आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन और विज्ञान–तकनीक पर मंथन

यूकॉस्ट सम्मेलन – 500 से अधिक शोधपत्र प्रस्तुत, 20 से अधिक तकनीकी सत्र आयोजित

अविकल उत्तराखण्ड

देहरादून। उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद (यूकॉस्ट) द्वारा आयोजित विश्व आपदा प्रबंधन शिखर सम्मेलन (WSDM 2025) तथा 20वां उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी सम्मेलन (USSTC) के अंतर्गत आज 29 नवंबर 2025 को ग्राफिक एरा डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी, देहरादून में 20 से अधिक तकनीकी सत्र आयोजित किए गए। इन सत्रों में उत्तराखंड सहित देश–विदेश से आए शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। साथ ही 10 से अधिक विशिष्ट सत्र भी आयोजित किए गए।

इस अवसर पर आपदा प्रबंधन, जलवायु परिवर्तन, वैज्ञानिक नवाचार और तकनीकी विकास से जुड़े विषयों पर व्यापक चर्चा हुई। आयोजन के तहत 12 विशेष प्रौद्योगिकी सत्र आयोजित किए गए, जिनमें अंतरराष्ट्रीय सहयोग, सतत वित्तपोषण, आपदा जोखिम वित्त, अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी, कार्बन इकोसिस्टम, मीडिया की भूमिका, सिक्किम मॉडल और हिमालयी कॉरिडोर विकास जैसे महत्वपूर्ण विषय शामिल थे।

सत्रों में यह भी विशेष रूप से रेखांकित किया गया कि विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से समुदायों को सशक्त बनाना, आपदा जोखिम न्यूनीकरण, सामाजिक विकास, कृषि, स्वास्थ्य सेवाएँ, जैव प्रौद्योगिकी, पर्यावरण संरक्षण जैसे क्षेत्रों में मजबूत नीति–निर्माण की जरूरत है। इन आयोजनों का उद्देश्य वैज्ञानिक सहयोग बढ़ाना और साक्ष्य–आधारित आपदा प्रबंधन को और प्रभावी बनाना है।

इसी क्रम में वॉटर कॉन्क्लेव का आयोजन भी किया गया, जिसमें जलवायु, जल संसाधन और आपदा प्रबंधन के पारस्परिक संबंधों पर विशेषज्ञों ने विस्तृत चर्चा की।
प्रो. राजीव सिन्हा, डॉ. राघवन कृष्णन, प्रो. अनिल कुलकर्णी, डॉ. अरविंद कुमार और डॉ. राकेश सहित अन्य विशेषज्ञों ने नदियों, हिमनदों, मौसमीय परिवर्तन और जल शासन पर अपने विचार रखे। अवैध रेत खनन, हिमालयी ग्लेशियरों में हो रहे बदलाव और एकीकृत जल नीति जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे इस दौरान प्रमुखता से उभरकर सामने आए।

सत्र में श्री शंकर कोरंगा (उपाध्यक्ष, राज्य स्तरीय वॉटरशेड परिषद) और आईएएस मीनाक्षी सुन्दरम ने विज्ञान और प्रशासन के बेहतर समन्वय की आवश्यकता पर जोर दिया। इसके साथ ही ट्राइबल कम्यूनिटी से संबंधित विशेष सत्र भी आयोजित किए गए।

इसके अतिरिक्त, आपदा प्रबंधन में मीडिया की भूमिका पर एक विशेष सत्र हुआ, जिसमें विभिन्न मीडिया प्लेटफॉर्म के वरिष्ठ पत्रकारों ने भाग लेकर आपदा संचार की चुनौतियों और संभावनाओं पर अपने विचार साझा किए।
इस पूरे आयोजन में 500 से अधिक शोधार्थियों ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए।

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