मोटे अनाज में है जलवायु परिवर्तन से लड़ने की शक्ति

उत्तरजन और ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी ने पारंपरिक मोटे अनाजों पर आयोजित किया राष्ट्रीय सेमिनार

राज्य स्तर पर मोटे अनाज की नीति लाने की वकालत

अविकल उत्तराखंड 

देहरादून। ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी तथा सामाजिक संगठन उत्तरजन की ओर से शुक्रवार को उत्तराखंड के पारंपरिक मोटे अनाज के महत्व, उत्पादकता व सप्लाई चैन को लेकर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का आयोजन यूनिवर्सिटी के केपी नौटियाल ऑडिटोरियम में किया गया।

आयोजन के मुख्य वक्ता गढ़वाल यूनिवर्सिटी के पर्यावरण विज्ञान के एचओडी प्रोफेसर आर के मैखुरी ने कहा कि मोटे अनाज जलवायु परिवर्तन के बुरे दौर में भी टिके रहते हैं। ऐसे में इस विषय पर ध्यान देने की बेहद जरूरत है। उन्होंने कोंदा, झंगोरा, कोणि, चिणा जैसे उत्तराखंड के उत्पादों के गिरते उत्पादन पर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि इनमें प्रोटीन फाइबर ज्यादा होता है। इन उत्पादों के लिए उत्तराखंड में न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया जाना चाहिए तथा उसे ग्रामीण स्तर तक खरीद की पहुंच विकसित करनी चाहिए। उन्होंने इस बात पर भी चिंता व्यक्ति की कि पारंपरिक कृषि पर अधिक रिसर्च का कार्य नहीं हुआ है।

दूसरे प्रमुख वक्ता गढ़वाल यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स विभाग के हेड प्रोफेसर एमसी सती ने कहा कि उत्पादन का दायरा बढ़ने से ही बेहतर अर्थव्यवस्था तैयार होगी। उन्होंने राज्य स्तर पर मोटे अनाज की नीति बनाने तथा भू कानून को जरूरी बताया। उन्होंने कहा कि मोटे अनाज को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक तीनों क्षेत्रों में कार्य करने की आवश्यकता है।

उत्तरजन तथा धाद के संस्थापक लोकेश नवानी ने कहा कि यदि यही स्थिति रही तो इस खूबसूरत धरती को बंजरा बनाने का आरोप वर्तमान पीढ़ी पर ही लगेगा। उन्होंने ग्रास रूट इकोनॉमी की बात की तथा विश्वविद्यालयों से गांव तक जाने तथा वहां के विषयों पर रिसर्च किए जाने का अनुरोध किया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी के कुलपति संजय जसोला ने कहा कि मिलेट के ऐसे प्रोडक्ट बनाए जाएं जो नूडल्स, पिज़्ज़ा, बर्गर का विकल्प तैयार कर सकें और उनकी बेहतर पैकेजिंग भी की जानी आवश्यक है। उत्तरजन के हर्षमणि व्यास ने विषय को स्पष्ट करते हुए कहा कि पहले मोटे अनाज को गरीबों का भोजन मान लिया गया था, अब वैज्ञानिकों ने यह साबित किया है कि यह काफी पौष्टिक है और दुनिया दोबारा मोटे अनाज की तरफ जा रही है।

इस दौरान दो पुस्तकों का भी विमोचन किया गया। जिसमें मोटे अनाज: महत्व एवं उत्पादन, हमारी खेती शामिल है। कार्यक्रम के अंत में डॉ राकेश भट्ट की तरफ से नंदा की यात्रा कार्यक्रम की प्रस्तुति की गई तथा गढ़भोज का आयोजन किया गया।

इस दौरान प्रमुख रूप से उत्तरजन के सचिव सुशील कुमार, हर्ष डोभाल, प्रोफेसर विनय आनंद बौड़ाई, डॉ जयंती प्रसाद नवानी, डॉ विमल नौटियाल, डॉ माधव मैठानी, विनोद भट्ट, हरीराज सिंह, विनोद तिवारी, अजय गैरोला, बृजमोहन डबराल, हरी विलास वर्मा, कुमुदिनी नौटियाल, विमला रावत, जीपी पोखरियाल, ऋषिकांत आदि उपस्थित थे।

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