानकों का अनुपालन नहीं हुआ है तथा इसमें पूर्व में स्वीकृत परियोजना से इतर कार्य कराए गए हैं जिस हेतु भारत सरकार एवं अन्य सक्षम स्तर से कोई अनुमति नहीं ली गई है। इस प्रकार मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, उत्तराखण्ड के स्तर से प्रकरण में अपेक्षित कोई कार्यवाही नहीं किए जाने से राज्य की इस महत्वपूर्ण योजना को समयान्तर्गत निर्धारित मानकों के अनुसार पूर्ण किये जाने पर संशय उत्पन्न हुआ है, जिस हेतु आपकी भी सीधी जिम्मेदारी बनती है।
उपरोक्त कार्यों से प्रथम दृष्टया भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 26 की उपधारा (क). (च) (छ) एवं (ज) का स्पष्ट उल्लंघन होता है। इसी प्रकार वन (संरक्षण)
अधिनियम 1980 की धारा 2 एवं 3 (b) का भी स्पष्ट उल्लंघन हुआ है, जो कि दंडनीय है। इस पत्र में पूर्व में अंकित वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1970 की धाराओं के साथ साथ धारा 52 के भी उल्लंघन का प्रकरण प्रथम दृष्टया बनता है। इन कार्यो के कराए जाने में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व की स्वीकृत टाइगर कॉन्जर्वेशन प्लान का भी अनुपालन नहीं किया गया तथा स्वीकृत प्लान के इतर जा कर कार्य किए गए, जो नियम विरूद्ध हैं।
उक्त के क्रम में उल्लेखनीय है कि मा० उच्च न्यायालय द्वारा जनहित याचिका संख्या-178/2021 में पारित आदेश दिनांक 27.10.2021 के क्रम में गठित समिति द्वारा दिनांक 30.10.2021 को स्थलीय निरीक्षण किया गया। उक्त समिति द्वारा पत्र दिनांक 28 अक्टूबर, 2021 के माध्यम से आपको निरीक्षण के दौरान उपस्थित रहने हेतु निर्देशित किया गया किन्तु आप न तो निरीक्षण के दौरान उपस्थित रहे और न ही आपके द्वारा अपना पक्ष समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया, जिससे माननीय उच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों को पूर्ण करने में बाधा हुई। उक्त समिति द्वारा यह टिप्पणी की गयी है कि पाखरौ में कैम्पा मद से उपलब्ध करायी गयी समस्त धनराशि का विवरण आपसे मांगा गया था, जो कि आपके द्वारा उपलब्ध नहीं कराया गया। उक्त समिति की आख्या शपथ पत्र के रूप में मा० उच्च न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत है।
उक्त के अतिरिक्त यह भी अवगत कराना है कि अपर मुख्य सचिव, वन एवं पर्यावरण, उत्तराखण्ड शासन के पत्र दिनांक 13.10.2021 के माध्यम से आपको प्रश्नगत प्रकरण में हुये अवैध पातन तथा अवैध निर्माण कार्यों पर विस्तृत आख्या प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ) के माध्यम से शासन को उपलब्ध कराये जाने हेतु निर्देशित किया गया था किन्तु उक्त
प्रकरण में यथोचित समय व्यतीत हो जाने के बावजूद वांछित आख्या आतिथि अप्राप्त है।
आपका यह कृत्य अखिल भारतीय सेवायें (आचरण) नियमावली, 1968 के विरूद्ध है।
8- प्रश्नगत प्रकरण के संबंध में यह तथ्य भी उल्लेखनीय है कि निदेशक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व द्वारा समय-समय पर कालागढ़ टाइगर रिजर्व में हो रही विभिन्न अनियमितताओं के विषय में मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, उत्तराखण्ड को विभिन्न पत्रों के माध्यम से अवगत कराया जाता रहा, परन्तु आपके द्वारा अपने स्तर से इस प्रकरण में कोई हस्तक्षेप नहीं किया। आपके द्वारा न तो कोई स्थलीय निरीक्षण किया गया. ना कोई निरीक्षण टिप्पणी निर्गत की गयी और न ही कोई लिखित दिशा-निर्देश संबंधित अधिकारियों को निर्गत किए गये, जो कि मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के रूप में अपेक्षित था। इस प्रकार आपके द्वारा अपने कार्यकाल में इस अवैध घटनाक्रम की पूर्ण जानकारी होते हुए भी इसके रोकथाम एवं निराकरण हेतु कोई कार्यवाही नहीं की।
