पीसीसीएफ,कमिश्नर व पीसीबी सदस्य सचिव को 15 दिन के अंदर कोर्ट में उपस्थित होने के दिये आदेश
अविकल उत्तराखण्ड
नैनीताल। प्लास्टिक कचरे के निस्तारण में लापरवाही व ग्राम पंचायतों का नक्शा अपलोड नहीं करने पर नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य के सभी डीएफओ पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना ठोक दिया। यही नहीं , उच्च न्यायालय ने पीसीसीएफ, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के सदस्य सचिव समेत गढ़वाल व कुमाऊं मंडल के कमिश्नर को कोर्ट में 15 दिसंबर को उपस्थित होने के आदेश भी दिए हैं।
गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रमेश चंद्र खुल्बे की खंडपीठ ने विभागीय लापरवाही पर जमकर फटकार भी लगाई। उल्लेखनीय है कि हवालबाग, अल्मोड़ा निवासी जितेंद्र यादव ने इस मुद्दे पर नैनीताल हाईकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की थी।
गुरुवार को कोर्ट की ओर से लगाये गए 10-10 हजार जुर्माने की राशि राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण में जमा की जाएगी। इसके अलावा हाईकोर्ट ने सभी डीएफओ ( प्रभागीय वनाधिकारी ) की सूची भी कोर्ट में पेश करने के आदेश दिए हैं।
कोर्ट ने यह भी कहा कि वन विभाग व प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्रदेश में आने वाली प्लास्टिक बंद वस्तुओं की संख्या के आंकलन के बाद एक रिपोर्ट पेश करें।
कोर्ट में शपथ पत्र पेश नहीं करने व अन्य आदेशों का पालन नहीं करने पर अवमानना की कार्रवाई की बात भी कही। कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि होटल, माल के कर्ता धर्ताओं को अपना कूड़ा कचरा रिसाइक्लिंग कर प्लांट तक ले जाना होगा।
यह आदेश दिए थे कोर्ट ने जिनका पालन नहीं किया गया
गौरतलब है कि हाईकोर्ट ने पूर्व में प्लास्टिक में बंद वस्तुओं को बेचने वाली कंपनियों को निर्देश दिए थे कि वे अपना कचरा 15 दिन के अंदर स्वंय निस्तारित करें। अगर ऐसा नहीं करते तो नगर निगम, नगर पालिकाओं, नगर पंचायतों व अन्य को कचरा उठाने की जिम्मेदारी दें। और इसके बदले में भुगतान करें।
जितेंद्र यादव की ओर से दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि उत्तराखण्ड सरकार ने प्लास्टिक यूज व उसके निस्तारण करने के लिए 2013 में नियमावली बनाई थी । लेकिन इन नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया जा रहा है। राज्य में जगह जगह प्लास्टिक का कचरे एकत्रित हो रखा है। और सम्बंधित विभाग व यूनिट इस कचरे का निस्तारण नहीं कर रहे हैं।
यहां यह भी बता दें कि 2018 में केंद्र सरकार ने प्लास्टिक वेस्ट मैनेजमेंट रूल्स बनाए गए थे। इसके अनुसार उत्पादकर्ता, परिवहनकर्ता व विक्रेताओं को जिम्मेदारी दी थी कि वह जितना प्लास्टिक निर्मित माल बेचेंगे, उतना ही खाली प्लास्टिक को वापस भी ले जाएंगे। अगर नहीं ले जाते है तो संबंधित नगर निगम , नगर पालिका व अन्य को धनराशि देंगे जिससे कि वे प्लास्टिक का निस्तारण कर सकें लेकिन उत्तराखंड में इसका उल्लंघन किया जा रहा है।
गुरुवार को कोर्ट की फटकार व जुर्माने के बाद सम्बंधित विभाग में हड़कंप मच गया। उत्तराखण्ड के 80 प्रतिशत से अधिक नगर निगम,पालिका व पंचायतों के पास ट्रंचिंग ग्राउंड ही नहीं है। राज्य में एक दिन में एकत्रित होने वाले सैकड़ों टन कचरे (प्लास्टिक से इतर भी) का सिर्फ 30 से 40 प्रतिशत ही निस्तारण ही हो पाता है।
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