हिन्दी पत्रकारिता दिवस पर पत्रकारिता की मौजूदा चुनौतियों पर मंथन

पत्रकारिता के बदलते प्रतिमान, चुनौतियां और सुझाव पर विचार गोष्ठी का आयोजन

अविकल उत्तराखंड

देहरादून। हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र की ओर से आज सांय ‘आज की पत्रकारिता में पत्रकारिता कहां है,चुनौतियां और सुझाव‘ विषय पर एक विचार गोष्ठी आयोजित की गई। यह कार्यक्रम दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के पुस्तक वाचन और चर्चा, संगीत, वृत्तचित्र फिल्म, लोक परंपराओं और लोक कलाओं, इतिहास, पत्रकारिता व मीडिया, सामाजिक विज्ञान और प्रौद्योगिकी पर केन्द्रित कार्यक्रमों की श्रंृखला के तहत आयोजित किया गया। प्रारम्भ में हिन्दी पत्रकारिता दिवस के अवसर पर लेखक व साहित्यकार डाॅ. मुनिराम सकलानी की पत्रकारिता पर आधारित पुस्तक ‘उत्तराखंड की पत्रकारिता : स्वतंत्रता आन्दोलन से लेकर वर्तमान तक” का लोकार्पण उपस्थित अतिथि वक्ताओं के सानिध्य में किया गया।इस पुस्तक में पत्रकारिता व उसका महत्व व भारत में पत्रकारिता का इतिहास, स्वतंत्रता आन्दोलन व उसके बाद उत्तराखंड की पत्रकारिता, प्रमुख पत्र व पत्रकारों का परिचय व उत्तराखंड से प्रकाशित होने वाले प्रमुख पत्र आदि की जानकारी दी गयी है।

लोकार्पण के बाद आज की पत्रकारिता में पत्रकारिता को खोजने के प्रयास और चुनौतियाँ तथा उसके प्रशस्त मार्ग के सन्दर्भ में आठ अतिथि वक्ताओं ने अपने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किये। प्रमुख रुप से यह विचार गोष्ठी हिन्दी पत्रकारिता व क्षेत्रीय पत्रकारिता के इतिहास, मीडिया स्वामित्व, पत्रकारिता द्वारा अक्सर जमीनी स्थितियों, पत्रकारिता की सच्चाइयों, सोशल मीडिया की आवश्यकता और अन्य कम चर्चा वाले विषयों के दृष्टिकोणों पर केन्द्रित रही।

विचार गोष्ठी में पत्रकार, फिल्म निर्माता, कार्यकर्ता, डिजिटल मीडिया क्षेत्रों से आए कुछ अतिथि वक्ताओं ने जहां देश व विश्व स्तर पर हिंदी पत्रकारिता व उत्तराखंड में पत्रकारिता के ऐतिहासिक संदर्भ और राष्ट्रमंडल की खोज को रेखांकित किया जबकि अन्य वक्ताओं ने सेंसरशिप और उसके इतिहास, उपनिवेशवादियों की स्व-सेंसरशिप और चुप्पी के दंश के साथ ही साथ उत्तराखंड में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की स्थिति के बारे में बात की।

अल्पसंख्यक, वंचित, दलित व पत्रकारीय चुप्पी, खेमेबाजी पर भी इन विशिष्ट अनुभवजन्य वक्ताओं ने इस बारे में अपने दृष्टिकोण व्यक्त किये। वक्ताओं का दृष्टिकोण था जब मीडिया जनता की आवाज के रूप में साथ खड़ा नहीं रह पाता है, तो समाज को स्वयं भी देखने, सुनने, सामूहिक आवाज उठाने व कार्य करने की जरुरत होनी चाहिए। वक्तागणों के नजरिये में स्वतंत्र डिजिटल मीडिया प्लेटफार्मों और स्वतंत्र पत्रकारों की अहम भूमिका की भी बात सामने आयी। विचार गोष्ठी में मुख्यधारा की मीडिया की अपनी खोती विश्वसनीयता के साथ ही वैश्विक स्तर पर, ऐतिहासिक रूप से मीडिया घरानों के वित्तीय मॉडल के बदलते प्रतिमान और पत्रकारिता पर इसके परिणामी प्रभाव पर बात की गयी। इस गोष्ठी में वर्तमान पत्रकारों की पर्यावरणीय व अन्य खोजी रिपोर्टिंग से जुड़े विविध पक्षों पर भी वक्ताओं की ओर से महत्वपूर्ण विचार सामने आये।

इस विचार गोष्ठी में अतिथि वक्ता के रुप में स्तम्भकार व वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत, लेखक व पत्रकार एस.एम.ए.काजमी, स्वतंत्र खोजी पत्रकार त्रिलोचन भट्ट, पत्रकार रश्मि सहगल, युवा पत्रकार राहुल कोटियाल,पर्यावरण के मुद्दों पर कार्यरत पत्रकार वर्षा सिंह, सामाजिक कार्यकर्ता विनीत पंछी और फिल्म निर्माता शाश्वती तालुकदार उपस्थित थे। इस कार्यक्रम का संचालन सामाजिक इतिहासकार व स्वतंत्र पत्रकार डाॅ. योगेश धस्माना ने किया। इस अवसर पर सभागार में निकोलस हाॅफलैण्ड, चन्द्रशेखर तिवारी, हिमांशु आहूजा, डाॅ. विशाल सिंह,विजय भट्ट, सुजाता राव,कर्नल वी के दुग्गल,विभापुरी दास,प्रियंका जैना, सुंदर सिंह बिष्ट, सहित, लेखक, पत्रकार, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी और पुस्तकालय के सदस्य व युवा पाठक उपस्थित रहे।

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