संस्कृति व शोधों के समन्वित उपयोग की आवश्यकता

ग्राफिक एरा में आपदा प्रबंध पर वर्ल्ड समिट का दूसरा दिन

अविकल उत्तराखण्ड

देहरादून। आपदा प्रबंधन पर वर्ल्ड समिट के दूसरे दिन दुनिया के प्रख्यात वैज्ञानिकों और शोधकर्ताओं के साथ जनप्रतिनिधियों और नौकरशाहों ने आपदाओं से होने वाला जोखिम न्यूनतम करने की तकनीकों, ज्ञान और अनुभवों पर विस्तृत चर्चा की। उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के पूर्व राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी ने आपदाओं से होने वाले जोखिम को कम करने के लिए संस्कृति और वैज्ञानिक शोधों के समन्वित उपयोग पर जोर दिया।
इस वर्ल्ड समिट के मुख्य संयोजक व यूकोस्ट के महानिदेशक डॉ दुर्गेश पंत ने बताया कि आपदाओं के विभिन्न रूपों, प्रभावों और  प्रभावितों की समस्याओं को कम से कम करने पर इस वर्ल्ड समिट के साथ ही दस तकनीकी सत्रों में विशेषज्ञों ने कारगर उपायों पर प्रकाश डाला। इनमें आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और मशीन लर्निंग से लेकर परम्परागत उपाय तक शामिल हैं। अनेक आपदाओं से जख्मी हो चुके हिमालयी राज्य उत्तराखंड के लिए आपदा प्रबंधन एक बहुत महत्वपूर्ण विषय है। सिलक्यारा की आपदा के दौरान पूरे विश्व को अपने दक्षता और संवेदनशीलता का अहसास करा चुके उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन के विभिन्न पक्षों, तकनीकों, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस के उपयोग पर चर्चा के लिए दुनिया के 50 से अधिक देशों के वैज्ञानिकों, विशेषज्ञों और शोधार्थियों, राजनयिकों, नौकरशाहों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच तीन दिन चलने वाले मंथन पर पूरे देश की निगाहें टिकी हैं। 
ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में आयोजित वर्ल्ड समिट के दौरान हिमालयन क्षेत्र को आपदाओं से सुरक्षित करने पर आयोजित सत्र को सम्बोधित करते हुए पूर्व राज्यपाल श्री कोश्यारी ने कहा कि आज विज्ञान और परम्परागत ज्ञान को जोड़कर आगे बढ़ने की आवश्यकता है। इनके समन्वय से भविष्य के लिए ठोस रणनीति बनाई जानी चाहिये। हिमालय के दूर दराज के क्षेत्रों को जाकर देखने और परम्पराओं में निहित ज्ञान को समझने के बाद समाधान की बात करना अधिक प्रभावशाली होगा। उन्होंने हिमालययी राज्यों में सहयोग बढ़ाने की आवश्यकता पर जोर देते हुए कहा कि आदिकाल से ऋषि मुनि पारस्परिक सहयोग के पक्षधर रहे हैं।  विकास की गतिविधियों में प्रकृति के सभी घटकों का ध्यान रखना जरूरी है।
टिहरी के विधायक श्री किशोर उपाध्याय ने हिमालय क्षेत्र की समस्याएं एक जैसी होने का उल्लेख करते हुए आपसी सहयोग की आवश्यकता बताई। जीबी पंत यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मनमोहन चौहान ने कृषि क्षेत्र में नवाचार बढ़ाने और खेती को तकनीकों से जोड़ने पर जोर दिया। इस चर्चा में भारतीय वन्य जीव संस्थान के पूर्व निदेशक व हिमालय एकेडमी ऑफ साईंस एंड टेक्नोलॉजी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ जे एस रावत, दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रो बी डब्लू पांडेय, विशेषज्ञ श्री मनोज पंत भी शामिल रहे। वक्ताओं ने हिमालययी राज्यों और सीमावर्ती देशों के बीच आपदाएं रोकने के लिए सहयोग बढ़ाने की बात कही।
समिट के दौरान आयोजित वाटर कनक्लेव में विशेषज्ञों ने अतीत के अध्ययन के साथ ही वर्तमान में सर्वेक्षण और संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। उत्तराखंड सरकार के प्रमुख सचिव डॉ आर मिनाक्षी सुंदरम ने भूतल और भूगर्भ के जल से जुड़े वैज्ञानिक शोधों के उपयोग की आवश्यकता बताई। उन्होंने अपने टिहरी के अतिवृष्टि से आपदा के अपने पहले अनुभव को साझा करते हुए आपदाओं से होने वाली क्षति को कम करने के उपायों पर चर्चा की।
वाटर कनक्लेव में आईआईटी कानपुर के प्रो. राजीव सिन्हा, आईटीएम पुणे के प्रो राघवन कृष्णन, और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साईंस, बंगलौर के प्रो वी के कुलकर्णी ने मुख्य वक्ता के रूप में विभिन्न क्षेत्रों और स्थितियों में पानी की उपलब्धता और इसके संरक्षण की तकनीकों पर प्रकाश डाला। इस अवसर पर स्पेस टू सेफ्टी विषय पर आयोजित संगोष्ठी की अध्यक्षता इसरो मुख्यालय के निदेशक डॉ जे बी थॉमस ने की। इसमें एसएसएडी आसाम के प्रमुख डॉ एस एस कुण्डू, एसएसी अहमदाबाद के डॉ श्रीजीत के एम व डॉ नीरु जायसवाल और आईआईआरएस के वैज्ञानिक डॉ एच सी कर्नाटक व डॉ सी एम भट्ट मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए। इस संगोष्ठी में मुख्य रूप से नाइजर सैटेलाइट की विविध विशेषताओं और उपयोगिता पर प्रकाश डाला गया।