9- उत्तराखण्ड के मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के रूप में कार्य करते हुए प्रदेश के समस्त संरक्षित क्षेत्रों एवं टाइगर रिजर्व के राज्य स्तर पर प्रबंधन का सीधा दायित्व आपका था। इसी प्रकार समय-समय पर प्रभावी निरीक्षण तथा अनुश्रवण द्वारा आपके नियंत्रणाधीन अधिकारियों के कार्यक्षेत्र में हो रहे कार्यों के तकनीकी प्रशासनिक एवं वैज्ञानिक आधार पर नियमित मूल्यांकन कर समस्त संबंधित अधिकारियों को मार्गदर्शन प्रदान किया जाना भी आपके स्तर से अपेक्षित था। आपके द्वारा न केवल मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक के रूप में अपने वालों का निर्वाचन नहीं किया गया अपित शासन एवं अन्य उच्च स्तर से इस प्रकरण में कार्यवाही किये जाने एवं जांच कर आख्या देने जैसे निर्देशों का भी अनुपालन नहीं किया गया। इस प्रकार अपने सीधे नियंत्रणाधीन क्षेत्र में किए जा रहे अनधिकृत एवं अवैध कार्यों की रोकथाम में आप न केवल पूर्ण रूप से विफल रहे, अपितु ऐसे घटनाओं का विवरण निदेशक कॉर्बेट टाइगर रिजर्व, उत्तराखण्ड शासन एवं भारत सरकार की संस्थाओं द्वारा उपलब्ध कराये जाने के बाद भी आपके द्वारा इस पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी।
10 इसी प्रकार मुख्य कार्यकारी अधिकारी, कँपा परियोजना, उत्तराखण्ड के रूप में आपके द्वारा इन कार्यों हेतु कालागढ़ टाइगर रिजर्व प्रभाग को उपलब्ध कराई गयी धनराशि का स्पष्ट विवरण मांगे जाने के बाद भी प्रमुख वन संरक्षक (हॉफ), उत्तराखण्ड, देहरादून, जो कि कैम्पा की कार्यकारी समिति के अध्यक्ष भी हैं, को उपलब्ध न कराया जाना यह संदेह उत्पन्न करता है कि आपके द्वारा न केवल इन अवैध कार्यों की रोकथाम हेतु कोई प्रभावी कार्यवाही नहीं की गई, अपितु इन कार्यों को प्रत्येक रूप से संरक्षण देने का प्रयास भी किया गया तथा इससे संबंधित विवरण को शासन एवं अन्य उच्च अधिकारियों के समक्ष जानबूझकर प्रस्तुत नहीं किया गया। इन कार्यों हेतु कँपा के मानकों एवं स्वीकृत कार्य योजना के अंतर्गत अथवा इतर क्या कोई धनराशि मुख्य कार्यकारी अधिकारी उत्तराखण्ड कँपा के स्तर से निर्गत की गयी, इस पर भी आपके द्वारा स्थिति स्पष्ट नहीं की गयी है। इस प्रकार इस सारे घटनाक्रम में आप राज्य के एक वरिष्ठ अधिकारी की अपेक्षित भूमिका के विपरीत न केवल एक मूकदर्शक बने रहे अपितु इन कार्यों हेतु आपके द्वारा पूर्ण संरक्षण भी प्रदान किया गया। उपरोक्त अवैधानिक कार्यों के क्रियान्वयन में आपकी संलिप्तता तथा आपराधिक दुरभिसंधि की प्रबल शंका उत्पन्न होती है। इस आचरण से आपके विरूद्ध इस पत्र में वर्णित तथ्यों में वन्य जीव (संरक्षण) अधिनियम 1970 की धाराओं के साथ-साथ धारा-52 के भी उल्लंघन का प्रकरण प्रथम दृष्टया बनता है।
11 – उपरोक्त वर्णित तथ्यों के दृष्टिगत आपका यह कृत्य भारतीय वन अधिनियम, 1927. वन (संरक्षण) अधिनियम, 1980, वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 तथा अखिल भारतीय सेवायें (आचरण) नियमावली, 1968 के विरूद्ध है। आप मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, उत्तराखण्ड, देहरादून के रूप में कार्बेट टाइगर रिजर्व के अन्तर्गत वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास की रक्षा करने के अपने कर्तव्यों में विफल रहे हैं। आपके द्वारा वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास के विनाश किये जाने संबंधी तथ्यों को जानबूझकर राज्य सरकार से छिपाया गया है जो आपकी सत्यनिष्ठा को संदेहास्पद बनाता है। अतएव क्यों न आपके विरुद्ध अखिल भारतीय सेवायें (अनुशासन एवं अपील) नियमावली, 1969 के प्राविधानों के अन्तर्गत अनुशासनिक कार्यवाही प्रचलित की जाये।
12 – अतः इस संबंध में मुझे यह कहने का निदेश हुआ है कि राष्ट्रीय व्याघ्र संरक्षण प्राधिकरण द्वारा प्रस्तुत उक्त जांच आख्या में की गयी संस्तुति तथा उक्त वर्णित तथ्यों के क्रम में प्रकरण के संबंध में अपना स्पष्टीकरण, प्रमुख वन संरक्षक (HoFF), उत्तराखण्ड, देहरादून के माध्यम से इस कारण बताओ नोटिस की प्राप्ति की तिथि से विलंबतम् 01 (एक) सप्ताह के भीतर शासन में उपलब्ध कराने का कष्ट करें। यदि आपके द्वारा निर्धारित समयान्तर्गत स्पष्टीकरण उपलब्ध नहीं कराया जाता है तो यह समझा जायेगा कि आप उक्त तथ्यों के संबंध में कोई स्पष्टीकरण / प्रत्युत्तर प्रस्तुत नहीं करना चाहते हैं एवं तदनुसार प्रकरण में गुणावगुण के आधार पर विचार कर अग्रेत्तर आपके विरूद्ध अखिल भारतीय सेवायें (आचरण) नियमावली, 1968 व अन्य सुसंगत नियमावलियों आदि में विहित प्राविधानों के अन्तर्गत यथोचित प्रशासनिक, वैधानिक, अनुशासनात्मक आदि कार्यवाही प्रारम्भ कर दी जायेगी।
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