यूसीसी के खिलाफ एक और जनहित याचिका
अविकल उत्तराखंड
नैनीताल। उत्तराखंड महिला मंच की उमा भट्ट, कमला पंत और समाजवादी लोक मंच के मुनीष कुमार द्वारा समान नागरिक संहिता (यूसीसी) कानून के खिलाफ हाइकोर्ट में जनहित याचिका दाखिल की गई। साथ ही लिव-इन जोड़ों को सुरक्षा और उनकी निजता की कानूनी सुरक्षा की भी मांग की गई। याचिका पर न्यायमूर्ति मनोज तिवारी और आशीष नैथानी की पीठ ने सुनवाई की।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से सुप्रीम कोर्ट की प्रख्यात अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर ने कहा कि यूसीसी कानून संवैधानिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। उन्होंने इसे सरकार द्वारा जनता की निजी जिंदगी पर निगरानी रखने का प्रयास बताया और कहा कि यह कानून महिलाओं के अधिकारों में कोई वृद्धि नहीं करता। उन्होंने यह भी कहा कि यह कानून पंजीयक और पुलिस को लोगों की निजता में दखल देने का अधिकार देता है। न्यायमूर्ति तिवारी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि लिव-इन संबंध बढ़ रहे हैं, हालांकि समाज द्वारा इन्हें पूरी तरह से स्वीकृति नहीं मिली है।
यह कानून समय के साथ हो रहे बदलावों के अनुरूप महिलाओं और लिव-इन संबंधों में जन्मे बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रयास कर रहा है। वृंदा ग्रोवर ने जवाब में कहा कि यह कानून महिलाओं और लिव-इन संबंधों के खिलाफ उत्पीडऩ को बढ़ावा देगा और सामाजिक नैतिकता को संवैधानिक नैतिकता पर हावी नहीं होने देना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि कानून माता-पिता और अन्य असामाजिक तत्वों को पंजीकृत व्यक्तियों की निजी जानकारी तक पहुंचाने का अधिकार देता है, जो निजता में दखलअंदाजी कर सकता है।
राज्य की ओर से महान्यायवादी (स्त्र) ने न्यायालय को आश्वासन दिया कि किसी के साथ कोई जबरदस्ती या कानूनी कार्रवाई नहीं की जाएगी। न्यायालय ने इस मामले में सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा कि यदि किसी व्यक्ति के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाती है, तो वह पीठ के समक्ष आवेदन कर सकते हैं। याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता वृंदा ग्रोवर, देविका तुलसियानी और हाइकोर्ट के अधिवक्ता नवनीश नेगी का न्यायालय में मजबूती के साथ पैरवी करने के लिए आभार व्यक्त किया।
राज्य सरकार के महाधिवक्ता ने मामले पर जवाब देने के लिए समय मांगा और यह आश्वासन दिया कि वह कुछ ऐसा प्रस्तुत करेंगे जो अदालत और याचिकाकर्ता को संतुष्ट कर सके।
अदालत ने मामले को 1 अप्रैल को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया और कहा कि अगर किसी व्यक्ति के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई की जाती है, तो वे इस पीठ के समक्ष आवेदन कर सकते हैं।

