केजरीवाल की आहट से निकला चैंपियन की वापसी का रास्ता
राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी का वीटो भी किया अनसुना
मुख्यमन्त्री त्रिवेंद्र,निशंक, मदन कौशिक भी कोर ग्रुप की बैठक में नहीं कर पाए विरोध
अविकल उत्तराखण्ड/बोल चैतू
देहरादून। देवभूमि उत्तराखण्ड का चीरहरण करने वाले भाजपा विधायक कुंवर प्रणव चैंपियन माफी मांगने के बाद फिर से भाजपा के हो गए।
अब इसे केजरीवाल की दहशत कहें या फिर चैंपियन के 56 इंच के सीने व फौलादी भुजाओं का दबाव जो भाजपा पूरी तरह घुटनों पर आ गयी।
उत्तराखण्ड के स्वाभिमान, अस्मिता पर गहरी व मर्मांतक चोट करने वाले विधायक कुंवर प्रणव को फिर भाजपा में शामिल कर लिया गया। राज्यसभा सदस्य अनिल बलूनी का वीटो भी धरा रहा गया। जबकि साल भर पहले अनिल बलूनी ने उत्तराखंड को गाली देने के मुद्दे पर चैंपियन को बाहर का रास्ता दिखवाया था।
भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में भाजपा के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत, केंद्रीय मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक समेत कई अन्य चुप्पी साध गए। शिवप्रकाश व श्याम जाजू के घर वापसी के ड्राफ्ट पर मुहर लगा दी। और भरी महफ़िल में उत्तराखंड का चीरहरण करने व गाली देने वाले कुंवर प्रणव चैंपियन की ससम्मान वापसी हो गयी।
इस पूरे मामले में महाभारत के कई उन प्रसंगों की यादें ताजा हो उठी जब भरी महफ़िल में चीरहरण हो रहा था । और भीष्म पितामह, धृतराष्ट्र, द्रोणाचार्य, कृपाचार्य आदि लोग चुपचाप बैठे रहे। ताज्जुब की बात तो यह रही कि भाजपा सांसद अजय भट्ट ने उत्तराखंड के बारे में घृणित व कुत्सित टिप्पणी करने वाले चैंपियन को विद्वान बता दिया। कई भाषाओं का ज्ञाता बता दिया। भट्ट जी का यह वक्तव्य भी जन अदालत में खड़ा है।
भाजपा की अदालत ने बेशक चैंपियन को बरी कर दिया हो लेकिन जनता की अदालत में फैसला होना अभी बाकी है। सवाल उनसे भी पूछे जाएंगे जो बड़बोले व बदतमीज विधायक की वापसी को मौन समर्थन देते रहें। विपक्षी दल चैंपियन की वापसी पर कितना शोर मचाती है, यह भी आने वाले कल में पता लग जायेगा।
चैंपियन की वापसी के सवाल पर दिल्ली के मुख्यमन्त्री केजरीवाल की उत्तराखण्ड से चुनाव लड़ना भी एक मुख्य वजह मानी जा रही है। दरअसल, केजरीवाल के ऐलान के बाद ही रातों रात चैंपियन की वापसी का ड्राफ्ट तैयार किया गया। और छह साल के लिए निष्काषित विधायक को साल भर में ही वापस ले लिया गया।
केजरीवाल उत्त्तराखण्ड की चुनावी राजनीति में तीसरे ध्रुव के तौर पर देखे जा रहे हैं। दिल्ली में मोदी-अमित शाह की जोड़ी को दो-दो चुनावी अखाड़े में पटकनी दे चुके केजरीवाल उत्त्तराखण्ड की बेहद जागरूक, चैतन्य व स्वभाव से क्रांतिकारी जनता को भी अपनी अलग शैली में प्रभावित कर सकते हैं।
सत्ता विरोधी रुझान को भुना सकते हैं। भाजपा के थिंक टैंक भी इस एंगल को समझ बूझ रहे हैं । यही कारण है भाजपा अपने बिखरे कुनबे को एक छत के नीचे लाने की कोशिश में जुट गई है। चैंपियन की वापसी को इस मुहिम की पहली कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है।
लेकिन केजरीवाल फैक्टर के चलते चैंपियन की वापसी से भाजपा स्वंय कठघरे में खड़ी है। बेशक चैंपियन अपनी करनी के लिए देवभूमि वासियों से माफी मांग रहे है लेकिन उनका वो वक्तव्य पहाड़ की जनता कभी भुला नही पाएगी।
वापसी की इस राजनीतिक प्रक्रिया के बाद भी चैंपियन व भाजपा जनता की अदालत में एक मुजरिम की तरह खड़े हैं। घाटियों से चीरहरण की आग का धुंआ अभी और आसमान तक उठेगा।
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