जनता का ध्यान भटकाने के लिए लिया गया फैसला
प्रदेश में पहले से ही पस्त कार्यसंस्कृति का होगा बंटाधार -धस्माना
अविकल उत्तराखंड
देहरादून। उत्तराखंड राज्य सरकार का पांच सितंबर का कार्मिक विभाग का शासनादेश जिसमें राजकीय कार्मिकों को राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखाओं में जाने की अनुमति प्रदान की है प्रदेश के लिए हानिकारक है और इससे प्रदेश में पहले ही पस्त पड़ी हुई कार्यसंस्कृति का बंटाधार तय है।
यह बात उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष सूर्यकांत धस्माना ने अपने कैंप कार्यालय में आयोजित पत्रकार वार्ता को संबोधित करते हुए कही। धस्माना ने कहा कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ देश के एक राजनैतिक दल का मातृ संघठन है और उसकी एक राजनैतिक विचारधारा व राजनैतिक दल के लिए प्रतिबद्धता है इसलिए प्रदेश के राजकीय कार्मिकों को उस संघठन की शाखाओं में जाने की अनुमति देना निश्चित रूप से राजकीय कार्मिकों के आचरण नियमावली का उलंघन है और उनको बाकायदा एक शश्मादेश द्वारा शाखाओं में जाने की अनुमति देना असंवैधानिक है। धस्माना ने कहा कि उत्तराखंड में पुलिस समेत राज्य के विभिन्न विभागों में कार्यरत कर्मचारी राजकीय कार्मिकों की श्रेणी में आते हैं और अगर इनको एक राजनैतिक दल के मातृ संघठन की गतिविधियों में जाने की अनुमति दी जाती है तो वे अप्रत्यक्ष रूप से उस राजनैतिक दल से संबंधित हो जायेंगे और वे किस प्रकार एक निष्पक्ष कार्मिक की तरह राज्य की सेवाओं में अपना योगदान दे पाएंगे।
धस्माना ने कहा कि जो कार्मिक आर एस एस की शाखाओं जाएगा उसके ऊपर कोई भी अधिकारी कैसे नियंत्रण रख पाएगा जबकि पूरे देश को पता है कि वर्तमान केंद्र व राज्य सरकार में आर एस एस का क्या दखल है। उन्होंने कहा कि जब प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आर एस एस के प्रभाव से मुक्त नहीं हैं तो किसी अधिकारी की क्या हैसियत होगी कि वह अपने किसी ऐसे कर्मचारी जो कि शाखा में जाता हो उससे काम ले ले या उसको नियंत्रण में रख ले। श्री धस्माना ने कहा कि राज्य सरकार का यह निर्णय केवल उत्तराखंड में सरकार व भाजपा में चल रही खींचतान, राज्य में ध्वस्त पड़ी कानून व्यवस्था,बेरोजगारी,महिलाओं के खिलाफ बड़ रहे अपराधों,आपदा से हुए तबाही और ठप्प पड़े विकास से ध्यान हटाने के लिए एक शिगूफा है जो राज्य के लिए खतरनाक है।
प्रकाशनार्थ
आरएसएस संबंधित शासनादेश आत्मघाती -गरिमा मेहरा दसौनी
उत्तराखंड शासन के द्वारा राज्य कर्मचारी और अधिकारियों के राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रमों में और शाखाओं में जाने संबंधित जो छूट दी गई है उसको उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने धामी सरकार का आत्मघाती कदम बताया है ।
दसौनी ने कहा की धामी सरकार के इस कदम से एक बार पुनः इस बात की पुष्टि होती है कि भाजपा का संविधान में कोई विश्वास नहीं है ।संविधान में कार्यपालिका विधायिका और न्यायपालिका तीनों की ही अलग-अलग भूमिका और अधिकार क्षेत्र विस्तार से बताए गए हैं। ऐसे में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ कितना सामाजिक संगठन है और कितना राजनीतिक यह तो एक अलग बहस है ,परंतु कर्मचारी और अधिकारियों की सेवा नियमावली के तहत वह सरकारी नौकरी के दौरान किसी भी राजनीतिक दल में या उसकी गतिविधियों में शामिल नहीं पाए जा सकते।
गरिमा ने कहा की सरकारी कर्मचारियों को सेवा नियमावली के बंधन से धामी सरकार ने आजाद तो कर दिया परंतु अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है अब कोई भी कर्मचारी अधिकारी यदि अपने कार्य स्थल से अनुपस्थित पाया जाएगा तो उसके पास अच्छा बहाना होगा कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यक्रम या शाखा में प्रतिभाग करने गया था ,ऐसे में पहले ही उत्तराखंड के तमाम जनप्रतिनिधि कार्यपालिका की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह लगा चुके हैं, कर्मचारी और अधिकारियों के बेलगाम होने की शिकायतें आए दिन सरकार और विपक्ष के जनप्रतिनिधियों के द्वारा की जाती रही हैं और धामी सरकार के शासनादेश के बाद तो सरकारी अधिकारी और कर्मचारी पूरी तरह से निरंकुश हो जाएंगे? दसौनी ने कहा कि आज उत्तराखंड समेत समूचे देश में जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी और उसके नेताओं की लोकप्रियता के ग्राफ में कमी आई है और जनता का भारतीय जनता पार्टी से मोहभंग होता दिखाई दे रहा है उसके मध्य नजर अब सरकारी कर्मचारी और अधिकारियों में भाजपा अपना वोट बैंक तलाश रही है। दसौनी ने कहा कि इस तरह के अटपटे शासनादेश का एक कारण यह भी हो सकता है कि मुख्यमंत्री को अपना सिंहासन बत्तीसी डोलता हुआ दिखाई दे रहा है ,इसलिए भी अपने दिल्ली वाले आकाओं को खुश करने के लिए यह कदम उठाया गया हो सकता है।
गरिमा ने कहा की यह शासनादेश ऐसे समय पर आया है जब उत्तराखंड राज्य आज बहुत चुनौती पूर्ण समय से गुजर रहा है ।एक तरफ प्राकृतिक आपदा का कहर है दूसरी तरफ अपराधों की बाढ़ आई हुई हैं ,कानून व्यवस्था पूरी तरह से वेंटिलेटर पर पहुंच चुकी है ,ऐसे में प्रदेश की जवलंत समस्याओं का निस्तारण करने की बजाय इस तरह का शासनादेश यही बताता है की प्रदेश की भाजपा सरकार की प्राथमिकताएं आखिर क्या है? गरिमा ने यह भी कहा की धामी सरकार का यह कदम नहीं जनहित में है और ना ही प्रदेश हित में है यह आदेश अराजकता को ही जन्म देगा और कार्यपालिका को कंट्रोल करना किसी के भी बूते से बाहर हो जायेगा।
दसौनी ने यह भी आरोप लगाया कि पहले भाजपा ने धर्म की राजनीति की, फिर सेना की आड़ लेकर राजनीति करी और अब वह सरकारी कर्मचारियों को भी अपनी तुच्छ मानसिकता का शिकार बनाना चाहती है,जिसके भविष्य में बहुत ही प्रतिगामी परिणाम होंगे।
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