कर्मभूमि फाउंडेशन का वार्षिक समारोह 26 नवंबर को दून में

संविधान दिवस पर ‘न्यायमूर्ति केशव चंद्र धूलिया स्मृति व्याख्यान एवं निबंध प्रतियोगिता का आयोजन होगा

कानून के छात्र दून में होने वाली प्रतियोगिता में हिस्सा लेंगे

अविकल उत्तराखण्ड

देहरादून। कर्मभूमि फाउंडेशन 26 नवंबर संविधान दिवस पर अपना वार्षिक समारोह आयोजित करेगा। इस दिन ‘न्यायमूर्ति केशव चंद्र धूलिया स्मृति व्याख्यान एवं निबंध / मूट कोर्ट विजेता पुरस्कार का आयोजन किया जाएगा। कार्यक्रम में कानून के जानकार व्याख्यान देंगे । और पुरस्कार वितरण करेंगे। उत्तराखंड के कानून शिक्षा डिग्री प्राप्त छात्र इस प्रतियोगिता में हिस्सा ले सकेंगे। कार्यक्रम का आयोजन देहरादून में होगा। प्रतियोगिता के नियम और अन्य जानकारी शीघ्र ही घोषित की जायेगी। और फाउंडेशन की वेबसाइट karmabhoomi.org.in में भी उपलब्ध होगी।

कर्मभूमि फाउंडेशन इस वर्ष फरवरी में उत्तराखंड में स्थापित हुआ और अपना पहला पंडित भैरव दत्त धूलिया पत्रकार पुरस्कार १८ मई को आयोजित किया।

जीवन परिचय

न्यायमूर्ति केशव चंद्र धूलिया का जन्म 10 मार्च 1928 को पौड़ी जिले के मदनपुर ग्राम में एक संपन्न पुरोहितों के परिवार में हुआ था। पिता पंडित भैरव दत्त धूलिया एक सक्रिय स्वतंत्रता सेनानी थे। उनकी प्राइमरी शिक्षा गांव के समीप वनकंडी स्कूल में हुई। इसके पश्चात वह आगे की शिक्षा के लिए डाडामंडी के मटियाली स्कूल में दाखिले के लिए गये ।

चूंकि, उनके पिता एक स्वतंत्रता सेनानी थे तो प्रिंसिपल ने दाखिले से इनकार कर दिया और उन्हें अन्य आसपास के स्कूलों ने भी दाखिला नहीं दिया। पर वह चलते गए और फिर चेलूसैंण पौड़ी जिला. के ईसाई मिशनरी स्कूल के हेडमास्टर पीटर ने उन्हें दाखिला दिया। भारत की आजादी के बाद जब उनके पिता जेल से रिहा हुए तब उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय में की। और बी.ए. एम.ए ( अर्थशास्त्र) और कानून शिक्षा की डिग्री ग्रहण की। इस दौरान उनका संपर्क उस दौर के कई उच्च श्रेणी के शिक्षकों एवम स्वतंत्रता सेनानियों से हुआ और उन्होंने उन्हें प्रभावित किया। वह खुद एक सक्रिय छात्र नेता थे और नये भारत में छात्रों की आकांशाओं और समस्याओं को लेकर आगे रहते थे।

इसके उपरांत वह लैंसडौन वापस आये वकालत करने। और अपने पिता के साप्ताहिक अखबार कर्मभूमि’ में हाथ बंटाने। लेकिन विवाह और परिवारिक जिम्मेदारियां उन्हें इलाहाबाद वापस ले आई। वह इलाहाबाद सन् 1965 में एक छोटा लोहे के ट्रंक के साथ आये और कई वर्ष संघर्ष किया। इन सीमित परिस्थितियों में भी वह अपने गढ़वाल के लोगों के कई मसलों के समाधान के लिए शिक्षा विभाग, एजी ऑफिस बोर्ड ऑफ रेवेन्यू में जाया करते और पत्र द्वारा सबको सूचित करते।

वह हाई कोर्ट इलाहाबाद के चीफ स्टैंडिंग कॉसिल’ नियुक्त हुए और बाद में जज बने। उनके दिल का दौरा पड़ने से 15 जनवरी 1985 को अकस्मात मृत्यु से उनके परिवार, मित्र और सहयोगियों को गहरा सदमा पहुंचा। वह एक सजग और खुले विचार के व्यक्ति थे जिन्होंने विपरीत परस्थितियों के बावजूद एक मुकाम हामिल किया।

उन्होंने बतौर जज कई महत्वपूर्ण फैसले दिये। और वह मुकदमो को तेजी से निपटा लेने में निपुण थे। वह दूसरे व्यक्ति गढ़वाल से थे जो हाई कोर्ट जज बने। और पहले गढ़वाली वकील जो इस ओहदे पर पहुंचे। वह एक ईमानदार, सच्चे व्यक्ति जो कमजोर और मजलूम के हिमायती थे।

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