राष्ट्रीय पक्षी दिवस- ग्लोबल वार्मिग से पक्षियों का जीवन संकट में

पौधे लगा कर बचा सकते हैं पक्षियों के घरौंदें- स्वामी चिदानन्द सरस्वती

परम्परागत व प्राकृतिक जीवन शैली है बेहतर विकल्प

अविकल उत्तराखंड

ऋषिकेश। परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने आज ‘राष्ट्रीय पक्षी दिवस’ पर कहा कि पक्षी पारिस्थितिकी तंत्र के महत्वपूर्ण अंग हैं। पक्षियों के स्वास्थ्य और जीवन शक्ति को बनाये रखने के लिये एक स्वस्थ प्रकृति व पर्यावरण का होना अत्यंत आवश्यक है।

थोड़े से वित्तीय लाभ और खुशी के लिए पक्षियों को पकड़ लिया जाता है; कैद किया जाता है तथा उनके साथ क्रूरतापूर्वक व्यवहार किया जाता है। आज का दिन यह याद दिलाता है कि हम यह सुनिश्चित करें कि पक्षियों को बेहतर जीवन मिले, स्वच्छ व स्वछंद वातावरण कैसे प्राप्त हो। स्वामी चिदानन्द सरस्वती ने कहा कि भारत की संस्कृति निस्वार्थ भाव से दूसरों की सेवा करने का संदेश देती है।

भारतीय संस्कृति का मूल मंत्र है मानवता की सेवा करना। दुनिया में ऐसे कई महापुरूष हुये जिन्होंने दूसरों की सेवा के लिये अपने प्राणों की आहुति दे दी। प्रत्येक प्राणी को गरिमापूर्ण जीवन देने, समाज के हर वर्ग और प्रत्येक व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधार करने हेतु भारतीय सनातन संस्कृति का सूत्र ‘सेवा ही साधना है’ को अंगीकार कर हमारे ऋषियों और महापुरूषों ने इस दिव्य संस्कृति का निर्माण किया।

देखा जाये तो हमारा समाज सहयोग एवं संघर्ष द्वारा संचालित एक संस्था है परन्तु जब संघर्ष बढ़ जाता है तो दमन की और सहयोग बढ़ता है तो शान्ति की शुरूआत होती है इसलिये सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के प्रति अहिंसा, करूणा और सहिष्णुता की भावना अत्यंत आवश्यक है। स्वामी जी ने कहा कि अहिंसा से तात्पर्य मन, वचन और कर्म से किसी को भी कष्ट न पहुंचाना तथा सभी प्राणियों के प्रति प्रेम, दया, सहानुभूति और सेवाभाव बनाये रखने से है।

अहिंसा करुणा, दया, धैर्य और शांति जैसे मूल्यों की प्राप्ति हेतु महात्मा बुद्ध, तीर्थंकर महावीर स्वामी और महात्मा गांधी ने अथक प्रयत्न कर अहिंसा के व्यापक कर शाश्वत जीवन मूल्य हमें प्रदान किये। भारतीय संस्कृति में वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना और ‘सर्वे भवन्तु सुखिन’ जैसे मूल्यों को केंद्र में रखकर प्राणिमात्र के प्रति करुणा, आत्मीयता, प्रेम और शान्ति में अभिवृद्धि की जा सकती है। महात्मा गांधी के अनुसार अहिंसा नैतिक जीवन जीने का मूलभूत सिद्धान्त है।

यह केवल एक आदर्श नहीं है बल्कि यह हमारा एक प्राकृतिक नियम है। अगर हम देखें तो, भारत 18 वीं व 19 वीं सदी तक प्रकृति और मानव जीवन के समन्वित विकास, सहअस्तित्व एवं आध्यात्मिक मूल्यों को साथ लेकर आगे बढ़ा लेकिन 20 वीं व वर्तमान 21 वीं सदी में मानव जिस भौतिकवादी संस्कृति को लेकर आगे बढ़ रहा है उसमें मानवता और प्रकृति का कल्याण निहित नहीं है।

हमें एक ऐसी संस्कृति विकसित करनी होगी जो परम्परागत होने के साथ ही उसमें धर्म, आध्यात्मिकता, मानवतावादी, सनातन संस्कृति और वैज्ञानिकता की सभी धाराएँ समाहित हो। एक ऐसा मार्ग खोजना होगा जिसमें धर्म, अध्यात्म एवं भौतिकता’ का उत्कृष्ट समन्वय हो। इसी समन्वय से प्राणी, प्रकृति और मानव के अस्तित्व को बचाया जा सकता है।पक्षी, प्रकृति की सबसे खूबसूरत चीजों में से एक हैं।

वे अपनी चहचहाहट से हमारे दिन को बेहतर बनाते हैं आईये आज राष्ट्रीय प्रक्षी दिवस के अवसर पर संकल्प लें कि पौधों का रोपण व संरक्षण करें ताकि पक्षियों को अपना घरौंदा मिल सकें; वायु प्रदूषण को कम करें जिससे वे खुले आसमान में सांस लें सके।

ग्लोबल वार्मिग के कारण पक्षियों का जीवन संकट में है इसलिये आईये प्रकृति व पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली अपनाने का संकल्प ले।

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