जेनरेकि दवाईयों के इस्तेमाल से ‘स्टेंट’ का किया अविष्कार, भविष्य में लोगों के मिलेंगे तीन बड़े फायदे
स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) जौलीग्रांट के हिमालयन स्कूल ऑफ बायो साइंसेस कॉलेज में सहायक प्रोफेसर है डॉ.पुरांधी रुपमणि
एंजियोप्लास्टी के बाद उपचार में दवाईयों का सेवन (मेडिसिन लोड) लगभग होगा खत्म
‘मेक इन इंडिया’ की अवधारणा को बनाया मूलमंत्र- डॉ.पुरांधी
कुलाधिपति डॉ.विजय धस्माना ने डॉ.पुरांधी रुपमणि को किया सम्मानित, बताया मानवजाति और स्वास्थ्य सेवा के लिए वरदान
अविकल उत्तराखंड
डोईवाला। भविष्य में दिल का इलाज सस्ता हो सकता है। जी हां, आपने सही पढ़ा। दरअसल, स्वामी राम हिमालयन विश्ववविद्यालय (एसआरएचयू) जौलीग्रांट में बायो साइंसेस की सहायक प्रोफेसर डॉ.पुरांधी रुपमणि ने नई तकनीकों के साथ एक ऐसे “स्टेंट” का अविष्कार किया है, जो पहले से सस्ता होगा। इसकी वजह है स्टेंट में ‘जेनेरिक दवाईयों’ का इस्तेमाल। डॉ.पुरांधी के इस अविष्कार को भारत सरकार से पेटेंट मिल गया है।
डॉ. पुरांधी के ‘डेवलेपमेंट ऑफ ड्यूल ड्रग इल्युटिंग स्टेंट ऑफ द ट्रीटमेंट ऑफ कोरोनरी आर्टरी डिजीज’ नामक आविष्कार के लिए पेटेंट किया गया। इसके तहत हृदय रोगियों के उपचार में एंजियोप्लास्टी के दौरान होने वाले स्टेंट का अविष्कार किया गया है। एसआरएचयू के कुलाधिपति डॉ.विजय धस्माना ने कहा कि विश्वविद्यालय का शोध व अविष्कार के क्षेत्र में गौरवमयी रिकॉर्ड है। डॉ.धस्माना ने इस अविष्कार के लिए डॉ.पुरांधी को बधाई व शुभकामनाएं दी। साथ ही उन्होंने कहा कि डॉ.पुरांधी का यह अविष्कार जनस्वाथ्य के लिए बेहद कल्याणकारी साबित हो सकता है।
कुलाधिपति डॉ. विजय धस्माना ने कहा कि स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय का फोकस शोध कार्यों पर है। विश्वविद्यालय की अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं में कई नए आविष्कारों पर बहुत महत्वपूर्ण कार्य चल रहे हैं। जल्द ही कुछ और खोजों में कामयाबी मिलने की उम्मीद है।
एक पेटेंट, तीन फायदे- डॉ.पुरांधी ने बताया कि उनके इस एक पटेंट से हृदय के रोगियों को भविष्य में चार बड़े फायदे भी मिलने की संभावना है।
पहला फायदा : स्टेंट की कीमत में कमी- डॉ.पुरांधी ने बताया कि विदेशी कंपनियां ड्रग इल्यूटिंग स्टेंट बना रही हैं। जिनकी कीमत करीब एक से दो लाख रुपए के बीच होती है। उन्होंने जो स्टेंट बनाया है उसमें जेनेरिक दवाईयों का इस्तेमाल किया है। इससे उनके द्वारा निर्मित स्टेंट की कीमत बाजार में मौजूद दूसरे स्टेंट की कीमत से आधी हो जाएगी।
दूसरा फायदा : उपचार के बाद दवाईयों के सेवन में कमी- डॉ.पुरांधी ने बताया कि एंजियोप्लास्टी के बाद भी आमतौर पर रोगियों को एटरवास्टैटिन और फेनोफाइब्रेट दवाईयां जीवनपर्यंत सेवन करनी पड़ती है। उन्होंने जिस स्टेंट का अविष्कार किया उसमें स्टेंट की परत के निर्माण में इन्हीं दवाईयों का इस्तेमाल किया है। इससे एंजियोप्लास्टी के बाद रोगियों दवाईयों का सेवन लगभग न के बराबर हो जाएगा।
तीसरा फायदा : स्टेंट की मोटाई में कमी- डॉ.पुरांधी ने बताया कि अभी तक जो स्टेंट उपलब्ध हैं उनकी मोटाई चार माइक्रोन है, जबकि उन्होंने जो स्टेंट बनाया गया है उसका साइज एक माइक्रोन है।
90% सक्सेस रेट- डॉ.पुरांधी ने बताया कि जिस स्टेंट का अविष्कार किया है उसका अभी ह्यूमन ट्रायल होना शेष है। अभी चूहों पर हुए 28 दिनों के परीक्षण में स्टेंट का परिणाम 90 फीसदी से ज्यादा सफल रहा है। डॉ.पुरांधी ने बताया कि अब वह स्टेंट की बड़े जानवर जैसे सुअर, खरगोश पर प्री-क्लिनिकल ट्रायल रिसर्च करेंगी।
‘मेक इन इंडिया’ को बनाया मूल मंत्र- डॉ.पुरांधी रुपमणि ने कहा कि जब वह इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही थो तो उन्होंने ‘मेक इन इंडिया’ अवधारणा को मूलमंत्र बनाया। वह चाहती थी भारत में ही अत्याधुनिक ‘स्टेंट’ बने। भारत में बने स्टेंट की कीमत विदेशी स्टेंट की कीमत से काफी कम होगी। और हम देश के हरएक जरूरतमंद नागरिक को उच्च गुणवत्तापरक ‘स्टेंट’ मिल सके।
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