..लालकिले की भगदड़ से कैसे निकले दिवाकर समेत उक्रांद नेता

वरिष्ठ पत्रकार उमाकांत ने 1994 के लालकिले के आंदोलन की यादें ताजा की

दिवाकर भट्ट यानी फील्ड मार्शल! -मंगलवार 25 नवंबर 2025 को उत्तराखंड क्रांतिदल के अध्यक्ष रहे दिवाकर भट्ट का दुखद निधन हुआ और ठीक एक साल पहले दूसरे दिग्गज आंदोलनकारी और यूकेडी के नेता त्रिवेंद्र पंवार को ऋषिकेश में एक दर्दनाक सड़क दुर्घटना में उत्तराखंड ने हमेशा के लिए खो दिया था! उत्तराखंड की सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे दिवाकर जी से ऋषिकेश से छात्र जीवन से परिचय था।

परिचय गहरा इसलिए भी था क्योंकि वे 60 के दशक में हरिद्वार में मेरे चाचा राम प्रसाद लखेड़ा जी के सहपाठी थे। उत्तराखंड आंदोलन के दौरान दिल्ली में दर्जनों बार उनसे भेंट मुलाकातें हुई होंगी।

इंद्रमणि बडोनी, विपिन त्रिपाठी, काशी सिंह ऐरी और त्रिवेंद्र पंवार समेत दर्जनों आंदोलनकारी नेताओं से नियमित मुलाकातें होना दिनचर्या सी बन गई थी। दिवाकर जी के साथ सबसे यादगार मुलाकात 2 अक्टूबर 1994 को तब हुई जब दिल्ली में लाल किले के पीछे उत्तराखंड के आंदोलनकारियों का विशाल समुद्र उमड़ा था।

अलग राज्य की मांग के लिए यह ऐतिहासिक रैली कुछ ही मिनटों में मंच में उपद्रव और अव्यवस्था के कारण हिंसक हो गई थी। हजारों की तादाद में पुलिस और सुरक्षाबलों के नियंत्रण से हालात बाहर हो गए थे।

लालकिले के पीछे की ओर ऊंचाई से आंसू गैस के गोले शुरू हो गए। दिवाकर भट्ट, विपिन त्रिपाठी और काशी काशीसिंह ऐरी भी मंच से बाहर आकर भगदड़ का सामना कर रहे थे। तभी मैंने इन तीनों को अपने साथ सुरक्षित तौर पर बैरिकेड के बाहर साथ आने को कहा। मैने उन्हें सलाह दी कि तत्काल बाहर निकलें और मेरे साथ आएं वरना वे बढ़ती भगदड़ से खतरे में पड़ सकते हैं।

सुरक्षा बलों ने हमें रोका तो मैने अपना प्रेस कार्ड दिखाया और जोर दिया कि ये सभी मेरे साथ हैं। फिर मैंने किसी तरह तीनों नेताओं के लिए वहां से बाहर निकलने का रास्ता बनाया। दिल्ली पुलिस के डीसीपी बरार एक ऊंचे मचान से आंखों में गैस की जलन से बच रही भीड़ को उस जगह से शांतिपूर्ण तरीके से बाहर निकलने की लाउड स्पीकर से अपील कर रहे थे।
बरार साहब मुझे निजी तौर पर जानते थे। सो उनको भी मैने इशारे से आग्रह किया कि हमें उस रास्ते बाहर जाने दें ,जहां पब्लिक के जाने की मनाही थी। मिनटों में ही देखा कि भगदड़ और पुलिस लाठी चार्ज बहुत से लोग चोटें खा रहे थे। भगदड़ व खलबली मच चुकी थी। मंच के कुछ ही मीटर आगे एक कोने में मैंने अपना स्कूटर खड़ा किया हुआ था।

मैने दिवाकर भट्ट और विपिन त्रिपाठी को एक साथ अपने स्कूटर पर पीछे बिठाया और दरियागंज के पास एक गली में दुकानदार को उन्हें कोल्ड ड्रिंक और चाय पानी देने को कहा। फिर मैं वापस ऐरी और त्रिवेंद्र भाई को लेने पहुंचा फिर उनको स्कूटर पर साथ लेकर वापस उसी दुकान तक पहुंचा। तब तक खबर फैल चुकी थी कि पुलिस के साथ झड़प में बहुत से आंदोलनकारी घायल हैं।

फिर मैं उन चारों के साथ दिल्ली गेट पर लोकनायक अस्पताल गया। वहां बड़ी तादाद में घायलों को लाया जा रहा था। मैंने देखा कि बहुत से उत्तराखंड के प्रवासी भी मदद के लिए जी जान से जुटे हुए थे! बड़ी तादाद में पुलिस ने लोगों को गिरफ्तार भी किया था।

मै शाम को ऑफिस से खबर लिखकर फिर वापस अस्पताल आया और घायलों का हाल पूछा और डॉक्टरों से घायलों का उपचार करने का आग्रह करता रहा। पूरी रात मेरी अस्पताल में ही बीती।

सुबह 6 बजे तक वहीं मदद में जुटा। उसके बाद जब भी दिवाकर भट्ट जी मिलते थे तो उस दिन की घटना को याद करते थे। लालकिले की उस दिन की घटना के गवाह ऐरी जी को आंखे देखी काफी कुछ स्मरण होगा। दिवाकर भट्ट जी बहुत सच्चे और नेकदिल इंसान थे। राज्य आंदोलन के बाद भले ही उक्रांद रास्ते से भटका लेकिन उक्रांद की अग्र पंक्ति के उनके जैसे तमाम नेताओं के योगदान को आने वाली पीढ़ियां हमेशा याद रखेंगी!

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