वरिष्ठ पत्रकार मृणाल पांडे ने लिखा है “सुनील दुबे- कुसुमादपि कोमल, वज्रादपि कठोर’ पुस्तक का प्राक्कथन (फोरवर्ड).
किताब में 30 से अधिक साथी पत्रकारों की रचनाएं.
सुनील दुबे की पत्नी मंजू दुबे की विशिष्ट उपस्थिति में लखनऊ के सेंट जोसेफ कॉलेज के ऑडीटोरियम में किस्सों, घटनाओं, अनुभवों व यादों की खुली अद्भुत पोटली.
अविकल उत्तराखण्ड
लखनऊ। वरिष्ठ हिन्दी पत्रकार और अपने समय के महत्वपूर्ण संपादक सुनील दुबे के कुछ साथी पत्रकारों के निजी संस्मरणों पर आधारित पुस्तक ‘सुनील दुबे- कुसुमादपि कोमल, वज्रादपि कठोर’ का आज 23 जुलाई, 2023 (रविवार) को राजधानी लखनऊ में सेंट जोसेफ कॉलेज में लोकार्पण किया गया।
सुनील दुबे की पत्नी मंजू दुबे की विशिष्ट उपस्थिति में वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखिका सुनीता ऐरन ने इस पुस्तक का लोकार्पण करते हुए अपनी यादें साझा की।
ग्रे पैरट पब्लिशर्स द्वारा प्रकाशित और वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक दिनेश पाठक द्वारा संपादित यह पुस्तक 30 से अधिक पत्रकारों की रचनाओं का संकलन है। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सुश्री मृणाल पांडे ने इस किताब का प्राक्कथन (फोरवर्ड) लिखा है। यह किताब न्यूज रूम के बाहर-भीतर एक सफल संपादक के कुछ कामकाजी पहलुओं का संस्मरणात्मक ताना—बाना बुनती है।
पुस्तक के संपादक दिनेश पाठक ने कहा कि सुनील दुबे जी ने अपने लंबे पत्रकारीय जीवन में उत्तर प्रदेश, बिहार और दिल्ली-एनसीआर में हिन्दी के कई प्रमुख अखबारों के संस्करण लॉन्च और री-लॉन्च किये थे। उनकी बनायी विभिन्न संपादकीय टीमों से निकले सौ से अधिक लोग उनके जीवनकाल में ही देश के मुख्य धारा के लगभग सभी प्रमुख मीडिया ब्रांड्स में ऊँचे पदों पर पहुँचे या आज भी कार्यरत हैं। इनमें दो दर्जन से ज्यादा मीडियाकर्मी ब्यूरो चीफ, स्थानीय संपादक, कार्यकारी संपादक और संपादक तक बने।
इस अवसर पर वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक नवीन जोशी, आलोक जोशी, दिनेश पाठक, अविनाश चंद्र और नागेन्द्र ने भी सुनील दुबे के साथ गुजरे-गुजारे अपने-अपने अनुभव साझा किए।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक नवीन जोशी ने कहा कि सुनील दुबे का सानिध्य नही मिला होता तो संपादक नही बना होता। 1999 में मैं हिंदुस्तान में पहुंचा तो बताया गया कि दुबे जी चिल्लाते हैं तो मशीन भी काँपती है लेकिन वो अपने सहयोगियों के गुणों को जानते थे। उन्होंने कहा कि ये बहुत अच्छी पहल है। ऐसे प्रयास होते रहने चाहिए।
वरिष्ठ पत्रकार और लेखक नागेन्द्र ने कहा कि उनकी सबसे बड़ी खूबी उनकी एडिटोरियल मैनेजमेंट की स्किल थी।
वरिष्ठ पत्रकार ब्रजेश शुक्ला ने कहा कि वो अपने स्टाफ को परिवार की तरह मानते थे, काम में कमी हो तो डांटते थे।
हिंदुस्तान टाइम्स की संपादक सुनीता ऐरन ने कहा कि मैं न्यूज़ एडिटर थी तब मेरी सबसे ज्यादा मदद दुबे जी ने की। मैं अपने संपादक के यहां कम लेकिन दुबे जी के केबिन में ज्यादा खबरों को समझती थी।
वरिष्ठ पत्रकार आलोक जोशी ने कहा कि मैने उनके साथ काम नहीं किया लेकिन उनके किस्से बहुत सुने हैं।
इस अवसर पर सुनील दुबे की पत्नी मंजू दुबे, बहन साधना और शिखा ने भी अपनी भावनाएं व्यक्त की।
सुनील दुबे: ट्रेनी जर्नलिस्ट से संपादक बनने तक का सफर
सुनील दुबे ने अपने करियर की शुरुआत ‘दैनिक जागरण’ में ट्रेनी जर्नलिस्ट के रूप में की। ‘दैनिक जागरण’ में ही अच्छे काम के चलते रिकॉर्ड छह माह में वह स्टाफर बना दिए गए। सात साल के अंदर ही वह वहां न्यूज एडीटर के पद तक पहुंचे। इसके बाद पटना ‘हिन्दुस्तान’ में स्थानीय संपादक बनाए गए। फिर ‘दैनिक जागरण’ दिल्ली के संपादक बने। इसके बाद वह ‘राष्ट्रीय सहारा’ के लखनऊ संस्करण के लॉन्चिंग एडीटर बने। ‘हिन्दुस्तान’ पटना में एक बार फिर से बतौर संपादक उनकी वापसी हुई। 1996 में उन्होंने लखनऊ में ‘हिन्दुस्तान’ लॉन्च किया। फिर ‘हिन्दुस्तान’ दिल्ली में कार्यकारी संपादक के रूप में काम किया। वहां से तीसरी बार उन्हें पटना ‘हिन्दुस्तान’ बतौर संपादक कमान संभालने के लिए कहा गया। पटना ‘हिन्दुस्तान’ में उन्होंने रिटायरमेंट तक काम किया।
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