हिन्दी की सुदीर्घ यात्रा और उसके विकास के विभिन्न आयामों पर चर्चा

राजभाषा हिन्दी दिवस पर कार्यक्रम का आयोजन

अविकल उत्तराखंड 

देहरादून। राजभाषा हिन्दी दिवस की पूर्व संध्या पर दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र में एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। सरस्वती वन्दना तथा हिन्दी के महत्व पर आधारित विभिन्न कवियित्रियों ने सस्वर कविताओं का वाचन से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ।

इस अवसर पर कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार व दून स्कूल के प्राचार्य सुदेश ब्याला ने की। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ. सुधा रानी पाण्डेय थीं। मुख्य वक्ता के तौर पर श्रीमती कमला पंत व वरिष्ठ साहित्यकार व राजभाषा विशेषज्ञ डॉ. मुनिराम सकलानी की पुस्तक आजादी का अमृत महोत्सव और राजभाषा हिन्दी की प्रगति यात्रा का लोकार्पण किया।

अपने उद्बोधन में डॉ. सुधा रानी पाण्डेय ने कहा कि इस पुस्तक में डॉ.सकलानी ने हिन्दी के उद्भव व विकास से लेकर भारत की राजभाषा तक हिन्दी की सुदीर्घ यात्रा और उसके विकास के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला है। उन्होंने राजभाषा हिंदी के सम्मान में आयोजित इस कार्यक्रम में डॉ मुनिराम सकलानी की पुस्तक को राजभाषा हिंदी की प्रगति यात्रा के सन्दर्भ में बड़ी उपलब्धि बताया। डॉ. सुधा रानी पाण्डेय ने यह भी कहा कि धारा 343 में ही स्पष्ट किया गया है कि संघ की उदात्त स्तर पर अपनी भावाभिव्यक्ति साहित्य और दैनंदिन के कार्यों में करना राजभाषा का सम्मान ही नहीं, आजाद भारत की भाषाओं का अभिनंदन भी है। आज भी हिंदी राजभाषा के रूप में अपने अस्तित्व के साथ प्रगति पथ पर गतिमान है। राजभाषा हिंदी सहित अन्य प्रांतीय भाषाओं और बोलियों का विकास भी सहज रुप से हुआ है। हिंदी के वैश्विक प्रसार के कारण हिन्दी सांस्कृतिक एकता की श्रंखला भी बन चुकी है । निज भाषा की उन्नति के लिए उसका अधिकाधिक प्रयोग करना हम सभी के लिए गौरव का विषय होना चाहिए।

मुख्य वक्ता के रुप में डॉ. सकलानी ने अपनी पुस्तक की चर्चा करते हुए कहा कि 14 सितम्बर को सर्व सम्मति से हिन्दी को भारत की राजभाषा का गौरवशाली स्थान मिला, इससे हमें भावनात्मक रुप से जुडना चाहिए। क्योंकि स्वभाषा के विकास से ही स्वदेश की प्रतिभा प्रतिपादित होती है। यह राष्ट्रीय एकता की कड़ी है और वैश्विक स्तर पर आगे बढ़ रही है।

श्रीमती कमला पंत ने कहा कि हमें अंग्रेजी की मानसिकता त्याग कर हिन्दी को अपने व्यक्तिगत व सरकारी कार्यों में आधिकाधिक प्रयोग में लाना चाहिए। भाषा संस्कृति की वाहक होती है और संस्कृति के मूल्यों को आधार प्रदान करती है।

कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुये डॉ. रामविनय सिंह ने कहा कि आज आवश्यकता है कि हम सभी जन हिन्दी का स्वाभिमान जागृत करें और इसे अपने व्यवहार में व्यापक तौर प्रयोग करने का कार्य करें।

कार्यक्रम के प्रारम्भ में दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र के प्रोगाम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने मंचासीन अतिथियों और सभागार में उपस्थित लोगों का स्वागगत किया और संस्थान के उपलब्धियों के साथ यहां आयोजित होने वाले कार्यक्रमों तथा प्रकाशित होने पुस्तकों के सन्दर्भ में राजभाषा हिन्दी के प्रयोग की संक्षिप्त जानकारी प्रदान की। कार्यक्रम में उत्तराखंड भाषा संस्थान की निदेशक डॉ.सविता मोहन ने भी अपने विचार रखे।

कार्यक्रम में श्रीमती ज्योति झा ने सरस्वती वंदना, श्रीमती कुलवीर कौर ने डॉ0 त्रिवेदी की हिन्दी कविता तथा श्रीमती शोभा पाण्डेय ने अपनी स्वरचित कविता ‘मैं हिन्दी हूुं‘, का वाचन किया । इसके अलावा श्रीमती ज्योति नैनवाल की ओर से ‘जिसको नही निज देश का अभिमान है‘ तथा श्रीमती पूनम नैथानी द्वारा गाया गीत ‘जन गण मन की अभिलाषा, राष्ट्रभाषा यह हिन्दी‘ का गायन भी किया गया।

इस अवसर पर राकेश बलूनी,सतीश धौलाखण्डी, ब्रिगेडियर के जी बहल, कल्पना बहुगुणा, मंजू काल,अमर खरबंदा, रजनीश त्रिवेदी, आर पी भारद्वाज,भारती पांडे,अभि नंदा, सुंदर सिंह बिष्ट, राकेश जुगरान,देवेंद्र कांडपाल, हर्षमणि भट्ट ‘कमल’, मीरा नन्दा, कई लेखक, साहित्यकार, हिन्दी व साहित्य प्रेमी सहित अनेक पाठकगण व अन्य प्रबुद्ध लोग उपस्थित रहे।

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