सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड के अधिकारियों से मांगा जवाब, लगाई क्लास
यहां पढ़े सुप्रीम कोर्ट के आदेश’
भ्रामक विज्ञापन दिखाने के मामले में रामदेव बाबा कुछ ऐसे फंस चुके है कि उनकी सालों की कमाई हुई पहचान और नाम मिनटों में धूमिल हो गई….रामदेव बाबा ने पिछले कई सालों से अपने योग और आयुर्वेद दवाइओं से ऐसी पहचान बनाई थी कि हर कोई उनका कायल हो गया था..लेकिन कोरोना जैसी महामारी में रामदेव बाबा ने अपने ज्ञान, बुद्धि और योग का आयुर्वेद के नाम पर जो तमाशा किया वो किसी से छिपी नही है…मतलब खुद को स्थापित करने की लालसा कैसी की दूसरो को नीचा दिखा दिया जाए…लेकिन रामदेव बाबा अपने ही बनाए गढ्ढे में खुद गिर गए और गिर भी तो ऐसे की अब उन्हें सुप्रीम कोर्ट की भी माफी नही मिल रही….जनता की तो बात ही मत किजिए….बाबा रामदेव को गलत ठहराने से पहले आइए समझते है पूरा विवाद..
भ्रामक विज्ञापन विवाद
दरअसल जुलाई 2022 में पतंजलि ने अखबार में एक विज्ञापन चलावाया था जिसमें उसने कहा था कि एलोपैथी द्वारा कई गलतफहमियां फैलाई जा रही हैं। पतंजलि ने यह तक कह दिया था कि आंख-कान, अस्थमा, थायरॉइड जैसी बीमारियों का इलाज करने में एलोपैथी फेल हुआ है। उसके बाद विज्ञापन में दावा किया कि पतंजलि की दवाइयां और योग के माध्यम से इन सभी बीमारियों का इलाज किया जा सकता है।
और पतंजलि को यह विज्ञापन चलवाना भारी पड़ गया ..दरअसल उस विज्ञापन को लेकर IMA अगस्त 2022 में ही सुप्रीम कोर्ट चला गया और कहा गया कि पतंजलि ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 का उल्लंघन किया, उसकी तरफ से भ्रामक विज्ञापन दिखाए गए। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) ने रामदेव पर टीकाकरण अभियान और आधुनिक दवाओं को बदनाम करने का अभियान चलाने का भी आरोप लगाया गया था।
उसी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सबसे पहले पिछले साल नवंबर में सुनवाई की….उसी समय कोर्ट ने विज्ञापन पर रोक लगा दी साथ ही मीडिया से भी बातचीत पर भी रोक लगा दी…
जिसके बाद कंपनी की ओर से हलफनामे में कहा गया था कि पतंजलि उत्पादों के औषधीय असर का दावा करने वाला कोई भी अनौपचारिक बयान या किसी भी दवा प्रणाली के खिलाफ कोई बयान या विज्ञापन जारी नहीं किया जाएगा।
.लेकिन रामदेव बाबा कहा चुप रहने वालें थे..बाबा ने भी मीडिया से बातचीत की और….अपने भ्रामक विज्ञापनो पर भी पाबंदिया नही लगाई…
नतीजा .. सुप्रीम कोर्ट नाराज हो गए और अपने आदेशों की अवहेलना होने पर साफ कर दिया कि परिणाम तो भुगतने ही पड़ेंगे…
अदालत ने केंद्र और आईएमए को नोटिस जारी करते हुए सुनवाई की अगली तारीख 15 मार्च तय की थी। रामदेव पर आईपीसी की धारा 188, 269 और 504 के तहत सोशल मीडिया पर चिकित्सा बिरादरी की ओर से इस्तेमाल की जाने वाली दवाओं के बारे में भ्रामक जानकारी फैलाने के आरोप में मामला दर्ज किया गया है।
एलोपैथी विवाद
बाबा रामदेव ने 21 मई, 2021 को कहा था कि एलोपैथी बकवास विज्ञान है और रेमेडिसिवीर और फेविफ्लू जैसी दवाईयां कोरोना मरीजों के उपचार में पूरी तरह विफल रही हैं। साथ ही उन्होंने कहा था कि लाखों मरीजों की मौत ऑक्सीजन की वजह से नहीं एलोपैथिक दवाईयों से हुई है। अपने इस बयान पर रामदेव ने माफी मांगी थी, लेकिन एक दिन बाद ही उन्होंने IMA को एक पत्र लिखकर एलोपैथी से जुड़े 25 सवालों के जवाब भी मांगे थे।
जब 2024 में शुरू हुई सुनवाई