वर्ल्ड समिट में भारतीय ज्ञान परम्परा, संस्कृति के प्राकृतिक आपदाओं से संबंध पर भी मंथन का आयोजन किया गया। इसमें उत्तराखंड सरकार के सचिव श्री दीपक गैरोला, केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय देवप्रयाग के निदेशक प्रो. सुब्रमण्यम, उत्तराखंड संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ डी सी शास्त्री व प्रो वेंदुमति और आईकेएस सेंटर की प्रो माला कपाडिया मुख्य वक्ता के रूप में शामिल हुए।
बहुपक्षीय सहयोग से आपदाओं के दौरान तत्काल राहत विषय पर आयोजित तकनीकी सत्र में देश विदेश के विशेषज्ञों ने आम आदमी की राहत और बचाव में भागीदारी बढ़ाने पर मंथन किया। इंडिया डेवलपमेंट रिव्यू की सह संस्थापक देवांशी वैद ने कहा कि मीडिया संवेदनशील और दीर्घकालिक नजरिये से आपदा प्रबंधन में सक्रिय योगदान दे सकता है। इंडियन एक्सप्रेस की नेशनल फीचर एडिटर देवयानी उनियाल ने कहा कि आपदाओं के लिए एक बड़ी सीमा तक इंसान जिम्मेदार हैं। मीडिया आपदाओं से बचाव के लिए लोगों पर दीर्घकालिक प्रभाव डाल सकता है। लोकध्वनि की सह संस्थापक डॉ पूर्णिमा वेंकट ने कार्बन के उत्सर्जन से आपदाओं पर पड़ने वाले प्रभावों पर प्रकाश डाला।
समिट में आपदा प्रबंधन में स्थानीय समुदायों की भूमिका विषयक सत्र को संबोधित करते हुए गूंज फाउंडेशन के उत्तराखंड के प्रतिनिधि शिव प्रसाद नैथानी ने कहा कि पर्वतीय क्षेत्रों में आपदाएं अचानक और बहुत तीव्रता से आती है, इसलिए स्थानीय समुदायों के अनुभवों, पारम्परिक ज्ञान और सहयोग को आपदा प्रबंधन का मुख्य केंद्र बनाना आवश्यक है। गूंज के पश्चिमी बंगाल के प्रतिनिधि प्रसनता सरकार ने कहा कि तटीय और बाढ़ प्रभावित इलाकों में स्थानीय समुदाय की भागीदारी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। इसलिए लोगों के अनुभवों और ज्ञान को नीतियों का हिस्सा बनाया जाना चाहिए। गूंज की उड़ीसा की प्रतिनिधि संजुक्ता ने भी आपदा प्रबंधन की रणनीति में स्थानीय लोगों की भागीदारी को अधिक प्रभावी बताया।
आपदा जोखिम न्यूनीकरण में मीडिया की भूमिका विषय पर आयोजित सत्र में वरिष्ठ पत्रकारों श्री राघवेश पांडेय, श्री अनुपम त्रिवेदी, शिशिर प्रशांत,  यूकोस्ट के श्री अमित पोखरियाल, डॉ कंचन डोभाल, श्री पवनलाल चंद, डॉ सुभाष गुप्ता,  डॉ शिखा मिश्रा और अन्य वक्ताओं ने आपदाओं से होने वाले नुकसान को कम करने के उपाय सुझाये। इस सत्र में कई शोध पत्र भी प्रस्तुत किये गये।
वर्ल्ड समिट के दौरान आयोजित विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी प्रदर्शनी में देश की विभिन्न संस्थाओं ने अपनी नई खोजों, उत्पादो और तकनीकों का प्रदर्शन किया। इस प्रदर्शनी ने आपदा प्रबंधन में इस्तेमाल होने वाले यंत्रों, द्रोण और औषधीय पौधों से लेकर अंतरिक्ष तक से जुड़े यंत्र एक ही स्थान पर नजर आये। शाम तक हजारों लोग प्रदर्शनी में अनूठी तकनीकों और यंत्रों की जानकारी लेते दिखाई दिये।
समिट में आपदा जोखिम कम करने मानचित्रीकरण व अंतरिक्ष तकनीकों के उपयोग, जैव विविधता व जैव तकनीक, एआई व मशीन लर्निंग के उपयोग, तकनीकी समाधान व नवाचार, भूक्षरण, भीड़ वाले क्षेत्रों में आपदा प्रबंधन, विश्व भर में अपनाई जाने वाली रणनीतियों, जलवायु परिवर्तन से जुड़े पूर्वानुमान व दावानल शमन जैसे विषयों पर 10 तकनीकी सत्रों में 180 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किये गये। इनमें गढ़वाल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ एस पी सिंह, के साथ ही प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों  प्रो अरुण कुमार त्यागी, डॉ सुषमा गैरोला, श्री शशांक लिंगवाल, डॉ प्रकाशम, डॉ सुमनलता, सुश्री आशा थपलियाल, डॉ प्रियदर्शी उपाध्याय, डॉ अमित अग्रवाल, डॉ अबदीन, डॉ गजेंद्र सिंह ने विचार व्यक्त किये।

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