भीख मांगते और बाल मजदूरी में लगे बच्चों के पुनर्वास को जुटाएं आंकड़े

बाल तस्करी और शोषण रोकथाम को लेकर समन्वित रणनीति पर जोर

अविकल उत्तराखंड

देहरादून। अंतरराष्ट्रीय मानव दुर्व्यापार विरोधी दिवस पर देहरादून में आयोजित राज्य स्तरीय परामर्श में वक्ताओं ने कहा कि कानून और उसके क्रियान्वयन के बीच की खाई बच्चों के खिलाफ अपराधों से प्रभावी ढंग से निपटने में सबसे बड़ी बाधा है। इसी कारण अनेक बच्चे बाल श्रम, मानव तस्करी, बाल विवाह और यौन शोषण के शिकार हो जाते हैं।

‘भारत में मानव दुर्व्यापार: समन्वय और रोकथाम तंत्र की मजबूती’ विषय पर जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन (JRC) की पहल पर आयोजित इस परामर्श में संबंधित विभागों, संगठनों और अधिकारियों ने भाग लिया। कार्यक्रम का उद्देश्य बच्चों के विरुद्ध अपराधों की रोकथाम के लिए जवाबदेही, समन्वय और प्रभावी रणनीति विकसित करना था।

JRC और उसके सहयोगी संगठनों ने 1 अप्रैल 2024 से 30 अप्रैल 2025 के बीच देशभर में 56,242 बच्चों को तस्करी के चंगुल से छुड़ाया और 38,353 से अधिक मामलों में कानूनी कार्रवाई शुरू करवाई। उत्तराखंड में JRC के चार सहयोगी संगठन तीन जिलों में सक्रिय हैं, जिन्होंने 2023 से अब तक 1,595 बच्चों को बाल श्रम, तस्करी और बाल विवाह से बचाया है।

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की अध्यक्ष डॉ. गीता खन्ना ने कहा, “भीख मांगने वाले और बाल मजदूरी कर रहे बच्चों के आंकड़े जुटाना जरूरी है, ताकि उनके पुनर्वास की दिशा में प्रभावी कदम उठाए जा सकें। JRC को इस दिशा में साक्ष्य और आँकड़े जुटाने में सहयोग करना चाहिए।”

मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एवं जिला विधिक सेवा प्राधिकरण की सचिव सीमा डूंगराकोटी ने कहा कि पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए मुफ्त कानूनी सहायता उपलब्ध कराना जरूरी है, जिसमें विधिक सेवा प्राधिकरण की प्रमुख भूमिका है।

महिला सशक्तीकरण एवं बाल विकास विभाग की मुख्य प्रोबेशन अधिकारी अंजना गुप्ता ने कहा कि “ट्रैफिकर समाज में हमारे आस-पास ही होते हैं, जो गरीब और मजबूर बच्चों को निशाना बनाते हैं। जागरूकता से ही इन पर लगाम संभव है।”

परामर्श के दौरान पुलिस, श्रम, महिला एवं बाल कल्याण विभागों सहित JRC के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। JRC के वरिष्ठ सलाहकार (विधायी मामलों) ओमप्रकाश ने कहा कि “मानव तस्करी एक संगठित और आर्थिक अपराध है। आज साइबर स्पेस इस अपराध का बड़ा माध्यम बन चुका है। अंग व्यापार और भीख मंगवाना भी इसी कड़ी के हिस्से हैं। हमारे पास कड़े कानून हैं, आवश्यकता है तो बस उनके प्रभावी क्रियान्वयन की।”

कार्यक्रम में बच्चों की तस्करी से जुड़े मौजूदा कानूनों और नीतियों की समीक्षा की गई और विभागों के बीच बेहतर समन्वय और समयबद्ध कार्ययोजना बनाने पर बल दिया गया। वक्ताओं ने यह भी बताया कि मानव तस्करी मादक पदार्थों और हथियारों की तस्करी के बाद दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध है, जिसका सबसे आसान शिकार मासूम बच्चे बनते हैं।

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