हल्द्वानी हिंसा- कौमी एकता मंच” ने फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की

बनभूलपुरा हिंसा की न्यायिक जांच उच्चतम न्यायालय की निगरानी में हो

घायलों को 5 लाख व मृतकों के परिजनों को 25 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए

अविकल उत्तराखण्ड

हल्द्वानी/देहरादून। “कौमी एकता मंच” ने ‘बनभूलपुरा हिंसा : असली गुनाहगार कौन?’ शीर्षक से अपनी फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट जारी की। इस दौरान पत्रकार वार्ता भी आयोजित की गई।

मंच की संयोजिका रजनी जोशो ने रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु गिनाए-

  1. बनभूलपुरा हिंसा पर सरकार-प्रशासन के बहुप्रचारित पक्ष के समानांतर पीड़ित जनता के पक्ष को सामने रखना।
  2. मस्जिद-मदरसा के विध्वंस के मामले में प्रशासन द्वारा उचित कानूनी प्रक्रिया (प्रोटोकॉल) का पालन हुआ अथवा नहीं।
  3. हिंसा की घटना के दौरान लोग किन परिस्थितियों में मारे गए? इसमें पुलिस ने गोली चलाने के प्रोटोकॉल को लागू किया अथवा नहीं।
  4. हिंसा की घटना के बाद नागरिकों की जान-माल के नुकसान के मुआवजे व नागरिकों का शासन-प्रशासन पर पुनः भरोसा बनाने के लिए कुछ प्रयास हुए अथवा नहीं, को रिपोर्ट में जांचने के प्रयास किया।

प्रेस वार्ता में बताया गया कि 8 फरवरी को हल्द्वानी शहर के बनभूलपुरा क्षेत्र में हुई हिंसा की अप्रिय घटना के बाद विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक संगठनों ने 25 फरवरी 2024 को मंच का गठन किया। हिंसा के कारणों को जानने के लिए फैक्ट फाइंडिंग, मेहनतकश पीड़ितों को राशन-मेडिकल सहायता, सम्भव कानूनी सहायता करने का लक्ष्य रखा।

फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट में मंच के सदस्यों ने कहा कि 28 फरवरी से 5 मार्च के बीच बनभूलपुरा हिंसा पर क्षेत्र का सघन दौरा और विभिन्न अखबारों की रिपोर्टों के हवाले से अपनी रिपोर्ट तैयार कि। फैक्ट फाइंडिंग में पाया गया कि प्रशासनिक स्तर पर गंभीर लापरवाही और राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित मुस्लिम अल्पसंख्यक विरोधी माहौल के चलते हो रही घटनाओं की कड़ी में बनभूलपुरा हिंसा की घटना हुई।

यहां सरकार की दुर्भावना और प्रशासन की लापरवाही को ठीकरा बनभूलपुरा की जनता पर फोड़ने का काम किया जा रहा है। इस घटना को पूर्व के अदालती आदेशों को नजरअंदाज करने, कानूनों की अवमानना, खुफिया विभाग की सलाहों को नजरअंदाज करने, आदि-आदि प्रशासनिक गलतियों या उकसाने की कार्यवाही के तौर पर ही परिभाषित किया जाना चाहिए।

प्रेस वार्ता में मंच के सदस्यों ने इस तथ्य पर जोर दिया कि पुलिस के सिपाहियों, महिला पुलिसकर्मियों को चोटें आदि के बारे में बातें की गई। लेकिन बनभूलपुरा के 7 आम मजदूर मेहनतकश मारे गए, इसको भुला दिया जाता है। इससे भी बुरा यह हुआ कि कर्फ्यू के दौरान बनभूलपुरा के इलाके में पुलिस की बर्बरता की कई दर्दनाक घटनाएं हुई।

काफी जद्दोजहद के बाद आखिर फईम के भाई के प्रयासों से न्यायालय के कहने पर फईम की हत्या के लिए अज्ञात लोगों पर एफआईआर और जांच की कार्यवाही हो रही है, जबकि परिवार की तरफ से दोषियों के नाम स्पष्ट किये गए हैं।

यह प्रशासन की कार्यवाही के दोहरेपन को जाहिर कर देता है। घटना के बाद राज्य के मुख्यमंत्री, क्षेत्र के सांसद आते हैं घायल पुलिसकर्मियों-मीडियाकर्मियों-निगमकर्मियों से मिलते हैं संवेदना-मुआवजे की घोषणा करते हैं लेकिन बनभूलपुरा हिंसा के मृतकों-पीड़ित आमजनों के लिए कोई संवेदना तक जताना जरूरी नहीं समझते यह व्यवहार न्याय और सत्य का नहीं बल्कि पक्षपात और द्वेष का है।

रिपार्ट में मांग की गई है कि

  1. हिंसा की घटना की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में न्यायिक जांच की जाए।
  2. पुलिस गोलीबारी में घायलों को 5 लाख व मृतकों के परिजनों को 25 लाख रुपये मुआवजा दिया जाए।
  3. कर्फ्यू के दौरान घरों में की गयी तोड़-फोड़ के नुकसान की भरपाई की जाए

पत्रकार वार्ता को कौमी एकता मंच की संयोजिका रजनी जोशी (प्रगतिशील महिला एकता केंद्र), उत्तराखंड महिला मंच की बसन्ती पाठक , क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन के अध्यक्ष पीपी आर्या, भाकपा-माले से के.के.बोरा, इंक़लाबी मजदूर केंद्र से रोहित, परिवर्तनकामी छात्र संगठन के महासचिव महेश, मजदूर सहयोग केन्द्र धीरज जोशी ने सम्बोधित किया।
इसके अलावा मनोज, चंदन, उमेश विश्वास, प्रदीप पांडे, मुकेश भंडारी, मंजू ने भी पत्रकार वार्ता में भागीदारी की।

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