अर्द्धकुंभ को “कुंभ” बताना परंपराओं से खिलवाड़ -कांग्रेस

वेद–पुराणों में कुंभ और अर्धकुंभ की स्पष्ट परिभाषा दर्ज-कांग्रेस

अविकल उत्तराखंड

देहरादून। उत्तराखंड सरकार द्वारा हरिद्वार में होने वाले आगामी अर्द्धकुंभ को “कुंभ”बनाने की कोशिश पर राजनीतिक घमासान तेज हो गया है। संतों के बीच पहले ही विवाद चल रहा था।
उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने इस कदम को परंपराओं से खिलवाड़ और धार्मिक मान्यताओं के साथ गहरा अनादर बताया है।

दसौनी ने कहा कि वेद–पुराणों में कुंभ और अर्द्धकुंभ की स्पष्ट परिभाषा दर्ज है। शास्त्रों के अनुसार कुंभ पर्व सूर्य, चंद्र और बृहस्पति के विशिष्ट खगोलीय योग के दौरान आयोजित होने वाला महान आयोजन है, जो हर 12 वर्ष में ही संभव होता है।
वहीं,अर्द्धकुंभ वर्षों के अंतराल पर होने वाला विशिष्ट धार्मिक पर्व है, जिसकी अपनी अलग पहचान और मान्यता है। उन्होंने कहा कि भारत की परंपरा में कहीं भी अर्द्धकुंभ को कुंभ घोषित करने का शास्त्रीय प्रमाण नहीं मिलता, इसलिए इसे कुंभ कहना न केवल धार्मिक मर्यादा का उल्लंघन है बल्कि करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था के साथ खिलवाड़ भी है।

कांग्रेस प्रवक्ता गरिमा दसौनी

कांग्रेस प्रवक्ता ने सवाल उठाते हुए कहा कि आखिर सरकार को इतनी जल्दबाजी क्यों है और वह क्या छिपाना चाहती है? उन्होंने आरोप लगाया कि भाजपा शासन में हुए कुंभ घोटाले से पहले ही उत्तराखंड की प्रतिष्ठा को चोट पहुंची है। ऐसे में अर्द्धकुंभ को “कुंभ” घोषित करना परंपराओं की अनदेखी, संत समाज की उपेक्षा और धार्मिक आयोजनों का भ्रामक प्रचार साबित होगा।

दसौनी ने दावा किया कि संत समाज के कई प्रतिनिधि भी इस निर्णय से असंतुष्ट हैं और उनका मानना है कि अर्द्धकुंभ को उसी नाम से जाना जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि धार्मिक आयोजनों को सरकारी प्रचार का माध्यम बनाना स्वीकार्य नहीं है।
धर्म-राजनीति का उपकरण नहीं, बल्कि आस्था और संस्कार का आधार है जिसे राजनीतिक लोभ में तोड़ा-मरोड़ा नहीं जा सकता।

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