जैविक द्रव अपशिष्ट से हाइड्रोजन उत्पादन की अत्याधुनिक तकनीक का सफल हस्तांतरण
कचरे से स्वच्छ ऊर्जा की ओर
रुड़की। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की ने जैविक द्रव अपशिष्ट के उत्प्रेरक अधितापीय गैसीकरण के माध्यम से हाइड्रोजन-समृद्ध गैस निर्माण से संबंधित अपनी अत्याधुनिक तकनीक को इनफिनेट इंटिग्रेटिड एनर्जी टेक्नोलोजीज़ एलएलपी को सफलतापूर्वक हस्तांतरित किया है।
यह तकनीक 2 दिसंबर 2025 को हस्तांतरित हुई, जिसे सतत अपशिष्ट-से-ऊर्जा समाधान की दिशा में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि माना जा रहा है।
यह तकनीक प्रोफ़ेसर नरपूरेड्डी शिवा मोहन रेड्डी द्वारा विकसित की गई है। यह जैविक द्रव अपशिष्ट को निरंतर उत्प्रेरक अधितापीय गैसीकरण प्रक्रिया के माध्यम से हाइड्रोजन-समृद्ध गैस में परिवर्तित करती है। बड़े पैमाने पर उत्पादन और व्यावसायिक उपयोग के लिए यह प्रणाली अत्यंत उपयुक्त मानी जा रही है।
यह नवाचार अपशिष्ट प्रबंधन, हाइड्रोजन प्राप्ति और कार्बन पदचिह्न में कमी हेतु एक टिकाऊ समाधान प्रदान करता है। साथ ही यह भारत के स्वच्छ ऊर्जा, नवनीकरणीय संसाधन और परिपत्र अर्थव्यवस्था के लक्ष्यों के अनुरूप है। उद्योगों के लिए यह तकनीक जैविक और द्रव अपशिष्ट को मूल्यवान हाइड्रोजन ईंधन में बदलने का अवसर प्रदान करती है, जिससे पर्यावरणीय चुनौतियों को हरित ऊर्जा समाधान में परिवर्तित किया जा सकता है।
प्रोफ़ेसर नरपूरेड्डी शिवा मोहन रेड्डी ने कहा कि उनका अनुसंधान प्रक्रिया-दक्षता और पर्यावरणीय स्थिरता पर केंद्रित है तथा यह तकनीक स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन में सहायक सिद्ध होगी।
इनफिनेट इंटिग्रेटिड एनर्जी टेक्नोलोजीज़ एलएलपी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी रामचंद्र राजू दंतुलुरी ने कहा कि उनका उद्देश्य इस नवाचार को प्रयोगशाला से उद्योग तक पहुँचाना है, ताकि भारत हाइड्रोजन-आधारित अर्थव्यवस्था की दिशा में तेज़ी से आगे बढ़ सके।
आईआईटी रुड़की के अधिष्ठाता (प्रायोजित अनुसंधान एवं औद्योगिक परामर्श) प्रोफ़ेसर विवेक कुमार मलिक ने इसे उन्नत अनुसंधान को औद्योगिक समाधान से जोड़ने की दिशा में एक मजबूत कदम बताया। वहीं निदेशक प्रोफ़ेसर के. के. पंत ने कहा कि संस्थान समाज पर वास्तविक प्रभाव डालने वाली तकनीकों को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।
इनफिनेट इंटिग्रेटिड एनर्जी टेक्नोलोजीज़ एलएलपी एक प्रौद्योगिकी-केंद्रित संस्था है, जो नवाचारी और टिकाऊ ऊर्जा प्रणालियों के विकास पर कार्य करती है, विशेषकर नवनीकरणीय ऊर्जा, अपशिष्ट मूल्यवर्धन और हाइड्रोजन उत्पादन के क्षेत्रों में

