निमेष के उपन्यास ‘कर्तव्य पथ’ का लोकार्पण

अविकल उत्तराखंड

देहरादून। दून पुस्तकालय में वरिष्ठ लेखक हरीचन्द निमेष के नये उपन्यास कर्तव्य पथ का लोकार्पण किया गया ।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के तौर पर डॉ. बुध्दिनाथ मिश्र,वरिष्ठ साहित्यकार एवं गीतकार,और
अध्यक्ष के रुप में डॉ. एम.आर. सकलानी वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित रहे।
अतिथि वक्ता के तौर पर प्रो. जयपाल सिंह, अध्यक्ष, भारतीय दलित साहित्य अकादमी, उत्तराखण्ड तथा डॉ. राजेश पाल ,साहित्यकार ने इस पुस्तक पर चर्चा की. कार्यक्रम का . संचालन साहित्यकार शिव मोहन सिंह ने किया.
कार्यक्रम के प्रारम्भ में केन्द्र के प्रोग्राम एसोसिएट चन्द्रशेखर तिवारी ने अतिथियों, वक्ताओं और सभागार में उपस्थित लोगों का अभिनंदन किया.

वक्ताओं ने हरी चन्द निमेष के इस उपन्यास को सामाजिक परिवेश में व्याप्त परम्परागत प्रवृति व घटनाओं को कथात्मक रूप में पाठकों के समक्ष रखने का एक बड़ा प्रयास बताया.

डॉ बुद्धिनाथ मिश्र ने कहा कि निमेष उन लोगों में नहीं हैं जो अपने परिवार की व्यथा-कथा सुनाकर श्रोताओं की सहानुभूति बटोरना चाहते हैं। इनकी लेखनी में ऊर्जा है और समकालीन परिदृश्य को शब्दों में पिरोने का हुनर है। इसीलिए इनके उपन्यास में वर्तमान काल का विराट रूप प्रकट होता है। निमेष जी का यह नया उपन्यास ‘कर्तव्यपथ’ इस दिशा में वर्तमान सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक जीवन का बेहतरीत दस्तावेज है,जिसे पढ़ा जाना चाहिए।

डॉ. मुनीराम सकलानी, वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार व पूर्व निदेशक भाषा संस्थान उत्तराखंड ने कहा कि मैंने निमेष की रचना दो पुस्तकों को यथा मेरी भूली बिसरी कहानी संग्रह एवं दूसरी पुस्तक दर्पण रंग बिरंगी कविताएं पूर्व में भी पढ़ी हैं । कर्तव्य पथ उपन्यास को भी मुझे पढ़ने का मौका मिला है. यह उपन्यास न केवल साहित्य का रसास्वादन करता है बल्कि आधुनिक समाज के युवक युवतियों को कर्तव्य बोध भी कराने का प्रयास करता है. इस तरह निमेष ने समाज में फैली हुई बुराइयों की ओर समाज का ध्यान आकर्षित किया है. उपन्यास में संस्कार और नैतिकता का विशेष ध्यान रखते हुए अपनी कलम का प्रभाव रख छोड़ा है.

डॉ. राजेश पाल, वरिष्ठ साहित्यकार ने अपने सम्बोधन में विचार प्रकट किये कि यह उपन्यास अपने समय और समाज की कुछ परम्परागत प्रवृत्तियों को कथानक में पिरोने का सायास प्रयास करता दीखता है। लेखक ने घटनाओं, चरित्रों और संवादों को सहज रूप से प्रस्तुत करने की कोशिश की है, जिससे पाठक को कहानी की दिशा समझने में कठिनाई नहीं होती। हालांकि इसके कथानक, शिल्प और भाषा में कुछ पहलू ऐसे भी हैं जिन पर अधिक गहराई और सघनता की अपेक्षा की जा सकती थी, फिर भी यह रचना उन पाठकों के लिए एक अनुभव प्रदान करती है जो किसी कथा को उसके मूल भाव और प्रवाह में देखना पसंद करते हैं। इस रूप में उपन्यास अपने स्तर पर एक प्रयास के रूप में देखा जा सकता है, जो पाठक को विचार करने का अवसर देता है।

प्रो. जयपाल सिंह अध्यक्ष, भारतीय दलित साहित्य अकादमी, उत्तराखण्ड ने कहा कि हरी चन्द निमेष, कर्मचारी भविष्य निधि संगठन, देहरादून से सेवा निवृत हुए हैं. सेवाकाल से ही निमेष की रुचि साहित्य में रही है फलस्वरुप उन्होंने मेरी भूली बिसरी कहानी संग्रह दर्पण कविता संग्रह की रचना के द्वारा पाठकों के मध्य अपनी भी छवि बनाई है । आज निमेष की पुस्तक,कर्तव्य पथ, उपन्यास, साहित्य के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि की तरह है. यह उपन्यास सरल भाषा में लिखा गया है,जो समाज के हर व्यक्ति को कर्तव्य पथ की ओर प्रेरित करता है. प्रस्तुत उपन्यास के माध्यम से अच्छाई और बुराई के बीच अंतर को बड़े सुंदर ढंग से वर्णन किया गया है. कर्तव्य पथ ऐसा पथ है,जिसके अनुकरण से मनुष्य का जीवन सफल हो जाता है और व्यक्ति सुख का अनुभव करता है. वहीं कर्तव्यहीन, निकम्मे और निष्क्रिय व्यक्ति का जीवन कष्ट में पड़ जाता है.

लेखक हरी चन्द निमेष ने पुस्तक का परिचय देते हुए कहा कि मानव समाज के कर्तव्य को केंद्रित करते हुए मैंने कर्तव्य पथ उपन्यास की रचना की है. जब व्यक्ति कर्तव्य पथ पर चलता है तो कुछ व्यवधान अवश्य आते हैं उन विघ्नों को मनुष्य अपने विवेक और बुद्धि से पराजय कर देता है, जैसे कि गुलाब के फूल तक पहुंचने से पूर्व कांटों का सामना करना ही पड़ता है, आशा है कि प्रबुद्ध पाठकों को यह उपन्यास अवश्य पसंद आयेगा.

इस कार्यक्रम में सत्यप्रकाश शर्मा सत्य,डॉ. स्वामी एस. चन्द्रा, बी.एस. रावत, सुन्दर सिंह बिष्ट, जी.एन. मनोड़ी, प्रमोद नौडियाल, डॉ. वी. के. डोभाल,आर.पी. भारद्वाज, विजय पाहवा, डी. के. काण्डपाल, सुशील कुमार, रॉबिन छाबडा, राजेश थपलियाल, कुल भूषण नैथानी, मधन सिंह समेत शहर के अनेक लेखक, साहित्यकार, पाठक व साहित्य प्रेमी व आमजन उपस्थित रहे.

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