श्रद्धांजलि- आईएएस व लेखक ललित मोहन रयाल की कलम से
धर्मेंद्र हिन्दी सिनेमा के उन सितारों में से हैं, जिनका करियर पाँच दशकों से अधिक अवधि तक चला, और जिनकी लोकप्रियता पीढ़ियों तक बनी रही। उन्हें “ही-मैन”, “ग्राम्य रोमांस का बादशाह”, “एक्शन स्टार”, “कॉमिक टाइमिंग के उस्ताद”—हर रूप में स्वीकार किया गया।
धर्मेंद्र का फिल्मी करियर: एक संक्षिप्त अवलोकन
- प्रारंभिक दौर (1960–1965): रोमानी नायक की छवि
दिल भी तेरा हम भी तेरे (1960), अनपढ़ (1962), बंधन और पूजा के फूल जैसी फिल्मों में वे एक सभ्य, सरल, रोमांटिक और भावुक नायक के रूप में दिखाई दिए।
इस दौर में धर्मेंद्र की छवि एक ‘गंभीर, कोमल-मन, संवेदनशील प्रेमी’ की थी—जिसमें उनकी गहरी आँखों और स्थिर संवाद बोलने की शैली ने अलग असर पैदा किया।

- स्वर्णिम दशक (1966–1975): एक्शन व रोमानियत का अनोखा मिश्रण
यह धर्मेंद्र का उल्लेखनीय उपलब्धियां वाला दौर माना जाता है। फूल और पत्थर (1966) की सफलता ने उन्हें “एक्शन हीरो” के रूप में स्थापित कर दिया।
शोले, सत्यकाम, चुपके चुपके, अनुपमा, कहानी किस्मत की, शिकार, कत्ल जैसी विविध फिल्मों ने उन्हें सर्वगुण संपन्न अभिनेता साबित किया।
इस समय धर्मेंद्र वह स्टार बने जिन्होंने एक साथ गंभीरता (सत्यकाम), कॉमेडी ( चुपके चुपके ) रोमानियत( अनुपमा, मेरे हमदम मेरे दोस्त) एक्शन ( फूल और पत्थर, जुगनू, सीता और गीता)
में श्रेष्ठ प्रदर्शन दिया।
कॅरियर का विस्तार (1976–1990): मसाला और मल्टीस्टारर युग
70s-80s में धर्मेंद्र की अपार लोकप्रियता रही।
शोले के वीरू ने उन्हें एक सांस्कृतिक प्रतीक बना दिया—उनकी कॉमिक-रोमांटिक ऊर्जा और देसी बेबाक अंदाज़ को दर्शकों ने बेहद पसंद किया। इस दौर में धर्म-वीर, चरस, राजपूत, लोहा, गुलामी जैसी अनेक सफल फिल्में आईं।
मल्टीस्टारर युग में भी उनकी मौजूदगी मजबूत बनी रही। वे स्वयं ‘भीड़ में भी चमकने’ वाले स्टार थे।
चरित्र भूमिकाओं की ओर (1990–2005)
इस दौर की फिल्मों में धर्मेंद्र ने उम्र के अनुरूप गंभीर और परिपक्व भूमिकाएँ कीं।
इन फिल्मों में उनके अभिनय में गहराई, सादगी और अनुभव की गरिमा दिखती है।
वरिष्ठ अभिनेता और पुनरागमन (2005 से आखिर तक)
अपने, यमला पगला दीवाना श्रृंखला में पारिवारिक और हल्के-फुल्के अंदाज़ में वापसी। इन फिल्मों में विशेष उपस्थिति और समीक्षकों द्वारा सराहना।
वे आखिर तक एक वेटरन लीजेंड की तरह सम्मानित रहे।
धर्मेंद्र के अभिनय की विशेषताएँ
- संवाद कम, भाव अधिक—“बोलती आँखें” शैली
धर्मेंद्र की आँखें हमेशा उनकी सबसे बड़ी ताकत रहीं।
दिल भी तेरा हम भी तेरे, अनपढ़ अनुपमा, सत्यकाम, दोस्त जैसी फिल्मों में उनके चेहरे के सूक्ष्म भाव संवादों से अधिक प्रभावशाली रहे।
वे उन कलाकारों में थे जो “अंडर-एक्टिंग” का सौंदर्य जानते थे।
देसी-ग्रामीण मर्दानगी का स्वाभाविक प्रस्तुतीकरण
धर्मेंद्र की बॉडी लैंग्वेज में देहाती सादगी और सहज शक्ति दोनों शामिल थीं।
शोले का वीरू, धर्म-वीर, मेरा गाँव मेरा देश जैसे किरदारों में यह खूब दिखाई देता है।
वे भारतीय ग्रामीण पुरुष की छवि को रोमांटिक और आकर्षक रूप में प्रस्तुत करने वाले पहले सुपरस्टार माने जाते हैं।
बेहतरीन कॉमिक टाइमिंग
“चुपके चुपके” में उनकी कॉमेडी आज भी अद्वितीय मानी जाती है—शांत चेहरे पर मासूमियत भरी हास्य अभिव्यक्ति उनकी खासियत थी। वे ‘ओवरऐक्टिंग’ से दूर रहते हुए भी हास्य को जीवंत बना देते थे।
रोमांटिक हीरो के रूप में प्राकृतिक आकर्षण
धर्मेंद्र की स्क्रीन-प्रेज़ेंस ऐसी थी कि बिना किसी जोर-जबरदस्ती के रोमांटिक दृश्य प्रभाव छोड़ते थे।
काजल, अनुपमा, चुपके चुपके जैसी फिल्मों में उनकी नरम, शिष्ट और भावुक प्रेमी की छवि बहुत लोकप्रिय हुई।
एक्शन में सहजता और विश्वसनीयता
वे पहले “एक्शन स्टार” थे जिन्होंने अपनी शारीरिक बनावट और फुर्ती के कारण स्टंट्स बेहद स्वाभाविक बनाए। उस दौर में फूल और पत्थर और जुगनू ने इंडस्ट्री में एक्शन का नया पैमाना बनाया।
बहुआयामी अभिनेता
धर्मेंद्र उन चंद सितारों में से हैं जो रोमांस, एक्शन, कॉमेडी,ट्रेजेडी, गंभीर/क्लासिकल अभिनय सबमें एक ही स्तर पर मजबूत रहे।
प्राकृतिक अभिनय
उनका अभिनय स्वाभाविक अभिनय की श्रेणी में आता है—जहाँ व्यक्ति अपनी सभ्यता, आचरण और वास्तविक भावों को कैमरे पर सतही न बनाकर सजीव रूप में रखते हैं।
धर्मेंद्र का फिल्मी करियर भारतीय सिनेमा का एक स्वर्ण अध्याय है। वे न केवल एक अत्यंत सफल और लोकप्रिय स्टार रहे, बल्कि अपने अभिनय की सहजता, मर्दानगी, रूमानी आकर्षण और विविधता के कारण उन्होंने “स्टार” से अधिक “कलाकार” होने का दर्जा पाया।
उनके अभिनय की खासियत यह है कि वे जिस भी किरदार में उतरते थे, उसमें कृत्रिमता नहीं होती थी—बस सादगी, शालीनता, और दिल से भरा एक जीवन्त पुरुष दिखता था।

