दस साल से हल्द्वानी में हो रही सीजीएचएस सेंटर की मांग


उत्तराखंड में महज एक देहरादून में ही है ये सेंटर

कुमाऊं के कर्मियों की मांग पर नहीं हो रही सुनवाई



सेवारत और रिटायर 18 हजार लाभार्थी हैं कुमाऊं में

अविकल उत्तराखण्ड


देहरादून। कुमाऊं में रहने वाले केंद्र सरकार के सेवारत और सेवानिवृत्त कर्मियों और अफसरों को स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। कुमाऊं में ऐसे लोगों की संख्या लगभग 18 हजार है और सेंटर खोलने का मानक छह हजार का है। इसके बाद भी तमाम प्रयासों के बाद केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय हल्द्वानी में सीजीएचएस सेंटर नहीं खोल रहा है। संगठनों ने इस बारे में केंद्रीय राज्यमंत्री अजय भट्ट और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को ज्ञापन भी भेजा है।


केंद्र सरकार अपने कर्मियों के लिए सीजीएचएस सेंटर खोलती है। उत्तराखंड में एक मात्र सेंटर देहरादून में है। इससे कुमाऊं मंडल में रहने वालों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस बारे में पूर्व केंद्रीय सशस्त्र फोर्स परसन्स एसोसिएसन और रिटायर आईएएस आफीसर्स फोरम की ओर से लगातार पत्रचार किया जा रहा है। पर केंद्र सरकार इस पर कोई ध्यान नहीं दे रही है।


संगठनों ने बताया कि इस बारे में सीजीएचएस देहरादून के डिप्टी डाइरेक्टर ने एक पत्र के जवाब में लिखा कि सेंटर खोलने के लिए छह हजार की जनसंख्या का मानक है। संगठनों का कहना है कि कुमाऊं में केंद्रीय सेवा के 1238 सेवारत कर्मी और 16594 रिटायर लोग हैं। इस तरह से इनकी संख्या 17832 है। मानक छह हजार का है और कुमाऊं में इसके तीन गुना ज्यादा लोग हैं।


संगठनों का कहना है कि अगर हल्द्वानी में यह सेंटर खुल जाए तो कुमाऊं के सीमान्त जनपदों के साथ ही सीमावर्ती बरेली, पीलीभीत, मुरादाबाद और रामपुर जनपदों के केंद्रीय कर्मियों को भी स्वास्थ्य सेवाएं आसानी से उपलब्ध हो सकेंगी। पिछले दिनों हल्द्वानी पहुंचे केंद्रीय राज्य मंत्री अजय भट्ट से पूर्व केंद्रीय सशस्त्र फोर्स परसन्स एसोसिएसन और रिटायर आईएएस आफीसर्स फोरम ने भेंट की और सेंटर खुलवाने के लिए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से बात करने का आग्रह किया। राज्यमंत्री अजय भट्ट ने कहा कि आपकी मांग जायज है। जल्द ही एक प्रतिनिधि मंडल की केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री से भेंट करवा कर इस समस्या का समाधान कराया जाएगा।


यहां बता दें कि इस बारे में पिछले 10 सालों से लगातार मांग की जा रही है। कोई भी इस गंभीर समस्या पर ध्यान नहीं दे रहा है। नतीजा यह है कि कुमाऊं में रहने वाले केंद्रीय कर्मियों को स्वास्थ्य सेवाओं से महरूम होना पड़ रहा है।

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