जंगल की आग पर विभागीय कर्मियों के निलंबन पर भड़के भाजपा विधायक

बोले विधायक महंत, निचले कर्मियों के बजाय बड़े अधिकारियों पर हो एक्शन

देखें पत्र- सीएम को लिखे पत्र में भाजपा विधायक ने उठाए कई सवाल

बड़े अधिकारी अपने कक्ष में बैठकर ही विभाग की सेवा करते है

अविकल थपलियाल/एक्सक्लूसिव

कोटद्वार। उत्तराखण्ड के जंगल की आग पर सुप्रीम कोर्ट के बाद भाजपा विधायक भी अपनी सरकार पर फायर कर गए।लैंसडौन से भाजपा विधायक दलीप रावत ने सीएम को एक पत्र लिखकर कई ज्वलन्त सवाल उठाए। विधायक ने वन विभाग के कार्मिकों के निलंबन को भी गलत ठहराया। विधायक ने कहा कि बड़े अधिकारी सिर्फ कमरों में बैठकर अपने काम को अंजाम देते हैं। निलंबन की कार्रवाई निचले स्तर के कर्मियों के बजाय बड़े अधिकारियों पर होनी चाहिए। बड़े अधिकारी चौकियों के निरीक्षण तक ही सीमित रहते हैं। विधायक दलीप रावत ने फायर लाइन, ग्रामीणों के अधिकार,फायर वॉचर्स की कमी व कम वेतन समेत कई मुद्दे उठाकर हलचल मचा दी।

देखें भाजपा विधायक का सीएम धामी को सम्बोधित पत्र

सेवा में,

श्रीमान् पुष्कर सिंह धामी जी माननीय मुख्यमंत्री उत्तराखण्ड सरकार।

आवास : ग्राम-रतनपुर, पो०-कुम्भीचौड़ कोटद्वार, पौड़ी गढ़वाल, फोनः 01382-229909 कैम्प कार्यालयः रामीसैरा, पो०-ढौटियाल पट्टी-बदलपुर, लैन्सडाउन

विधायक निवास: बी 27, रेसकोर्स, देहरादून मो0 9412441936, 9456590886

दिनांक 09/05/2024

उत्तराखण्ड सरकार

विषयः- उत्तराखण्ड में वनाग्नि के संबंध में।

मा० महोदय,

मुझे समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि उत्तराखण्ड में फैली भीषण आग को नियंत्रित ना करने के संबंध में कुछ निचले कर्मचारियों को लापरवाही बरतने में निलंबित किया गया है। मेरी व्यक्तिगत राय है कि निचले कर्मचारियों का निलंबन करने से पहले यह ध्यान देना जरूरी है कि क्या अग्नि सुरक्षा हेतु निचले स्तर पर पूरे कर्मचारी नियुक्त है? क्या निचले स्तर पर अग्नि बुझाने हेतु पूरे संसाधन उपलब्ध हैं? धरातल पर मुझे यह भी अनुभव हुआ है कि फायर सीजन में रखे जाने वाले फायर वाचरों की संख्या पर्याप्त नहीं है। यदि होती भी है तो वह कागजों तक ही सीमित रहती है। निचले स्तरों पर फायर वाचरों हेतु उनकी सुरक्षा हेतु उचित संसाधन नहीं रहते है, और ना ही जंगलों में आग बुझाने के दौरान घटना स्थान पर उनके लिए भोजन आदि की उचित व्यवस्था रहती है।

महोदय, यह भी संज्ञान में लिया जाना चाहिए कि ब्रिटिश काल में वनों के बीच में अग्नि नियंत्रण हेतु फायर लाइन बनाई गयी थी जो कि आज समय में कहीं दिखायी नहीं देती है, जबकि वनों में आग लगने की स्थिति में यह फायर लाइन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। अतः उक्त फायर लाइन पर भी कार्य किया जाना चाहिए।

महोदय,

वर्तमान में कड़े वन अधिनियमों के कारण स्थानीय जनता वनों से दूर होती जा रही है, और अनके मन में यह भाव पैदा हो गया है कि यह वन हमारे नहीं है, और इन वनों के कारण हमें जन सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है। जबकि ब्रिटिश काल में जंगलों की सुरक्षा जन सहभागिता के आधार पर की जाती थी। परन्तु उक्त व्यवस्थाओं से जनता का वनों के प्रति मोह भंग हो गया है। अतः इन बातों पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।

महोदय, मैने इन्हीं सारी समस्याओं के संबंध में आपसे एवं विधानसभा अध्यक्ष से एक विशेष सत्र आहूत की जाने की मांग की थी। ताकी उक्त सारी समस्याओं पर चिंतन एवं मनन किया जा सके।

महोदय, यह भी संज्ञान में आया है कि संबंधी वनाधिकारी, प्रभागीय वनाधिकारी, क्षेत्रीय वनाधिकारी केवल चौकियों तक ही निरीक्षण कर अपनी इतिश्री समझ लेते है।

महोदय, संज्ञान में यह भी आया है कि जंगलों में नियुक्त दैनिक वेतन कर्मी एवं फायर वाचरों को नियमित वेतन नहीं मिलता है। जिस कारण व्यवस्था भी चरमरा जाती है।

महोदय, वन विभाग में ऊपरी स्तर पर कई बड़े अधिकारी नियुक्त हैं। परन्तु वे अपने कक्षों में बैठ कर ही वन विभाग की सेवा करते है। यह अच्छा होता कि उक्त अग्नि कांड हेतु उच्च स्तर पर अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होती तो अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का बोध होता।

अतः आपसे निवेदन है कि निचले स्तर के कर्मचारियों के निलंबन से पूर्व उनकी परेशानियों को भलीभाँति समझा जाए एवं वनाग्नि हेतु गंभीरता से विचार किया जाए।

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