हालांकि इस सबके बाद भी आखिरकर रामदेव बाबा को झुकना ही पड़ा और उन्होंने कोर्ट में माफी मांगी। लेकिन 10 अप्रैल 2024 , बुधवार को बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण की पतंजलि के भ्रामक विज्ञापन मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने बाबा रामदेव और उत्तराखंड सरकार के दवा लाइसेंसिंग प्राधिकरण को जमकर फटकार लगाई। न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की पीठ ने दोनों की माफी को अस्वीकार कर दिया और कहा कि देश की जनता को भी यह पता होना चाहिए कि कोर्ट के वचन का महत्व होता है और कोई भी इसका उल्लंघन नहीं कर सकता है।
हालांकि, सुनवाई के बीच में ही अपनी सफाई देते हुए उत्तराखंड के खाद्य और औषधि प्रशासन के संयुक्त निदेशक डॉ. मिथिलेश ने कोर्ट से हाथ जोड़कर माफी मांगी थी और कहा था कि यहां जो भी हुआ है सब मेरी पोस्टिंग से पहले हुआ है।
लेकिन डॉ. मिथिलेश की बातें सुनकर कोर्ट ने दया नही दिखाई और …कहा कि हमें ऐसा क्यों करना चाहिए ? आपकी ऐसा करने की हिम्मत कैसे हुई? आपने क्या कार्रवाई की? आप कोर्ट से दया चाहते हैं लेकिन उन निर्दोष का क्या जिन्होंने कोविड टाइम में ये दवाएं लीं ?
सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के माफी के हलफनामे खारिज कर दिया और कहा कि उन्होंने ऐसा तब किया जब गलती पकड़ ली गई है। उन्हे अंडरटेकिंग के उल्लंघन के मामले में कार्रवाई का सामना करना होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने रामदेव और आचार्य बालकृष्ण के माफीनामें पर फटकार लगाते हुए कही यह बात
SC ने कहा कि इन तीनों ड्रग्स लाईसेंसिंग अधिकारियों को अभी सस्पेंड कीजिए।।
ये लोग आपकी नाक के नीचे दबदबा बनाते हैं। आप इसे स्वीकार करते हैं? आयुर्वेद दवाओं का कारोबार करने वाली उनसे भी पुरानी कंपनियाँ हैं।
अदालत का मखौल बनाया जा रहा है
आपने इस मामले में किस लीगल डिपार्टमेंट या एजेंसी से सलाह ली?
इससे ज्यादा हिंदी में हम नहीं समझा सकते।
क्यों न आपके खिलाफ कार्रवाई हो! क्यों ना माना जाए कि आपकी मिली भगत भी थी इसमें।
आपने बिना एक्ट में देखे आपने वार्निंग की बात लिखी। एक्ट में कहां बस की बात है? लोग मर जाएं आप वार्निंग देते रहें।
आपने बहुत नौकरी कर ली। अब घर बैठिए। आपको बुद्धि नहीं आई है।
आरोपियों के वकील ने बॉम्बे हाईकोर्ट के एक ऑर्डर का हवाला दिया तो जस्टिस अमानुल्ला ने कहा रबिश।
SC ने आदेश में लिखा कि पूरे प्रकरण को ध्यान में रखते हुए हमने दायर किए गए नवीनतम हलफनामे को स्वीकार करने के बारे में अपनी आपत्तियां बता दी हैं। हमने यह भी बताया है कि कारण बताओ नोटिस के बाद भी, इन लोगों (रामदेव और बालकृष्ण) ने अदालत मे पेश होने से बचने का प्रयास किया।
राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने भी आपत्तिजनक विज्ञापनों के संबंध में की गई कार्रवाई स्पष्ट करने के लिए एक विस्तृत हलफनामा दायर किया है। लेकिन हम यह देखकर हैरान हैं कि फाइल को आगे बढ़ाने के अलावा कुछ भी नहीं किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा हमारे हिसाब से 9 महीने का समय लाइसेंसिंग अथॉरिटी के ज्वाइंट डायरेक्टर के पास करवाई करने लिए पूरा समय था। अब ऐसे में ज्वाइंट डायरेक्टर हलफनामा दायर कर बताए कि उन्होंने क्या कार्रवाई की है?
कोर्ट ने 2018 से अब तक राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी, हरिद्वार में तैनात रहे जॉइंट डायरेक्टरों से स्पष्टीकरण मांगा है। बता दें कि कोर्ट ने इस मामले में अब 16 अप्रैल को सुनवाई करेगा।
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