ढोल-दमाऊ और पारंपरिक वेशभूषा में किया हरेला मार्च

वीरान होते गाँव और कटते पेड़ों पर धाद के सवाल

हरेला मार्च के साथ 5500 पौधे लगाने का संकल्प

अविकल उत्तराखंड

देहरादून। “जब गाँव हो रहे हों वीरान, तब वहाँ हरेला कैसे? साजिश से जब पेड़ कटें, तब वहाँ हरेला कैसे?” — इन सवालों के साथ धाद संस्था ने मंगलवार को हरेला पर्व का आगाज देहरादून में रैली निकालकर किया। ढोल-दमाऊ और पारंपरिक वेशभूषा में लोक कलाकारों के साथ यह रैली परेड ग्राउंड से लैंसडौन चौक, दर्शनलाल चौक, घंटाघर होते हुए गांधी पार्क और वापस परेड ग्राउंड तक निकाली गई।

रैली में कलाकारों ने गीत-नृत्य और तख्तियों के जरिए पेड़ बचाने और अधिकाधिक पौधे लगाने का संदेश दिया। वक्ताओं ने कहा कि तेजी से पेड़ कटने और गाँव खाली होने से पहाड़ की आर्थिकी और पर्यावरण पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है। जलवायु परिवर्तन, गर्मी, अनियमित बारिश और भूस्खलन जैसी आपदाओं का सामना करने के लिए सरकार और आमजन दोनों को मिलकर काम करना होगा।

धाद संस्था के सचिव तन्मय ममगाईं ने बताया कि इस बार हरेला अभियान के तहत 5500 पौधे लगाए जाएंगे। इनमें देहरादून में 500 छायादार और पहाड़ों में 5000 फलदार पौधे रोपे जाएंगे। इस अभियान में स्कूलों के छात्र-छात्राओं को भी जोड़ा जाएगा और पर्यावरण संरक्षण का संकल्प दिलाया जाएगा।

उन्होंने बताया कि धाद 2010 से हरेला को सामाजिक उत्सव के रूप में मना रही है। 2020 से मालदेवता में स्मृतिवन, पुष्पवन, बालवन और जीववन के रूप में सघन वन बनाने का काम जारी है। संस्था हर वर्ष सीमित पौधे लगाकर उनकी देखभाल और संरक्षण सुनिश्चित करती है। वर्तमान में संस्था द्वारा लगाए गए 922 पेड़ों की नियमित देखभाल की जा रही है।

इस मौके पर मनोज ध्यानी, ओमवीर सिंह, शिवदयाल शैलज, तोताराम ढौंडियाल, रणजीत सिंह कैन्तुरा, डॉ. जयंत नवानी, हर्षमणि व्यास, डीसी नौटियाल, हिमांशु आहूजा, नरेंद्र रावत, गणेश उनियाल, ममता रावत, आशा डोभाल, और अन्य लोग मौजूद रहे।

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